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________________ १५८, वर्ष २३, कि० ४ अनेकान्त स्थानो पर धार्मिक उपदेश, करुणापूर्ण वर्णन तथा अनेक स्वीकार न को। [श्लोक पृ० ३०२४.३०३२] एक दिन सुभाषित कृति को मलकृत कर रहे है। वसन्त ऋतु मे अपने कुछ मित्रो के साथ वह मदनमहोत्सव ६. विषय-विश्लेषण-प्रस्तुत विषय-विश्लेषण दोनों में भाग लेने के लिये मनगनन्दन नामक उद्यान मे गया। हस्तलिखित प्रतियो के अध्ययन के पश्चात उपस्थित किया (६-७) ज्यो ही वह राजमार्ग के पास से होकर जा रहा जा रहा है। यह तो स्पष्ट है कि विषय कडवक मे विभा- था राजा ईशानचन्द्र की पुत्री राजकुमारी विलासवती जित किया गया है और ये विभाग निश्चित विषय-वर्णन ने उसे ऊपर राजमहल की खिडकी से देख लिया। वह के आधार पर स्थित हैं। प्रत्येक सन्धि का विषय यहाँ उसे कामदेव के समान सुन्दर प्रतीत हुमा और उसने अपने इसलिए प्रस्तुत किया जा रहा है कि मेधावी छात्र या हाथों से गूथा हुमा बकुल-पुष्पो का हार उसके ऊपर डाल जिज्ञासु समराइच्चकहा पोर विलासवईकहा का तुलना- दिया और वह हार उसके गले में जा गिरा। जब उसने त्मक अध्ययन कर सके । योग्यसन्दर्भ में तुलनात्मक सकेत पर देखा तो यह राजकुमारी के सुन्दर रूप से मोहित हो भी कर दिए है । जहाँ स्पष्टविधान नहीं है, वहाँ तारां- गया। उसका मित्र वसुभूति उनके पारस्परिक प्रेम को कित चिह्नों प्रादि से निर्देशित कर दिया गया है। पहचान गया। (5) राजकुमार ने मदनमहोत्सव की संधि प्रथम-रचनाकर प्रथम चौबीस तीर्थंकरो को क्रीडायो मे भाग तो लिया परन्तु उसका हृदय विलासवती क्रमश: नाम लेकर नमस्कार करता है। (१) अहिंसा, के रूप के प्रति ही प्रासक्त था । उस दिन की रात उसे कर्मपरवशता, प्रमाद का बुरा परिणाम प्रादि का प्रति वियोग के कारण प्रति दीर्घ प्रतीत हुई। (९-१०) दूसरे पादन कर दृष्टान्त रूप मे विलासवईकहा का प्रस्तुतीकरण दिन प्रातःकाल उसे उसके मित्र वसूभूति ने संभाला मोर करता है। (२)....."(ताराकित)। भारत मे सेयाविया अनुभव किया कि उसके प्रत्येक क्रियाकलाप मे अन्तर मा (स्वेतावी) नामक एक नगरी है। राजा यशोवर्मन उस गया है और वह कामदेव के वश में हो गया है । वसुभूति नगरी पर शासन करते थे। उसकी पटरानी का नाम ने उसे विश्वास दिलाया कि विलासवती भी तुम्हारे प्रेमकोतिमती था । वह बहुगुणमती थी। उनका सनत्कुमार पाश मे माबद्ध है, वकुल पुष्पों की माला गैरना इसी नामक सुपुत्र था। उसके जन्म के समय ही ज्योतिषियो ने को ज्ञापकता का प्रमाण है कि वह भी तुम्हारे प्रति भविष्यवाणी की थी कि यह विद्याधरो का स्वामी होगा। प्रेमाकुल है। (११) मै तुम्हारे सयोग का कुछ उपाय (३) एक बार सनत्कुमार प्रश्वारोहण के मानन्द के करूगा, यह विश्वास दिलाकर वसुभूति उसके पास से पश्चात् अपन भवन को लौट रहा था तो उसने देखा कि चला गया। उसने विलासवती की सेविका की पुत्री कुछ डाकू फॉसी देने के लिए ले जाये जा रहे हैं । डाकुओं अनंगसुन्दरी से अपना परिचय बढागा। राजकुमार बडा ने पश्चाताप करते हुए कुमार से अपनी रक्षा की प्रार्थना व्याकूल एव सन्तापित था। (१२) वसुभूति राजकुमार की और कुमार ने उन्हें मुक्त कर दिया, इस घटना ने के पास आया और राजकुमार से घेयं एवं साहस धारण उन नागरिको को क्रुद्ध कर दिया जिनके द्वारा अभियोग करने को कहा । उसने अनगसुन्दरी से परिचय प्राप्त करने करने पर राजा ने उन्हें गुप्तरूप में प्राणदण्ड दिया था। की मब बात राजकुमारी को बतलाई और कहा कि राजकुमार ने इसे अपना अपमान समझा और उस नगरी अनगसुन्दरी भी तुम्हारे दुख से उदास मोर दुखी थी। को छोड़कर कही अन्यत्र चला गया। (४) अनुचरों द्वारा (१३) वसुभुति ने बतलाया कि अनगसुन्दरी राजकुमारी मनाया जाने पर भी वह न माना और अपने कुछ के प्रति निकट सम्पर्क में है और राजकुमारी भी तुम्हारी विश्वस्त साथियों के साथ ताम्रलिप्ति नगरी में पहुँच ही तरह प्रेम से व्याकुल एव सन्तापित है। एक अज्ञात गया । वहाँ के राजा ईशानचन्द्र ने उसका हार्दिक स्वागत युवक के गले मे हार डालकर अपने हृदय को लुटा बैटी किया और भोजन तथा निवास की समुचित सुविधा है। पनगसुन्दरी ने उसे सान्त्वना देकर समझाया है कि प्रदान की। (५) वहाँ जीविकानिर्वाहार्थ उसने कोई वृत्ति वह उस युवक को खोजकर शीघ्र ही मिलन करायेगी।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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