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विलासवईकहा एक परिचयात्मक अध्ययन
गम्भीर अध्ययन करने पर कई भावपूर्ण तथ्य प्रत्यक्ष संयोजना है और इसका प्रयोजन भी स्पष्ट है। समराइच्च उपस्थित होते हैं। यद्यपि साधारण अपभ्रंश भाषा में कहा मे, इस प्रसंग मे इसका प्रभाव है। एकादश सन्धि अपनी रचना कर रहे हैं परन्तु वे समराइच्च कहा के मे मधुबिन्दु के दृष्टान्त को साधारण ने विस्तृतरूप में शब्द एवं कथन ज्यों के त्यों कई स्थानों पर ग्रहण कर उपस्थित किया है, जबकि हरिभद्र ने केवल इसका संक्षिप्त रहे हैं । कई स्थानों पर शब्द तादात्म्य इतना अधिक है सकेत दिया है, क्योकि समराइच्चकहा मे इसका विस्तार कि प्राकृत-पाठ्य कई नवीन तथ्यों का पता देती है। यहाँ कही अन्य स्थल पर किया गया है। धार्मिक उपदेश, तक कि अपभ्रंश रचना की प्रशद्धियां सुधारने में भी शिक्षा एवं रूढ़िगत भावनानी का साधारण ने विस्तृत प्राकृत पाठ्य की सहायता प्राप्त होती है। कई स्थानों वर्णन किया है। ये संवर्धन एवं परिवर्धन विलासवईकहा पर वर्ननक्रम की भी सदृशता है। हारभद्र की कई पंक्तियों को अपभ्रंश भाषा की स्वतत्र कथा-रचना एवं अध्ययनाई (पृ. ३७२) साधारण ने ज्यों की त्यों उद्धृत कर दी हैं प्रमाणित करते हैं। (सन्धि ६३२)।
७. छन्द एवं शैली इत्यादि-यह ज्ञात होता है कि इतना होने पर भी कुछ निश्चित बातें है जो मन को विलासवईकहा एकादश सन्धियों में विभक्त है और प्रत्येक विशेषरूप से आकर्षित करती हैं और साधारण की काव्य- सन्धि कड़वक मे विभक्त है, जिनकी संख्या २२ से ३६ प्रतिभा का निदर्शन उपस्थित करती है। साधारण एक तक है। रचना के प्रारम्भ में टो पनि III स्वतंत्र कथा की रचना कर रहे है और इसके लिए उन्होंने
प्रत्येक पंक्ति में १०+६+१३३१ मात्राएँ है। प्रथम दो अपना पृथक् मगलाचरण किया है। उन्होने अपनी रचना चरण तुकान्तयुक्त है । प्रत्येक कडवक की पंक्तियाँ विभिन्न का नैतिक शिक्षा-प्रयोजन भी स्पष्टतः पृथक् निर्देशित छन्द गठन शैली से युक्त हैं। प्रथमसधि के विश्लेषण से किया है। श्री हरिभद्र का घटना क्रम का वर्णन त्वरित- यह परिज्ञात होता है कि प्रत्येक कडवक गाथा से समाप्त गतिवाला है जबकि श्री साधारण ने अनेक स्थानों पर होता है। किन्तु छन्दगठनविधि वही है जैसी पहले कही विश्रमित गति का प्राश्रय लेकर घटनाक्रमों को विस्तृत गई है । सप्तम कड़वक की पक्तियां सकुलक पंक्तियां हैं बनाया है। विशेषतः साहित्यप्रथागत तथा वर्णनात्मक (६, ४, ४, २) । क्रम ८ और २३ की पक्तियां मदनाकथन उनके पर्याप्त विस्तृत हैं । हरिभद्र के कथन संक्षिप्त वतार की पंक्तियाँ है। (५+४), तथा शेष पद्धतीय है, इसके विपरीत साधारण के कथन प्रति विस्तृत एवं पंक्तियां हैं (४४४)। सम्पूर्ण कृति का सम्पादन होने परिवधित हैं । विभिन्न अपभ्रश बोलियों के प्रयोग तुकान्त पर ही रचना का छन्द विषयक पूर्ण विश्लेषण हो सकता एवं ध्वनिसमरसता में सहायक होकर साधारण की काव्य- है। रचना मे प्रवीणता एवं प्रेरणा के कारण बन गये हैं। यद्यपि साधारण ने कथा सामग्री हरिभद्र कृत समइन प्रयोगों के मूलरूप अन्य अपभ्रंश रचनामों में देखे जा राइच्चकहा से ग्रहण की है परन्तु प्रत्येक उचित घटना सकते हैं । कतिपय भाव और रस जो हरिभद्र द्वारा केवल को अपनी काव्य प्रतिभा से शब्द चित्रात्मकता प्रदान सकेतित है, साधारण ने उनका पर्याप्त विस्तार किया है। करने का, रसात्मकता या भावात्मकता, विस्तारयुक्तता साधारण यत्र तत्र काव्य-वर्णनानुकूलता के प्रतिपादनार्थ प्रदान करने का अवसर चुके नहीं हैं। रचना में सर्वत्र का प्रकरण में परिवर्तन तथा परिवर्धन कर लेते हैं। काव्य-रसात्मकता एवं विशिष्टता विद्यमान हैं । वसन्तादि साधारण अपनी स्वतंत्र रचना की सिद्धि के लिए कथानक ऋतुवर्णन, नारी सौन्दर्य का वर्णन, वन मादि का प्रकृति में यत्किञ्चित् परिवर्तन एवं परिवर्षन को उचित मानते चित्रण, समुद्रतट, दिव्यदृश्यों का तथा विद्याधरों का वर्णन, हैं : विशेषतः अपनी रचना के अन्तिम प्रसंगों में उन्होंने युद्ध, विमान, राजधानियों का वर्णन, मन्दिर महल, राजऐसा परिवर्तन भषिक किया है। नवम सन्धि का कथा- प्रासाद, शोभायात्रा मादि का मनोहारी एवं विस्तृत वर्णन विषय चन्द्रलेखा की उपकथा साधारण की अपनी नवीन साधारण के काव्य-कौशल को प्रगट कर रहे हैं। अनेक