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________________ १६. वर्ष २३ कि०१ श्री गणपतिदेव हुए थे। इसके बाद यह राजवंश सदा के लिए लुप्त हो गया और बाद में इस क्षेत्र पर मुसल. मानों का अधिकार हो गया ज्ञात होता है। प्रशस्ति-विवरण : धर्मज्ञ जैसिंह ने उक्त मदिर में एक नागरी लिपि द्वारा संस्कृत भाषा मे उत्कीणित अभिलेख लगवाया था। इस अभिलेख मे ४० पंक्तिया मौर ७० श्लोक है। यह अभिलेख अब ग्वालियर पुरातत्व संग्रहालय मे सुरक्षित है। इस अभिलेख के सम्बन्ध में मुझे जब यह ज्ञात हुमा कि यह अब तक अप्रकाशित है तो मैंने अपने मनुज डॉ. राजेन्द्रकुमार सिंघई को लिखा। उन्ही के सत् प्रयत्नो से प्रस्तुत प्रभिलेख की शिलाखण्ड से प्रतिलिपि तैयार की गई, जो मुझे प्राप्त हुई। इसके लिए वे बहुत बहुत धन्यवाद के पात्र है। मैंने सम्पूर्ण प्रशस्ति को (अध्ययन कर उसे) लिपिबद्ध कर बार बार पावश्यक सशोधन किये और उसके उपरान्त उसे अन्तिम रूप दिया है। इस कार्य में त्रुटिया शेष रह जाना संभावित है। अतः विद्वान् पाठको से निवेदन है कि प्रावश्यक सुधार लेखक को प्रेषित कर कृतार्थ करेगे। प्रस्तुत अभिलेख का हिन्दी अनुवाद भी नुझे मावश्यक प्रतीत होता है। अतः भाशा है इस भोर भी विद्वान् ध्यानाकर्षित करने की कृपा करेंगे। मूल प्रति मेरे पास है, जिसे विद्वान् चाहे तो देख सकेंगे। प्रस्तुत पभिलेख का भाषा शास्त्रीय अध्ययन अगले अंक में पढियेगा। मभिलेख निम्न प्रकार है : भीमपुर अभिलेख श्री स्वस्ति ॥ भामंडलोय मियत: सवितारमेषा मासंवितुं दिवस वासव नन्दिनीव (1)। यस्यांशयेल्लसति कुन्तज कान्तलेखा संश्रेयसे भवतुव:प्रभुरादिदेवः ॥१॥ उद्भासयत्ति यदुपं पुरगेन्द्रचूला १२. ग्वालियर राज्य के अभिलेख : लेखांक-१५६. १६३, १७४, १७५, १७३। नोट-श्लोक १ वसन्ततिलका छन्द रत्नप्रदीप कलिकाः किल सप्त संख्या:। तत्वानि सप्त नुदनेकुमतान्धकार (रि) पाव प्रभुर्भवतु संव वितवायरः ॥२॥ विसं (स्य) समान लवणोदधिमेखलेयः) माकप मान कुलशेल नितम्ब बिम्बा। यस्मिन्नभूदवनियोषिदि बभुदेवः धोवीरभ (व)दुरमरावल बालमंस्नात् ॥३॥ यस्याः प्रसाद मधिगम्यजडाशयस्या प्याभाति सारसविशिष्ट निनाद संम्या । बोशारदीन शिशिरति कौतुदीव (:) साहन्निश मनास दीव्यतुशारदामे ॥४॥ स्याद्वादविद्यार्णव पार्वणन्दवः कारुण्यरत्नांकुर रोहणादयः । कोतिप्रभाकेन दिगम्बरश्रियः भीमलसघे मुनयः पनन्तु वः ।।५।। इतश्च ॥ यज्वपाल इति सार्थक नामा संवभूव वसुधा धववंशः। सम्वतः कलित कीतिदुज्ज्वल छद्दमेकमसृजद्धव नेयः ॥६॥ कुलेकिलस्मिन्न ननिष्टवीर (6) चूडामणि श्री परमाडिराजः। वारविदाभात्सत तारकश्री: स्कंदोपि नास्कदति येन साम्य (0)॥७॥ सत्र नाक युवतिमृनस्वली पत्रवल्लिघनडवरस्पृशि()। चाहः प्रतिनरेन्द्रकाननं प्लोषदद्रि शिखिमूर्ति उद्ययौ ।। तत्रस्वग्गपुरी पौर, गौरवंशमुपेयुषि । नवविरिमाविन्महीजान्निरजायत् ॥ यस्मिन्विलाम कुशलेह दयाधिनाथ स्थानेक रक्षिपति सागरमेखलेयम् । उत्कंठकानश्रणु कंपवतीव जज्ञे प्रौढांगनेव नद क्षीरविषणंभावं ॥१०॥ नोट : श्लोक २-४ वसन्ततिलका छन्द । श्लोक ५ इन्द्र वज्रा। श्लोक ६, रयोद्धता। श्लोक ७ उपजाति। श्लोक ६ अनुष्टुभ । श्लोक १० वसन्ततिलका।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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