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कवि साधारणकृत
विलासवईकहा, एक परिचयात्मक अध्ययन
डा० ए. एन. उपाध्ये एम. ए. डी. लिट्
१. प्रथम परिचय " विलासवई कहा " से मेरा प्रथम परिचय मेरे विद्यार्थी जीवन से सम्बन्ध रखता है, जबकि सन १९२८ में सांगली में मेरे प्राध्यापक गुरु डा० पी. एल. वैद्य ने एक चित्र प्रति इस कथा की मुझे दिखाई थी। यह प्रति उन्होने जुलाई १९२७ में संस्कृत लाइब्रेरी कोठी, बड़ौदा से प्राप्त की थी।
इसके पश्चात् सन् १६४२ से १६४६ तक जब में लीलावई का सम्पादन कर रहा था, मैंने जैसलमेर भंडार की हस्ततिति प्रतियों के सूचीपत्र पत्र को कई बार देखा । श्री प्रो. एस. नं० १२ बड़ौदा १९२३ के सूचीपत्र मे विलासवई कहा की दो हस्तलिखित प्रतियाँ जैसलमेर भण्डार में होने का उल्लेख था । प्रथम पृष्ठ १४-५ पर बड़े शास्त्र भंडार में क्रम १३१ पर एक ताड़पत्र पर लिखित प्रति का उल्लेख है। इसमें १३३२३ श्राकार के २०६ पृष्ठों का उल्लेख है। प्रारम्भिक भाग उद्धृत किया गया है। अन्त में २०६ वें पृष्ठ पर टिप्पणी (सूचना) है कि रचयिता की प्रशस्ति अधूरी है। प्रति का उल्लेख पृ० १८-६ नं० १६६ पर है। इसमें २०X२ इन्च आकार के २०६ पृष्ठ हैं । अन्तिम भाग मे रचयिता की प्रशस्ति उद्धृत की गई है एवं कोष्ठकों में कुछ अशुद्धियाँ सुधारी गई है। इसके साथ ही भूमिका के पृष्ठ ४५ पर सम्पादक श्री एलः बी. गांधी ने ( रचबिता) एवं उसकी कृति के सम्बन्ध में अपने कुछ विचार संस्कृत में उपस्थित किये हैं।
दूसरी
जिनरत्नकोप (एम. डी वेलंकर, पूना १९४४) में पृष्ठ ३५६ पर निम्न उल्लेख प्राप्त होता है"१बिलासवती कथा ग्यारह अध्याययुक्त सं० ११९३ (१) मे कवि साधारण द्वारा रचित, जो बाद में सिद्धसेनसूरी के नाम से विख्यात हुए। यह प्रपत्र शभाषा में है।
बड़ौदा हस्तलिखित प्रतियों का क्रम ६६५, १३१६६० जैसलमेर भण्डार हस्तलिखित प्रतियों का क्रम (जी. श्री. एस. १९१३), पृष्ठ १४, १६ ( भूमिका पृष्ठ ४५) जैसल - मेर क्रम ६८०, ७२१, १६१० (तीनों ही ताड़पत्र लिखित प्रति हैं ) ; कुण्डी नं० १७३, ३२२ (ये भी जैसलमेर भंडार से ही उपलब्ध है। द्वितीय- लक्ष्मीवर महर्षि द्वारा रचित विलासवती कथा, कुण्डी नं० ३२२ ।"
जब श्री मुनि जिनविजयजी ने मुझे जैसलमेर के भंडार से हस्तलिखित कुवलयमाला की चित्र प्रति दी तो उसके अन्त में विलासवई कहा के चार पृष्ठ (११३ से ११६) एक तरफ लिखे हुए, पृष्ठ नम्बर न लिखे हुए, जुड़े हुए 1 ये पृष्ठ लगभग सन्धि ७ के २१ से २७ तक कड़वक को अपने में समावेशित करते थे। इसको लम्बाई और चौड़ाई पर दृष्टिपात करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि ये पृष्ठ जैसलमेर बड़े भण्डार की हस्तलिखित प्रति १३१ से सम्बधित है, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है ।
सन् १९४७ मे भारतीय विद्यापत्रिका बम्बई की जिल्द नं० ५, नं० ४-६ दिसम्बर १९४६ तथा जनवरीफरवरी १९४७ में श्री पंडित बेचरदास जी दोशी ने
"विलासवई कहा की वस्तु" शीर्षक लेख प्रकाशित कराया । उन्होंने कृपा करके इसकी एक प्रति मुझे भी भेजी। इस । लेख ने " इस कविता" के प्रति मेरी रुचि को अत्यधिक प्रोत्साहित किया।
सन् १९५५ में श्री पंडित चरदास जी ने जिन्हें मैं अपना प्रादरणीय मित्र मानता हूँ, विलासवई कहा की एक प्रतिलिपि, जो उन्होंने जैसलमेर भण्डर की ताड़पत्र प्रति से प्रतिलिपि की थी और जिसका उल्लेख उन्होंने प्रपने पूर्वलिखित लेख में किया था, मुझे भेजी ।
इसके पश्चात् रायपुर से डा० देवेन्द्र ने हिन्दी भाषा