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________________ हिन्दी की अज्ञात जंन रचनाएँ 'चौबीस तीर्थंकरों की पूजा' प्रडिल्ल, पढडी, दोहा प्रोर घत्ता छदो मे लिखी गई है। पूजा के विधि-विधान के अतिरिक्त कवि ने अपना भक्ति भाव भी प्रकट किया है पुष्पदत आतंक विदार्यो, शीतल जगत समाधि उधार्यो । श्रय श्रेय सिव के दातारं, वासुपूज्य विद्रुम दुति सारं । विमल सकल गुन बान उचारे, लोक अलोक अनंत निहारे । धर्म सुधातम गर्भ बनायो, शान्ति जगतहित बांध सुनायो । ६ सिरवर विलास - तेरहपथी मन्दिर चाकसू मे प्राप्त यह रचना मनसुखसागर की है। प्रस्तुत रचना का आधार लोहाचार्य विरचित 'तीर्थ महात्म्य है। इसमे दोहा, चौपई, डिल्ल, सवैया, मोतीदाम, चाल, सोरठा, कुसुमलता चामर, कुण्डलिया आदि विविध छदों का प्रयोग हुआ है। भरत क्षेत्र में स्थित तीर्थकरो की मुक्ति के स्थल विभिन्न कूटों को कवि ने सरल और रोचक शैली मे समभाया है । ७. मन गुण तीसी - २६ छद की यह रचना पद्मसूरि के शिष्य गुणसागर ने लिखी। मन की चंचलता की चर्चा करते हुए कवि ने मन को एकाग्र करने पर बल दिया है— मन संकाची राष्यो ग्रांपणो, चक्रवर्ती सत कुमार । १५१ सहु परिवारै बलि बलि विनठ्यो, नाठ् नेह लगार । ८. श्री स्तोत्र - चारित्र सागर के शिष्य कल्याण इस रचना के लेखक है - चितौड़ के दिगम्बर जैन कीर्तिस्तम्भ से सम्बन्धित अप्रकाशित शिलालेख मैने अनेकान्त के अप्रैल १६६६ मे प्रकाशित कराये थे । इन लेखों का टिप्पणी सहित हिन्दी अनुवाद श्री नेमचंद धन्नूसा जंन ने अनेकान्त के अप्रैल सन् १९७० के अंक में प्रकाशित कराया गया है। विद्वान बहु महीमा श्री पार्श्वनाह शासन सूरि सेवक जन साधारणी । बुध चारित्र सागर शिष्य, कल्याण नै जं कारणी । ग्रन्थ रचना का प्रारम्भ गणेश वन्दना से हुआ है । कवि ने लक्ष्मी को गोरी, गगा, गायत्री प्रादि मानते हुए उसे अपना सर्वस्व कहा हैविस हथ। मुझ बीनती तु इष्ट प्रनोपम, सदा सहोपम, तु ही पिता तु मात । ६. स्तवन तीर्थमाला - ५५ छदो की इस रचना के लेखक पद्मविजय है। इसमें अन्य तीर्थों की स्तुति के अपेक्षा कवि ने सुमेरु पर्वत के वर्णन में अधिक रुचि ली है मांनो मोरी मात । गजदंति जिणवर तणां ए, बीस प्रसाद अभंगतो । तिहां जिन बिव नमु नौबीस ऐ नमस्यु ग्राणी रंगतो । १०. कड़बी -- यह छोटी सी रचना किसी मुसलमान कवि महमूद खा की है। इस महत्वपूर्ण रचना में महमूद खा ने तीर्थकर नेमिनाथ की महिमा का गान करते हुए शरणागति चाही है छपन कोडी ज्यादुं श्री मुगटमणी, तिहुं काल तेरा करत सेवा । पाँन महमुद कर जोड़ि विनति करें, रापि सीर नाथ देवाधिदेवा । जैन कीर्तिस्तम्भ का निर्माता शाह जीजा श्री रामवल्लभ सोमाणी लेखक की मान्यता है कि शाह जीजा के पूर्वज चित्तौड़ के निवासी नही थे और वे कच्छ देश के किसी भूभाग के रहने वाले थे। मैं समझता हूँ कि लेख के इस अंश का अथं वे ठीक नहीं कर पाये है। शाह जीजा के पुत्र पुण्यसिंह के लेख के श्लोक सं० १३ मे केवल कच्छ शब्द का
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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