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हिन्दी की अज्ञात जैन रचनाएं
डा० गंगाराम गर्ग
संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश आदि भाषाप्रो के अति- छंद भी लिखे हैं। रिक्त जैन कवियों ने हिन्दी मे भी अनेक रचनाए लिखी यद्यपि कवि के गांव राहोली और उसके मित्र भवानीहैं । पिछले दस वर्षों में हिन्दी के जैन काव्य के अनुसधान चंद के गांव गुनसी मे अधिक दूरी नहीं है किन्तु यातायात के काफी प्रयत्न विद्वानो द्वारा हुए है, फिर भी बहुत सा की सुविधा के प्रभाव मे मिलना नही हो पाता, प्रतः कवि अविदित साहित्य अनेक जिनालयों में छिपा है। प्रस्तुत को मित्र के मिलन अथवा पत्र पाने की तीव्र उत्कण्ठा निबन्ध मे ढढाड प्रदेश के ऐतिहासिक नगर चाकसू और बनी रहती हैनिवाई के जैन मन्दिरों में प्राप्त कुछ अज्ञात साहित्यिक तुम अंकन को वाट मन, जोबत पाठू जांम । रचनामों का परिचय दिया जा रहा है ।
जब तुम कर दल जोयहै, तब पहौं विश्राम 1८,६। १. स्नेह पत्रावलि- इस रचना के लेखक डालूराम, ज्यौ धन चातक मोर मन, जल विछुर्यो ज्यौ मीन । माणिकचन्द लुहाडिया के पुत्र थे। डाल गम नामक एक त्यो मो मन तब मिलन, लागी लगनि नवीन ।।८,१० अन्य कवि सवाई माधोपुर में भी हुए है। 'स्नेह पत्राबनि' मित्र की पत्रिका पाने पर कवि के 'हर्ष' की कल्पना कवि की सबत् १८६० से १८६४ तक के मध्य लिख गये ही नही की जा सकतीकवि के विभिन्न पत्रो का संग्रह है। पत्रात्मक शैली की सो सुख कह्यो न जाय, नहीं उर ग्रानन्द मावै। दष्टि से महत्वपुर्ण रचना 'स्नेह पत्रावलि' सवैया, चोपाई, ज्यौ जल विछरयौ मोन, फेरि गगा जल पावें। भुजग प्रयात दोहा, छप्पय, सुन्दरी, त्रोटक मादि विभिन्न
कवि ने मित्र-धर्म के नाते अपने मित्र को कुछ लोकछदों में लिखी गई है। रचना में कही-कही संस्कृत के व्यवहार के सदेश भी भेजे हैशाकिन्यः श्रीन्द्रनन्दिः प्रथितगतिरसौ पातु मां
विन उदिम मन रहे न थिर, पाश्वनाथः ।। छ ।
कोटि जतन कोउ करो । पार्श्वनाथस्तवः समाप्तः ।। छ॥
तातै विधि लषि धीर धरि, "पुगतन जैन वाक्य सूची की प्रस्तावना पृ० १०६
उदिम को उदिम करो। ६:६ । ७ में इन्द्रनन्दी नामक ६ दि० ग्रन्थकारो का विवरण दिया निच काज्या रातिदिन जतन मान के भ्रात । है इनमे से 'ज्वाला मालिनी कल्प' के कर्ता इद्रनन्दी तीरथ जग मै जानिए गुरु बघू पित मात । ६:६ । प्रस्तुत पाश्र्वनाथ स्तोत्र के रचयिता होना सभव है। क्योकि
२. नव मगल-प्रस्तुत रचना प्रसिद्ध कवि विनोदी प्रस्तुत स्तोत्र मै भी मत्राक्षरो का समावेश है। मुख्तार लाल की है। डॉ. प्रेमसागर जैन ने विनोदीलाल का सा० ने इनका समय वि० स० ६६६ बतलाया है। जीवन-परिचय लिखते हुए उनके 'नेमि-राजुल बारहमासा'
चौथी प्रति समयसार की प्रात्मख्याति टीका की है। 'नेमि व्याह' राजुल पच्चीसी रेरवता मादि कई रचनाम्रो इसमें १८६ पत्र है प्र० ख० १४७७४२ इंच के हैं। का परिचय दिया है। 'नव मंगल' की दो प्रतियां हमें प्रति अच्छी स्थिति में है। इसे वि०१३वी के उत्तराद्धं अभी कोट मन्दिर चाकसू मे उपलब्ध हुई हैं। विनोदीलाल की बतलाई गई है। ग्रन्थ प्रसिद्ध होने से प्रादि अन्त के का प्रिय छद सर्वया उनकी अधिकांश रचनामों में प्रयुक्त उद्धरण यहाँ नही दिये जा रहे है ।
हुपा है । 'नव मंगल' एक प्रबन्ध गीत है। इसकी रचना