SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खभात के श्वे. भण्डार में प्राप्त तीन दि० प्रप्राप्त तारपत्रीय प्रतियां है। अन्तिम प्रशस्ति के कुछ श्लोक त्रुटित रूप में प्राप्त नत्वा ग्रंथं प्रवक्ष्यामि 'पंचसंग्रहदीपकम् ।। हैं । प्रारम्भिक श्लोकों से यह स्पष्ट है कि नेमिचन्द्र मुनि 'नेमिचंद्रमुनीन्द्रेण यः कृत: 'पंच संग्रहः । के पंचसंग्रह का यह श्लोकबद्ध संस्करण है। स एव श्लोकबंधन प्रव्यक्तीक्रियते मया ।। तीसरी रचना 'नागकुमार चरित्र' प्रति नम्बर २४६ बधको बध्यमानं च बंधभेदास्तथेसता। मे चौदहवी शताब्दी का लिखा हुआ है। पत्र संख्या १४ हेतवश्चेति पंचानां संग्रहोऽत्र प्रकाश्यते ।३। हैं । इसमें पंचमी महात्म्य के रूप में नागकुमार की कथा यस्तत्र बंधको जीव: सदसत्कर्मणां स्वयम्। पांच सगों में रत्न योगेन्द्र रचित है । वैसे नागकुकार कथा तत्स्वरूपप्रकाशाय विंशतिः स्युः प्ररूपणा ।४। सम्बन्धी अन्य लेखकों के कई ग्रंथ प्राप्त है पर 'रत्न गुणजीवाश्च पर्याप्तिप्राणसंज्ञाश्च मार्गणाः । योगेन्द्र' का ग्रंथ शायद अन्यत्र अप्राप्य हो। कम से कम इन उपयोगसमायुक्ता भवत्येता प्ररूपणाः ।। रचनामों की इतनी प्राचीन ताडपत्रीय प्रतियों का दि० मागणा-गुणभेदाभ्यां भवतो द्वे प्ररूपणे । शास्त्र भंडारों में होना ज्ञात नहीं है। मार्गणांतर्गताः शेषाः जोवमुख्याः प्ररूपणाः ।। खभात के श्व० शांतिनाथ जैन भडार की ताडपत्रीय पत्र ६५प्रतियों में से यहाँ ५ दि० ग्रंथों की प्रतियों का विवरण यदग्रपणि वेणी ललितपदगतिप्रोल्लसदभूरिभावदिया गया है इसी तरह अन्य दिग० भंडारो मे भी अन्य प्रव्यक्ता पे सार्थ प्रकटितसहजस्फारसार...। दिग. ग्रंथों की प्रतियां प्राचीनतम मिलेगी तथा उनमे तं वंदे योगिवंद्यं जिनपतिवदनाम्भोजनिर्यद्रहस्य, कुछ ग्रंथ ऐसे भी होंगे जिनकी प्रतियाँ दिग० भडारो मे भी सस्थं त्रलोक्य कोत्ति पुणमणिकिचय येन विज्ञायि।। नहीं हों, इसलिए दि० एव श्वे. दोनों संप्रदायो के भडारो श्रीमानसौ जगति नंदतु भव्यवधुर्ने मि: कलाका एक दूसरे को ध्यान से अवलोकन करना चाहिए। निषिरूप्तएधभाणक यत्कीत्ति निर्मलाकलाव . २ वर्ष पूर्व अहमदाबाद के श्वे० भडार मे यथा । क: साकौ बभूव भुवनेखिति सुप्रसिद्धम ॥२५॥छः।। स्मरण अमृतचन्द्र सूरि का एक अन्यत्र प्राप्त एव सर्वथा इति 'श्रीद्रवामि देव' विरचते 'पुरवाट' वंश अज्ञात प्रथ मुनि पुण्य विजय जी को मिला था जिसकी विशेषक श्री 'नेमिदेव' स्य यश.प्रकाशके 'पंचसंग्रहसूचना डा. A. N. उपाध्ये के देने पर वे बहुत ही दीपके' बंधकस्वरूप प्र (रूपणो नाम) प्रथमो प्रसन्न हुए थे एवं इसकी सूचना दिग० पत्रों में भी प्रका अधिकार ॥छ। शित हुई थी। अब खंभात भंडार की दिग० ग्रंथों की ताडपत्रीय शुभ भवतु चतुविध सघस्य ॥छ।। प्रतियों का विवरण दिया जा रहा है। पत्र ७७ (१) पचसंग्रह दीपक क्षणोक वंष इत्युक्तं बध्यमानस्य कर्माष्टकस्य लक्षणम् No. 139 Panchasangraha Dipaka Slokar मूलोत्तरप्रभेदेन यथोक्त पूर्वसूरिभिः ॥१४०॥ bandha. पंचसंग्रह दीपक श्लोक बंध । यः 'कर्मप्रकृतिस्थितिव्यतिकर' व्याख्यान दीक्षा गुरुFolios 104 Extent-Granthas 11:5 यश्चारित्रमाहाण्णवावधिगतो रत्नत्रयालंकृतः । Language-Sanskrit Size-9.7x25 Inches. दानं यस्य मनोरथावधि यशो नि:शेषलोकावधि Author-Bamideva Condition--good #faragrafer aftofarararaatarala: 11 Age M. S.--First paly of 13th exet U.S. भक्ति: श्रीगुरुपादपकनिजाहंकारसारावधिः । General Remarks-Folios 102-8 Missina. नेमि जोमणनंदनो विजयतामाकल्पकल्पावधिः ।। मादि : इति 'श्रींद्रवामदेव' विरचिते पुरवाट वंश विशे॥ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥६॥ षक 'श्री नेमि'देवस्य यश: प्रकाशके पंचसंग्रह सिद्ध शुद्धं जिनाधीशं नेमीशं गुणभूषणम् । दीपके।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy