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खंभात के श्वे० भण्डार में प्राप्त तीन दि० अप्राप्त
ताडपत्रीय प्रतियां
श्री प्रगरचन्द नाहटा जैन ज्ञान भण्डार अपनी बहुमूल्य और महत्त्वपूर्ण किया जा रहा है, जिनकी पांडपत्रीय प्राचीन प्रतियाँ खंभात सामग्री के लिए विश्वविख्यात है। जैसलमेर, पाटण, के श्वे. शान्तिनाथ भंडार में सुरक्षित है। खभात और बडौदा के श्वेताम्बर ज्ञान भण्डार मे ताड़. प्रागम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजय जी सम्पादित पत्रीय प्रतियो का महत्वपूर्ण संग्रह है। दक्षिण भारत मे खंभात शान्तिनाथ भंडार की ताडपत्रीय प्रतियो की विव. मूडबद्री, श्रवण बेलगोना आदि अनेक दिगम्बर ताइपत्रीय रणात्मक सूची' दो भागो मे ओरियन्टल इन्स्डीट्यूट भण्डार हैं। जब भारत मे कागज का विशेष प्रचार नही बडौदा से सन १९६५-६६ मे प्रकाशित हुआ है। उनमे था, तब ताडपत्रों पर ही ग्रन्थ लिखे जाते थे।
से दूसरे भाग में चार दिगम्बर ग्रथो की ताडपत्रीय प्रतियों जैसलमेर के विख्यात जिनभद्र सूरि भण्डार मे विशेषा- का विवरण छपा है। जिसमे प्रति नम्बर २६५ म समय वश्यक भाष्य की त उपत्रीय प्रति दशवीं शताब्दी की सार प्रात्मख्याति ब्याख्या सहित तेरहवी शताब्दी का है। इसके बाद बारहवी शताब्दी से पन्द्रहवी शताब्दी तक लिखी ?ई १८६ पत्रो की प्रति है। यद्यपि समयसार ओर की एक हजार से अधिक ताडपत्रीय प्रतिया उपरोक्त चार उसकी यह टीका बहुत ही प्रसिद्ध है। पर मेरे स्याल स्थानों में हैं। कागज की भी तेरहवी शताब्दी से प्रतियाँ दिग. भडागे में भी इस ग्रंथ और टीका की तेरहवी मिलने लगती है। जैसलमेर के भण्डार मे तेरहवी की शताब्दी की लिखी हुई प्रति प्राप्त नहीं है । अतः समयसार कागज की कई प्रतियां है। अन्यत्र चौदहवीं से मिलने
या ह। अन्यत्र चादहवा से मिलने और प्रात्मख्याति टीका के नये संस्करण सम्पादन में इस लगती है।
प्रति का उपयोग किया जाना अवाछनीय है। जैन ज्ञान भण्डरो मे केवल जैन ग्रंथ ही नही है, खभात भडार की अन्य तीन दिग. रचनामो की बौद्धों और वैदिक सम्प्रदायों के तथा सर्वजनोपयोगी विषयों ताडपत्रीय प्रतियां तो इसलिए विशेष उल्लेखनीय है कि के सैकड़ो जैनेतर ग्रथ प्रात है। उनमे कई तो ऐसे भी है ये रचनाएं अभी तक अज्ञात-सी हैं। इनमे से एक रचना जो अन्यत्र कही नहीं मिलते मोर कईयों की प्राचीनतम तो छोटी-सी है। और शुद्ध प्रनियां जैन भण्डारो मे ही मिलती हैं।
प्रति नम्बर १३४ में अन्य रचनाओं के साथ इन्द्र दिग० भण्डारी में श्वेताम्बर ग्रथ और श्वेताम्बर नन्दी रचित 'पाश्वनाथ स्तव' नव इलोकों का है । इन्द्र भंडारों में दिगम्बर ग्रथ भी अच्छे परिमाण मे प्राप्त हैं। नन्दी नाम के (8) कई विद्वानो का विवरण स्वर्गीय दिगम्बर भडरों में कई ऐसे श्वेताम्बर ग्रन्थ है जो श्वेता- जुगलकिशोर जी मुख्तार ने दिया है। उनमे से ज्वालाम्बर भंडारों में भी नहीं मिलते। इसी तरह श्वेताम्बर मासिनी कल्प के रचयिता इन्द्रनन्दी ही इस 'पार्श्वनाथ भंडारों में भी कई ऐसे दिग० प्रथ हैं जो दिग० भंडारों में स्तव' के कर्ता मालूम होते है। कहीं भी नहीं मिलते और कई दिग० ग्रन्थों की प्राचीन- दूसरा भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो प्रति नम्बर तम प्रतियां श्वे. भंडारों में ही सुरक्षित हैं। उनकी जान- १३६ में तेरहवीं शताब्दी का लिखा हुमा है इस ग्रन्थ का कारी दिग० विद्वानों को नहीं है। इसलिए प्रस्तुत लेख नाम पंचसग्रह दीपक' है इसके रचयिता (इन्द्र) वामदेव मे तीन ऐसी प्रशात दिग० रचनाओं का विवरण प्रकाशित है। पुन्नाटवंश के श्री नेमिदेव के लिए यह ग्रंथ रचा गया