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________________ चतुर्मास मध्य विहार : आचार्य श्री तुलसी की पृष्ठभूमि मोहनलाल बांठिया अणुव्रत अनुशास्ता प्राचार्य श्री तुलसी का इस वर्ष ने शहर की शान्ति कायम रखने के लिए प्रयत्न किए। का रायपुर चतुर्मास इतिहास में अनेक नये पृष्ठों का इसके लिए वे सफल नही हो सके। सबने मिलकर एक निर्माण करने वाला कहा जा सकता है। प्राचार्य श्री के मसविदा तैयार किया इसके प्राचार साम्प्रदायिक तनाव मानिध्य में प्रायः मध्यान्ह और रात्रि कालीन कार्यक्रम एवं हिंसात्मक उपद्रव रोकने की बात थी। ऐसा ज्ञात नियमित चल रहे थे। जनता किसी भेदभाव के लाभ ले हुआ कि प्रतिपक्ष ने वह स्वीकार कर लिया था। वह रही थी। रायपूर की भावक जनता के अनरोष पर प्राचार्य मसविदा पद्यपि प्राचार्य श्री के लिए पूरी तौर से अनकल श्री ने रामायण के सन्दर्भ में रविवासरीय प्रवचन प्रारम्भ नही था फिर भी शान्ति स्थापना मे यदि सफलता मिलती किये। है तो आपने उसके लिए भी अपनी स्वीकृति दे दी, किन्तु दिनांक १६ अगस्त १९७० को अपने प्रवचन में प्राप प्रतिपक्ष ने बाद में उसे भी अस्वीकार कर दिया। ने सीता के परित्याग की चर्चा की। यह चर्चा "अग्नि अन्तिम विकल्प के रूप मे एक अन्य मसविदा पुनः परीक्षा" के माध्यम से की गई । "अग्नि परीक्षा" प्राचार्य तैयार किया गया। प्राचार्य श्री के समक्ष जब प्रस्तुत श्री का एक 'गीत काव्य' है। रामायण के उत्तरवर्ती कथा किया गया तो लगा कि यह सैद्धांतिक दृष्टि से भी प्रतिप्रसंग का उममें विशद विवेचन है। "अग्नि परीक्षा" की कूल है । प्राचार्य श्री ने कहा- "सैद्धातिक दष्टि से प्रतिसजना जैन रामायणों के प्राचार पर की गई है। प्राचार्य कूल होने के कारण मैं इसे कैसे स्वीकार कर सकता हूँ? प्रीमोला मै नही समझ सकता कि जब पहला मसविदा मैने स्वीकार फैले हुए जनापवाद का चित्रण किया। कुछ असामाजिक करा __कर लिया था तब दूमरे मसविदे की क्यो प्रावश्तकता एवं अराजक तत्वों ने इस पहल को अपना शस्त्र और हुई ? नित नये मसविदों का क्या अर्थ होता है ? मैं बनाया और जनता में यह भ्रान्ति प्रसारित की कि अहिंसा, समन्वय और शान्ति मे िश्वास रखता है। वैसी प्राचार्य श्री तुलसी ने सीता के चरित्र पर प्रारोप मौर स्थिति मे मेरे साथ यह मसविदों की राजनीति क्यो खेली असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग किया है । यद्यपि प्राचार्य जाती है ? मेरी प्रात्मा साक्षी नही देती कि मैने जानश्री ने इसका सष्टीकरण भी दिया कि वे भयवान राम । बूझकर कोई भूल की है। वसी स्थिति मे मुझे बाध्य और महासती सीता को परम वदनीय मानते है, किन्तु __ क्यों किया जाता है ?" इससे विरोध शान्ति नही हमा। विरोधी पक्ष ने जनता इस प्रकरण के साथ मसविदे के प्रयत्नों का अध्याय मे साम्प्रदायिक भावना उभारने का तीव्र प्रयत्न किया। पूरा हो गया। शहर की स्थिति खतरनाक मोड ले रही स्थान-स्थान पर जन सभाए प्रायोजित की गई । भद्दे थी। कुछ नहीं कहा जा सकता था कि किस समय और और अपशब्दों का खुल कर प्रयोग व प्रदर्शन हुमा। कहाँ पर हिंसा भड़क उठे। साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति क्रमशः यहाँ तक बढ़ी कि दिनांक २७ सितम्बर को प्रतिपक्ष की ओर से एक स्थिति किस समय हिंसात्मक उपद्रव का रूप ले ले। जुलस का आयोजन किया गया था । यद्यपि जिलाधीश इसके लिए कुछ भी नहीं कहा जा सकता था। प्रशासना- के समक्ष प्रतिपक्ष ने यह स्तीकार कर लिया था कि वे धिकारियो, जन नेतामो एवं शहर के वरिष्ठ नागरिकों जुलूस नहीं निकालेंगे किन्तु कुछ अराजक तत्व शहर की
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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