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१४२, वर्ष २३ कि०३
अनेकान्त
(राजस्थान) के कोटो (वघेरवालों) के शास्त्र भडार के रेहंस गमणीय मृगनयणीय स्तवण झाल झवृकती। गुच्छक न० १०४ मे १४४ पत्रात्मक है और सं० १६४४ तप तपिय तिलक ललाट, सु.दर वेणीय वासुडा लटकती। का लिखा हुआ है। इसमें भगवान नेमिनाथ का जीवन- ललिकय चूड़ीय मुखि बारीण नयन कज्जल सारती। परिचय दिया गया है। जो २८६ पद्यों म समाप्त होता मालतीय मेगलमास पासो इम बोली राजमती ॥३ है। गीत की रचना सवत् १५८१ मे वसवालपुर (वास- .
पास कवि की तीसरी रचना भी नेमिनाथ गीत है। गीत केवल वाडा) मे हुई है। जैसाकि उसके निम्न पद्य से प्रकट है।
५ पद्यो मे रचा गया है। गीत मे राजुल नेमिनाथ को संवत् पनर एकासीह जी बंसबालपुर सार।
बुलाती हुई उनकी वाट जोह रही है। नेमजी प्राव ने गुण गाया श्री नेमिनाथ जी,
घरे घरे। बाटडीया जोइ सिवयामा डली रे। नव निधि श्री संघवार हो स्वामी ।
कवि की चौथी रचना भी नेमिनाथ गीत है, यह सब गीत में राजुल की सुन्दरता का कथन करते हुए उसे गीतों में बड़ी रचना है, ओ ६० पद्यो मे समाप्त होती है। मगनयनी और हंसगामनी बतलाया है। जैसा कि उसके इस में नेमिनाथ के विवाह की घटना का सुन्दर सजीव निम्न पद्य से प्रकट है -
वर्णन है।
[ शेष पृ० ४० का ] डाला है उसके लिए उन्हे हार्दिक बधाई है। अपने शोध जावेगा ऐसी मुझे पूर्ण प्राशा है। इस पुस्तक मे राजग्रन्थ से लेखक ने विभिन्न सम्प्रदायों के कवियो राजस्थानी स्थानी भाषा और उसके साहित्य के प्रति हमारी जो भाषा की जो अविस्मरणीय सेवाए की हैं उन्हे प्रकाश में उदासीनता है वह अवश्य दूर होगी तथा जनता और लाने का मार्ग खोल दिया है ।
सरकारी क्षेत्रों में वह पुनः समाद्रत होगी, ऐसा मेरा शोध-प्रबन्ध की भाषा एवं वर्णन शैली दोनो ही विश्वास है। डा. माहेश्वरी ने अपने शोध ग्रन्थ को दो प्राज्जल हैं । पुस्तक की प्रस्तावना प्राचार्य परषुराम चतु- भागो में प्रकाशित कराया है जिसकी पृष्ठ संख्या १२०० है बंदी ने लिखी है । पुस्तक का सभी ओर से स्वागत किया और उसका मूल्य १०० रु० है । इसमे ११५ चित्र है। .
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