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________________ ब्रह्म यशोधर परमानन्द जैन शास्त्री ब्रह्म यशोधर-भट्टारक यश:कीर्ति के शिष्य और गए । दोनो ने साधु से प्रार्थना की, दीन वचन कहे । विजयसेन के शिष्य थे, जो गममेनान्वय मे प्रसिद्ध काप्ठा- चरणो मे लगे और क्षमा करने की प्रार्थना की किन्तु सघ और नन्दि नट गच्छ के विद्वान थे। पापकी एक सब व्यर्थ क्योकि मुनि का क्रो। चरम सीमा को पहुँच मात्र कृति बलभद्रगस उपलब्ध है जिसे कवि ने स० चुका था। भवितव्य को कौन टाल सकता है ? उनके १५८५ मे स्कन्द नगर में बनाकर समाप्त किया था। तेज से द्वारका भस्म होने लगी, केशव और हलधर ने ग्रन्थ मे १८६ पद्यों में कवि ने बलभद्र का जीवन-परिचय माता पिता प्रौर कुटुम्बियो को बचाने का प्रयत्न किया अंकित किया है । रचना मे गुजराती भाषा का प्रभाव किन्तु वे किसी को भी नही बचा सके। अन्त मे प्रयत्न स्पष्ट है । कृति अप्रकाशित है और वह पंचायती मन्दिर कर समुद्र का पानी लाये तब उसने भी अग्नि मे तेल दिल्ली के वृहत्काय गटके में लिखा हुआ है जिसमे सं० का कार्य किया। द्वारिका भस्म होते ही वह मुनि भी १६१६ से १६६० तक की रचनाएँ लिपि बद्ध है। भस्म हो गया। केवल कृष्ण और बलदेव बचे। कवि ने बलदेव और कृष्ण का जीवन परिचय प्रकित कृष्ण और बलदेव वहां से जगल में जा रहे थे। । करते हुए द्वीपायन द्वारा द्वारिका के विनाश का चित्रण किन्तु रास्ते में कृष्ण को प्याम ने सताया और बलदेव से किया है । २२वे तीर्थडुर नेमिनाथ द्वारा जब कृष्ण और पानी लाने के लिये कहा, बलदेव पानी लेने गये । इतने द्वीपायन को यह जान दया कि १२ वर्ष में द्वीपायन द्वाग मे उस वन मे जगत्कुमार आये और कृष्ण को पीताम्बर द्वारिका का विनाश होगा और कृष्ण बलभद्र शेष बचेगे। प्रोढे पडामा देखकर वनचर जीव समझ बाण मारा इसे सुनकर द्वीपायन दूर देश में तपस्या करने चला गया। जो कृष्ण के पैर मे लगा । जब ज कुमार पास में पाये और वहाँ तपश्चरण करते हुए उन्हे लौड माम (अधिक और कृष्ण को वेदना रो विकल देख कर बड़ा दुःख प्रकट माम) महीने का ध्यान नही रहा । और यह समझ कर कि किया । तब कृष्ण ने कहा रे मूढ गमार, तूने पाप किया है बारह वर्ष का समय बीत चुका है. द्वारावती के पास वन हे वत्स अब तू खंद मत कर, जब तक बलदेव नही पावे मे पागए। यदुवंशी कुमार वहा क्रीडा करने गये हुए थे, उससे पहले ही तू यहा में चला जा तब जरत्कुमार दक्षिण उन्होने मद्यपान किया और मुनी देखकर उनके प्रति प्रशिष्ट मथुरा चले गए। जब बलभद्र पानी लेकर पाये, तब कृष्ण वचनो का प्रयोग किया । जिसस साधु का मन क्षुभित हो से कहा उठो पानी पीलो, परन्तु वहा कृष्ण कहा, वे तो गया । कुमारी ने उक्त घटना केशव से कहीं। तब कंगव परलोक पहुंच चुके थे। उन्हें देख बडा विलाप किया और पौर हलधर दोनो मुनी से क्षमा कराने के लिये बन में उनके शव को सिर पर रख कर धमते रहे, अन्त मे एक १. सवत पनर पच्यासीर, स्कन्ध नगर मझारि। मुनि ने ससार की प्रसारता का भान कराया तब उन्हे भवणि प्रजित जिनवर तणी, ए गुण गाया सारि ॥१.८ भी बराग्य हो गया और अन्त में तपस्या करते हुए २. पाप कर्म त कहीकुमारा, पहुँचा द्वारिका नगर मझार। निर्वाण प्रप्त किया। उन का क्रिया कर्म किया। इस केशव मागे कही तणो बात, द्वापायन अम्हे ताहिउ तात ॥ तरह यह कृति सुन्दर है, भाषा पर गुजराती का प्रभाव दूहा-कुमर जवाणी माभली, केशव परि प्रणाहि। है। प्रवहउ प्रक्षर जे लखा, ते किम पाछा थाग ।। कवि की दूसरी कृति 'नेमिनाथ गीत' है जो नणवा
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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