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१४४, वर्ष २३, कि०३
अनेकान्त
शान्ति में विघ्न डालने का प्रयत्न कर रहे थे। उन्होंने कहा-अब हमारे लिए कहने की कोई बात ही नहीं जलस निकालने का निर्णय कायम रखा। जुलस प्रारम्भ रही। इससे अधिक और ग्राप क्या कर सकते है ? हमा । प्रायोजकों ने अधिकारियो के पूछने पर यह भी प्राचार्य श्री की घोषणा की मर्वत्र गहरी प्रतिक्रिया नही बतलाया कि वह किस मार्ग से जायेगा। प्रतः गहर हई। केवल गयपूर में ही नही अपितु सारे देश में इसका की शान्ति को खतरा उत्पन्न होते देखकर जिलाघाश ने असर हमा। रायपूर की भावक जनता की प्राखो से धारा १४४ की घोषणा कर दी। लोगो ने उसका उल्लं.
अविरल प्रासुमो की धारा बह चली। कई तो अपना घन करने का प्रयत्न किया। इसके फलस्वरूप ८८ व्यक्ति
खान-पान और होश-हवास तक भूल बैठे। बुद्धिजीवी वर्ग गिरफ्तार हुए।
को भी इस निर्णय ने झकझोर दिया। शहर के वरिष्ठ रात्रि में शहर के सभ्रात नागरिको का एक शिष्ट- नागरिकों के समूह प्रतिदिन प्राचार्य श्री के पास पाकर मण्डल प्राचार्य श्री के सानिध्य मे उपस्थित हुा । उन्होने निवेदन करने लगे कि प्राप चले जाएगे तो रायपुर के ही कहा-प्राचार्य श्री। शहर में हिसा भड़क उठी है। नही अपितु सारे मध्यप्रदेश के मुह पर कलंक लग जाएगा। चिनगारी दावानल का रूप ले रही है। अब इसके शमन मिकी
सिंघी, गुजराती, पजाबी, सतनामी, आदि विभिन्न वर्गों का उपाय न हमारे हाथ में है और न प्रशासन के हाथ
के लोग बडी संख्या मे पाते । उनका द्रवित हृदय देखकर मे ही। अतः पाप ही इसके समाधान का कोई मार्ग
दूसरे भी द्रवित हो जाते । सबको एक ही आवाज थी कि प्रस्तुत करे।
आप रायपुर से प्रस्थान करने की घोषणा को वापस ले पाचार्य श्री ने इस अवसर पर कहा-मैं आपका लें। जैन समाज के लोग भी अनेक बार पाए। उन्होंने सद्भावना से प्रसन्न हूँ। मेर लिए प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा
श्री सघ की ओर से कहा कि संघ निर्णय तो पापको का प्रश्न मुख्य नहीं है। यदि शान्ति स्थापना के लिए
मानना ही होगा। इस सारे प्रकरणो मे प्राचार्य श्री का मेरा शरीर भी चला जाए तो मै उस ज्यादा नही
___ एक ही उत्तर होता कि मुझे अपने निर्णय की अब भी मानता । मुझे निमित्त बनाकर हिंसा का वातावरण उभर
वैसी ही उपयोगिता महसूस होती है। जितनी की पहले रहा है, इसका मुझे दुख है। मेरे रहने से यदि रायपुर
थी। जब मै अपने निर्णय की उपयोगिता महसूस करता का वातावरण प्रशान्त होता है तो में यहाँ से विदा हो
हूँ तब उसमे परिवर्तन के लिए कैसे सोच सकता हूँ। जाना चाहता हूँ। यह निणय में किसी प्रावश, दबाव,
देश के वरिष्ठ व्यक्तियो ने भी प्राग्रह पूर्वक अनुरोध भय या प्राग्रह के कारण नहीं कर रहा है। किन्तु शहर
९ किया कि आप अपना चतुर्मास गयपुर मे ही सम्पन्न करें। की शान्ति के लिए कर रहा हूँ। यद्यपि हमारा विधि है उनका प्राशय था कि इस प्रकार चले जाने से साम्प्रदायिक कि हम चतुर्मास मे बिहार नही करते किन्तु विग्रह और में
और अराजक तत्वो को खुल कर खेलने का प्रोत्साहन प्रातक की विशेष परिस्थिति में वैसा किया भी जा मिलेगा
या भी जा मिलेगा। अतः यही रह कर उनके दामन का उपाय किया सकता है । मैं यहा से विदा हगा। हमारे धर्म शासन मे
जाए । अनुरोध करने वालो मे गुजरात के राज्यपाल श्री शताब्दी मे यह पहली घटना होगी। मे जानता हूँ कि ।
श्रीमन्नारायण, राजस्थान के मुख्यमत्री श्री मोहनलाल जी श्रद्धालुओं के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न हो
सुखाडिया, मध्यप्रदेश के मुख्यमत्री श्री श्यामाचरण शुक्ल सकता है किन्तु शहर की शान्ति के लिए अत्यन्त प्रसन्न प्रमुख थे। भारत की प्रधान मत्री श्रीमती इदिरा गाँधी मन से मैने यहा से विदा होने का निर्णय लिया है। को दिल्ली में जब मुनि श्री नगराज जी मोर मुनि श्री
शहर के बढ़ते हुए हिंसात्मक वतावरण को शान्त सुशील कुमार जी से सारी स्थिति की जानकारी प्राप्त करने के लिए अहिंसा के अतिरिक्त कोई साधन नही था। हई तो उन्होने इसमें हस्तक्षेप किया और प्राचार्य श्री से प्राचार्य श्री की घोषणा ने सचमुच अहिसा की शक्ति का रायपुर मे ही चतुर्मास बिताने का निर्णय लेने को कहा। चामत्कारिक परिचय दिया। उपस्थित सभी व्यक्तियों ने प्रधान मंत्री ने रायपुर के जिलाधीश को भी इस सम्बन्ध