SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३वीं शताब्दी के विद्वान हरिभद्र : एक अध्ययन परमानन्द शास्त्री हरिभद्र-नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं । प्रस्तुत हरिभद्र किया है। मानसरोवर पर अश्वसेन एक किन्नरी को उनसे भिन्न विद्वान है जिनका परिचय नीचे दिया जाता है- मधुग्कंठ से कुमार का गुणगान करते हुए सुनता है, उसी यह श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के विद्वान थे । जो से उसे सनत्कुमार का इतिवृत्त ज्ञात होता है। इस बीच बड गच्छीय जिनचन्द्रमूरि के प्रशिष्य और श्रीचन्द कुमार का अनेक रमणियो से विवाह हो जाता है। मदमूरि के शिष्य थे । प्राकृत सस्कृत और अपभ्र श के अच्छे नोत्सव पर वह जिस युवती पर मुग्ध हुए थे उसे कोई विद्वान थे। कवि की दो कृतिया प्राकृत भाषा मे उप- एक यक्ष हर ले गया था। उन दोनो का यहां मेल हो लब्ध है, मल्लिणाहचरिउ और चदप्पहचरिउ। इन जाता है और दोनो विवाह बन्धन मे बध जाते हैं । कुमार दोनो चरित ग्रथो मे जैनियो के आठवे और १९वे तीर्थ- के इन भोगमय जीवन के बाद उनके अनेक वीर और हुगे का चरित दिया हुआ है। पाटण के भडार में पराक्रम कार्यों का वर्णन किया है। इसी वीच मुनि प्रचिचदप्पह चरिउ की सं० १२२३ की लिग्यो हुई एक ताड- माली कुमार के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त सुनाते हैं। पत्रीय प्रति विद्यमान है : कवि की तीसरी कृति णेमि- इसके बाद कुमार के अनेक विवाहो का वर्णन है। णाह चरिउ है, जिसका एक अश सनत्कुमार चरित के इतने में कुमार का बाल्य सखा महेन्द्र वहाँ पहुँचता है। नाम से प्रकाशित हो चुका है । अर्थात् नेमिनाथ चरित के और उससे अपने मात-पिता की दुर्दशा का समाचार सुन ४४३ पद्य से ७८५ पद्य तक ३४३ र इडा छन्दों में सनत्- कर दोनो गजपुर लोट पड़ते है। कुमार चम्ति मिलता है-जिसमें बतलाया गया है कि कुमार का पिता अश्वसेन उसे राज्य देकर देह-भोगों सनत्कुमार गजपुर के राजा अश्वसेन और उनकी रानी से विरक्त हो जाता है। कुमार समस्त पृथ्वी को वश सहदेवी के पुत्र थे। वे धीरे-धीरे शिक्षा प्राप्त कर युवा- करता हा चक्रवर्ती पद पाता है। उसके अमित तेज वस्था को प्राप्त हुए। एक दिन मदनोत्सव के अवसर पर और सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। अन्त मे सनत्कुमार उद्यान में एक स्त्री को देख कर मोहित हो गये । युवती अपने रूप को अस्थायी समझ ससार से विरक्त हो घोर भी उनके सौन्दर्य को देखकर आकृष्ट हो गई। दोनों का तप करते हैं और परिणाम स्वरूप स्वर्ग प्राप्त करते है। जब मदनायतन मे मिलाप होता है तब दोनों परस्पर मे सनत्कुमार चक्रवर्ती का यह चरित्र सून्दर एवं पावन अपनी-अपनी प्रेम भावना प्रकट करते है। बीच मे भोज- है। कवि के कथानक मे बहुत कुछ स्वाभाविकता है और राज पुत्र, जलधि कल्लोल नामक एक प्रसिद्ध घोड़ा वह वह वीर और शृगार वर्णनो से युक्त है । कवि का काव्यसनत्कुमार को भेट करता है । एक दिन कुमार उस घोड़े ___ मय वर्णन विशेष प्राकर्षक है। पर सवार होते है, तब वह घोड़ा उन्हे लेकर पवन समान नेमिनाथ चरित मे जैनियों के बाइसवे तीर्थकर नेमिगति से दूर देश ले जाता है। इधर राजधानी मे कोलाहल नाथ का जीवन-परिचय प्रकित किया गया है। ग्रन्थ के और हाहाकार मच जाता है। सनत्कुमार का मित्र अश्व- प्रथम भाग में नेमिनाथ और राजमति के नौ भवों का सैन उसकी खोज में निकलता है। और ढूढ़ता भटकता सविस्तार वर्णन दिया हुआ है । और दूसरे भाग में उक्त हा वह मान सरोवर जा पहुँचता है, बीच मार्ग मे अनेक तीर्थर चरित के पूर्व उनके चचेरे भाई श्री कृष्ण पौर भीषण वन पाते है, अनेक ऋतुए अपनी मोहकता के पाण्डवों का चरित प्रकित् किया गया है। पूरा ग्रन्थ लिए उसके प्रागे पाती है जिनका कवि ने सरस वर्णन ८०३२ श्लोकों में पूर्ण हुआ है। हरिभद्र ने अपने इस
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy