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________________ १३६, वर्ष २३, कि.३ अनेकान्त पंकन में मनशिश का मातृस्नेह है। अथवा माता का पूछ ली थी। बाजार मे सेठ को देखते ही पहिचान लिया। वात्सल्य । सेठ के पूछने पर गाड़ी का दाम दो मुट्ठी भर पैसा बतला उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथा रूढियो पोर दिया। मेठ ने सोचा कि यह कल वाले बाबे से ज्यादा कला रूढ़ियों से उनके अभिप्राय निश्चयन भिन्न है। भोला है। अतः शीघ्र ही हवेली में ले जाकर कहा प्रसंगतः रुति और कथ्य के भेद को स्पष्ट कर लेना बोहनी के समय पहले दाम पल्ल मे बान्ध ले फिर गाड़ी उचित होगा। जीवन में अनुभवों की रूढस्थितियो, वर्ज- खोलना और जल्दी भीतर जाकर दोनो मूट्रियो मे एकनाएं जिन्हें जीवन हित में स्वीकार किया है। वे समाज एक पैसा बन्द करके ले पाए। चौधरी के बेटे के पास विकास क्रम में निश्चित हुई है। समाज में ऐसे लोगो पाकर बोले-ले, ये दाम हाथ मे भेल । सेठ दाम देने की उपस्थिति जो अपनी पूर्तता व चालाकी से, अन्य सीधे मुट्ठी खोलने वाले ही थे कि चौधरी के बेटे ने झट लपक एव निष्कपट व्यक्तियो को ठग लेते है। उनके लिए उन्ही कर उनके हाथ पकड़ लिए। कमर में खोंसा तीखा हँसिया के ढग से पेश माने वाला व्यक्ति ही उन्हे सबक देता है। बाहर निकाल कर बोला-सेठ पैसे मुट्टियो से नीचे मत नरका जीवनानुभव रूविगत रूप में लोक कथाम्रो गिराइए। ये तो साथ रहेगे। लकडियो के साथ बैल व में पाया जाता है। इन कथामो में अक्सर परिवार गाड़ी बिकते है तो पैसो के साथ मुट्रियां कटेगी। तब सेठ सदस्य पिता, पुत्र, भाई ठगाये जाते है। और बहुत रोया गाया और उसने पहले ली गाडी बैल के अतिबाद में उसी परिवार का कोई चतुर सदस्य उस ठग को रिक्त पाच सौ रुपये दण्ड के देकर पिड छडाया। ही चालाकी से ठग कर सबक देकर, न केवल पूर्व ठगी उपरोक्त कथा की थीम 'जैसे को तैसा' है तथा इसमे सम्पत्ति को लौटाता है वरन कुछ नया भी ले पाता है। यह कथानक रूढ़ि है बुरे का फल कभी न कभी अवश्य पानी की एक कथा द्रष्टव्य है'-'बनिये का गुरू': मिलता है। 'पत्ताभर दल भत्ता' एव अन्य लोक कथाओं के रीवाबा, अपने गाव से लकडियो की गाडी भर कथ्य व मढिया इसी प्रकार की है। पास के नगर में बेचने गया। एक सेठ लकड़ियाँ इसी प्रकार की एक और कथानक रूढि है जिसका खरीदने प्राया। पूछा-बाबा, गाडी का क्या मोल? सम्बन्ध मनुष्य की दमिन इच्छामो के अभिप्राय से है चोधरी ने कहा-एक ही बात बता दू, पाच रुपये लूगा। किसी न किमी माध्यम से प्रगट होती है। पर जीवन ने कमी-बेसी करना मत । सेठ ने राजी होते हुए कहा गाड़ी मानव को सिखाया कि उसे अपनी सामर्थ्य और उनकी लीले चल । जब चौधरी लकडी खाली कर अपनी सीमानो का ख्याल रहना चाहिए। 'जितनी चादर उतना साल लेकर चलने लगा तो सेठ ने धमका कर कहा पैर फैलाने वाला मुहावरा भी यही कहता है। कि मैंने गाडी का मोल किया था। उस समय गाडी मे लोक कथाएँ जीवन की ही सहज अभिव्यक्ति है। बैल भी जूते घे लकडिया भी थी। चौधरी ने बहुत कहा, इसलिए इनमे से अभिप्रायो, रूढ़ियो से कथा के कथ्य पर सेठ अड़ा रहा । अन्त में चौधरी पाच रुपये में गाड़ी, (जो जीवन की इन अभिव्यक्ति का ही निमित्त है) को बल और लकडियां छोड कर घर पा गया । घर पर अलग करने में प्रायः चूक हो जाती है। जैसा कि विचार उसके पूत्रों ने पूछा । उसने सारी स्थिति बतलायी। तीन कर चुके हैं कि रूढि हुई सभी वर्जनामों का अर्थ भी ताकतवर लड़के सेठ को मारने चले तो चौथे लड़के ने जीवन से ही है । सामर्थ्य व सीमा को याद दिलाने वाली भनेक लोक कथाएं राजस्थानी में है। उन्हें रोक दिया और कहा मैं ही काफी है। इस कथा में अपनी स्थिति के अनुसार रहने के जीवचौधरी के लड़के ने एक गाड़ी में लकड़ी लादी और नानुभव को रूढि का प्रयोग है। थीम 'महत्वाकांक्षा' है। उसी नगर चला। उसने सेठ की हवेली व सेठ की हुलिया थीम तो अभिप्राय और रूढियों को प्रगट करने के लिए १. विजयदान देथा द्वारा सम्पादित बाता री फुलवाड़ी बने कथा जाल का संवाहक या निमित्त मात्र होता है। माग से। [राजस्थानी भारती से सामार]
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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