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राजस्थानी लोककथानों में अभिप्राय और कथानक रूढ़ियों की सीमा रेखाएं
बना लेते है वे किसी उपग्रह की तरह, सौर्यमण्डल (अभि- मूलवृत्ति की सहज घटित घटनाएँ हैं जिन्हे मात्र माज के प्राप) के प्रश होने पर भी अपनी सत्ता विज्ञापित करते नैतिक चश्मेको पहिन कर देखना, समझना उचित न होगा। रहते है।'
___ काल, सन्दर्भ, सम्बन्धो की विभिन्नता पर दुहरायी प्रभप्राय पर कार्य करने वाले पाश्चात्य और प्रायः
जाने वाली घटनाओं ने इस कामेच्छा के मूल अभिप्राय सभी भारतीय विद्वानों ने अभिप्राय को 'टाइप' समझ कर
को रूढ कर दिया और फिर ये भारतीय कथामों की वर्गीकृत किया है। उन्होने अभिप्राय और रूढ मे कोई
स्थायी रूढ़ियाँ बन गयी। जिनके प्रस्तुतीकरण मे कथाभेद नही किया है । फे जर द्वारा किये वर्गीकरण के कुछ
कार ने शिल्प का सहारा अवश्य लिया है । कामेच्छा का अभिप्राय दृष्टव्य है
यह अभिप्राय अपने मूल रूप मे सुरक्षित रहा है। (१) किसी स्त्री के पास उसके पति का रूप धारण
श्री फ्रेजर, ब्ल मफील्ड के 'टाइप' के प्राधार पर करके जाना। (२) कुतिया और मिर्च मिला हुप्रा मांस खण्ड ।
अभिप्राय वर्गीकरण और उनके सामने दोनो की भेदक (३) किसी स्त्री को प्राप्त करने की इच्छा रखने
रेखा का स्पष्ट न होने से, मुझे उनकी समझ के सम्बन्ध वाले प्रेमियो की उस स्त्री द्वारा दुर्गति ।
मे कोई सन्देह नहीं है। इसके लिए यह कहा जा सकता (४) कुलटा स्त्रिया ।
है कि उनकी दृष्टि के मूल मे स्वदेश का लोकजीवन, फेजर ने उपरोक्त 'कामेच्छा' या 'कामवेग' अभि
साहित्य व संस्कृति रही है। उस आधार पर विशाल प्राय का वर्गीकरण कथा मे पाई घटना साम्य (रूढ़ियो)
भारतीय लोक जीवन की व्याख्या करना उनके लिए के 'टाइप' के प्राधार पर किया है इसी तरह 'टाइप' के
असम्भव तो नहीं पर दुष्कर अवश्य रहा है। लोकजीवन प्राधार पर ब्लूमफील्ड ने 'जोसेफ एण्ड पोरिफरस वाइफ
साधारणतः पत्नी का पति के पैर दाब कर, उससे पिट इन हिन्दू तिक्सन'। एव अन्य (१) इको वर्ड मोटिफ,
कर उसमे सुख पाना और पति प्रेम की उपलब्धि मानना, (२) शिवि मोटिफ, (३) प्रोग्रेसिव मोटिफ, (४) माइनर
यह पाश्चात्य विज्ञों के लिए 'नानसेन्स' या 'फिने टिक' ही मोटिफ, (५) प्रोग्रेसिव माइनर मोटिफ आदि उपलब्ध
लगेगा। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उन्होने एक ही ग्राधार की कथा प्रयुक्त रूढ़ियो के आधार पर
भारतीय मूर्तिकला अथवा चित्र के माध्यम से इन्हें समवर्गीकरण किया है।
झने का प्रयत्न किया हो। और एक ही 'टाइप' के अंकन कामकारका मनस्य की प्रादिम बत्ति को देखकर (घटना पाने के समान) उन्हे विभिन्न अभिचाहे वह मानव प्राक् ऐतिहासिक रहा हो, प्रस्तरकालीन प्राय मान लिया अथवा-बडोदा म्यूजियम में दो मूतियो अथवा ताम्रकालीन या अब तक सभ्य होने तक का। का सदर्भ है । एक मूति मे स्त्री के कूल्हे पर बालक खड़ा यमी का अपने सहोदर यम से रमण करने के लिए याचना है और वह अपनी मा का कान खीच रहा है।' दसरी करना, वृहस्पति पूत्र कच मे शक्राचार्य पुत्री देवयानी का मूर्ति मे बालक कमर मे बैठा अपनी मा के स्तन छ रहा प्रणय निवेदन, पाराशर मुनि का सत्यवती पर कामविमो- है।' इस पर चर्चा करते हुए लेखको ने इसे 'कान खीचने हित होकर रमण करना, इन्द्र का गौतम पत्नी अहिल्या वाला बालक' और 'मा का स्तन छुने वाला बालक' से रमण करना, प्रापस्तम्भ धर्म सूत्र में गुरुपत्नी से बला. अभिप्राय है जो ५वी ६ठी शती में प्रचलित थे जब कि त्कार का दण्ड विधान अथवा किस्सा 'रूपबसन्त' की दोनो मूर्तियो मे अप्रिाय वात्सल्य का अंकन है। दोनो के सौतेली मां का बेटे को रमण प्रामन्त्रण देना इत्यादि उस १. Journal of the Indian Socteey of Orientai १. ब्लूमफीर ने कथानक रूढियों अथवा अभिप्रायो का Art : Editor : U. P. Shah and Kalyan K. मध्ययन करते हुए कई निबन्ध लिखे है।'
Gangal (Special number "Western Indian -माध्यमयुगीन साहित्य हिन्दी का लोकतात्विक अध्ययन Art") Page 29.
-डा० सत्येन्द्र पृष्ठ ४८६ २. वही पृष्ठ ७८ ।