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१३४ वर्ष २३, कि० ३
अनेकान्त
में खोटे कर्म किए जभी तो भूत योनि भुगत रहे हो। भूत को बाबा न कह कर 'मामा' जैसे ममत्वपूर्ण सम्बन्ध भूत पश्चाताप करता हुमा बोला-मुझसे भूल हो गई। जोडकर, उमके निरापद हो जाने के लोक विश्वास का फिर उसने पेट भर हलुपा खाया।
निरूपण है। उसके अनुसार यदि 'बाबा' प्रकट हुए तो उस लडके ने भूत को प्रसन्न कर लिया और फिर झट मामा कह बैठेगे । फिर 'बाबा' भाजे पर हाथ छोड़ने उसके मारने का अवसर ढूढने लगा। भूत बना बनाया का साहस थोड़ा ही करेंगे ?' इसी तरह यह विश्वास भी खाना खाकर घमने निकल जाते । लड़के ने अकेलेपन की रूढिगत हो चुका था कि 'बदले को प्रेरित करने के लिए बात कह घर लौटने की बात कही। भूत इस बात से चुनौती देना' जिससे कथा नायक कुटुम्बियों की मृत्यु का परेशान हुमा उसने घर पर ही रहने का वचन दिया। बदला लेने का दृढ़ सकल्प करता है। यह रूढि कथायो मे पर उस दिन अमावश्या थी भत शाम को खाना खाकर बहत प्रचलित है। लोक महाकाव्य माल्टा मे प्राल्दा चलने लगा तो लडके ने उसके वचन को याद कराया। और ऊदल को इसी तरह उनके मामा 'माहिल' ने 'करिया' उसने कहा सिर्फ एक रात बाहर रहूंगा। "प्रमावश की द्वारा मारे गये पिता के बदले के लिए चुनौती दी थी। रात हम सारे भूत, पलीत, जिन्द, खवास, राक्षस, दत्य इससे यह स्पष्ट ही है कि 'अभिप्राय' कथा रूढ़ि पोर कथायमराज और विधाता सब इकट्ठे होकर सलाह करने
प्रयोजन से एकदम भिन्न है । मनष्य योनि मे किसके मरने की बारी है, सभा करते हैं।" कथा रूढिया कथानक रूढि से अभिप्राय को अलग इस पर लड़के ने अपनी और अपने मृत परिवार के लोगों
समझा जाना चाहिए। जीवन के इतने बड़े 'फेज' मे की प्राय के सम्बन्ध में पुछवाया। भूत ने विधाता से मानव ने असंख्य अनुभव किये, उसमे सशोधन और परिपछकर बताया कि उसकी प्रायु अस्सी वर्ष तथा परिवार वर्घन भी हए। उदाहरण के तौर पर-प्रादिम मानव ने के लोग पुनर्जीवित होगे। लड़के ने भूत से उसके जीवन जीवन की रक्षा के लिए पहले पत्थर के औजारों का की चिन्ता प्रकट करके उसके जीवन का रहस्य पूछ लिया। प्रयोग किया और फिर घात से परिचित होने पर भत ने बताया कि उसके कपाल मे अमृत का कटोरा है। कुल्हाडे का। जीवन रक्षा के लिए जब से मानव ने वह जब तक अन्दर रहेगा तब तक वह जीवित रहेगा। कुल्हाड़े को सशक्त माध्यम पाया तब से उसने कुल्हाड़े के
लडके ने अपनी प्रायु व उसकी मृत्यु के रहस्य को 'फल' को अपने गले में पहनना प्रारम्भ कर दिया और जानने के पश्चात् रसोईघर की भट्टी में मिर्च डाल दी। कुल्हाड़ा का फल जीवन रक्षा के साधन के रूप में रूढ़ हो और रसोई घर का दरवाजा बन्द कर दिया। मिर्गों के गया जो प्राज भी हजारो वर्षों बाद का मानव अपने गले धुएं से भूत की सारी शक्ति क्षीण हो गई। लड़के ने में धारण करता है, मेरा तात्पर्य कुल्हाड़े के 'फल' के उसका सिर काट कर अमृत का कटोरा निकाल लिया प्राकार के सोने अथवा चादी के ताबीज से है। यहाँ पर और मरे हुए कुटुम्बियो की हड्डी पर छिडक कर उन्हे यह निर्दिष्ट करना प्रावश्यक होगा कि रूढ़िगत विश्वासों पुनर्जीवित किया।
और अभिप्राय दोनो की सम्बद्धता यद्यपि जीवन से ही है, 'कुटम्बियो का बदला इस कथा की थीम है । इसमे पर अभिप्राय मे परिवर्तन नही होते जबकि रूढ़ियो में चतुराई से जीवन रक्षा करना मूल अभिप्राय है। भूत के काल व सन्दर्भ के अनुसार सशोधन परिवर्धन होते रहे प्राणों का उसके कपाल में रखे अमृत कटोरे में होना सह हैं। रूढ़ियों के वाक सवाद स्वतंत्र अस्तित्व की पृष्ठ भूमि अभिप्राय है। इसी तरह मामा का भानजे को हानि न मे जीवन सन्दर्भ, संस्कृति धर्म, पुराख्यान और विश्वासों पहुँचाने का विश्वास कथानों में रूढ़िगत है। समाज के की परम्परा है। 'अभिप्राय' जीवन मे जिए व स्थापित विकसित सम्बन्धों मे बहिन रक्षणीय हुई और उसका पुत्र मूल्य हैं। एक दूसरे से सन्दभित होते हुए भी अलग हैं। भी। इस प्रसंग मे पं० राहुल सांकृत्यायन की मेरी जीवन श्री पी० सी० गोस्वामी के शब्दों मे 'अभिप्राय की महायात्रा में वणित उस प्रश से है जिसमें बालक लेखक द्वारा नाभि से निकलकर जो जीवन्त सन्दर्भ अपना निजी कक्ष