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________________ दिल्ली पट्ट के मूलसंघीय भट्टारक प्रभाचन्द्र १३१ "यथाहस्तत्र भगवन्तः श्रीमत्प्रभेन्दुपादारत्नकरण्डटीका समय-विचार यां चतुरावतंत्रितय इत्यादि मूत्र द्विनिषद्यरत्यम्यव्याख्याने- प्रभाचन्द्र का पट्टावलियों में जो समय दिया गया है, देववन्दनां कुर्वताहि प्रारम्भ समाप्तीचोपविश्य प्रणाम: वह अवश्य विचारणीय है। उसमे रत्न कीर्ति के पट्ट पर कर्तव्य इति ।' बैठने का समय स० १३१० तो चिन्तनीय है ही। स० इन टीकानो पर विचार करने से यह बात तो सहज १४८१ के देवगढवाले शिलालेख मे भी रत्नकीति के पट्ट ही ज्ञात होती है कि इन टीकामो का प्रादि-अन्त, मगल पर बैठने का उल्लेख है, पर उसके सही समय का उल्लेख और टीका की प्रारभिकसरणी मे बहुत कुछ समानता नही है । प्रभाचन्द्र के गुरु रत्नकीत्ति का पट्टकाल पट्टावली दष्टिगोचर होती है। इससे इन टीकाओं का कर्ता कोई में १२६६-१३१० बतलाया है। यह भी ठीक नही जचता, एक ही प्रभाचन्द्र ोना चाहिये । हो सकता है कि टीका. सभव है वे १४ वर्ष पट्टकाल मे रहे हों। किन्तु वे अजमेर कार की पहली कृति रत्नकरण्डकटीका ही हो । प्रौर शेष पट्ट पर स्थित हुए और वही उनका स्वर्गवास हुआ । ऐसी टीकाए बाद में बनी हों। पर इन टीकाग्रो का कर्ता प्रभा- स्थिति में समय सीमा को कुछ बढा कर विचार करना चन्द्र प० प्रभाचन्द्र ही है, प्रमेयकमलमार्तण्ड के कर्ता प्रभा- चाहिए, यदि वह प्रमाणों प्रादि के प्राधार से मान्य किया चन्द्र इनके कर्ता नही हो सकते । क्योकि इन टीकामो मे जाय तो उसमे १०.२५ वर्ष की वृद्धि अवश्य होनी चाहिये, विषय का चयन और भाषा का वैसा मामजस्य अथवा जिससे समय की सगति ठीक बैठ सके। आगे पीछे का उसकी वह प्रौढता नहीं दिखाई देती, जो प्रमेयकमलमार्तण्ड सभी समय र्याद पुष्कल प्रमाणोकी रोशनी मे चचित होगा, पौर न्यायकुमुदचन्द्र मे दिग्वाई देती है। यह प्रायः सुनि- वह प्रायः प्रामाणिक होगा। आशा है विद्वान् लोग भट्टाश्चित-सा है कि वे धारावामी प्रभाचन्द्राच यं जो माणि- रकीय पट्टावलियो में दिये हुए समय पर विचार करेंगे, क्यनन्दि के शिष्य थे उक्त टीकाप्रो के कर्ता नहीं हो अन्य कोई विशेष जानकारी उपलब्ध हो तो उससे भी मझे सकते । सूचित करेगे। मथुरा के सेठ मनीराम परमानन्द शास्त्री जयपुर राज्यान्तर्गत मालपुरा ग्राम के निवासी थे। वास होने पर उनके कुटुम्बियों भाई-भतीजों ने अपने अधि. उनकी जाति खडेलवाल और धर्म जैन था। वे आर्थिक कार के लिए मनीराम और लक्ष्मीचन्द्र के विरुद्ध मुकदमा परिस्थिति वश अपने जन्म स्थान को छोडकर ग्वालियर प्रा दायर किया था। वह मुकदमा कई वर्ष तक चला, परन्तु गये थे । और वहाँ पारिख जी की सेवा में रहने लगे थे। अन्त मे उसका निर्णय मनीराम लक्ष्मीचद्र के ही पक्ष मे वे अपनी योग्यता और कार्य दक्षता से पारिख जी की हुआ था। ' मनीराम जी ने पारिख जी की विपुल सम्पत्ति को उन्नति के साथ-साथ मनीराम की भी उन्नति होती रही। धार्मिक कार्यों में लगाने के साथ ही साय उसे कारोबार जब पारिखजी ने ग्वालियर से ब्रज में निवास किया, तब वे । व मे भी लगाया। और मनीराम लक्ष्मीचन्द्र के नाम से एक भी उनके साथ थे । मनीराम के तीन पुत्र थे । लक्ष्मीचन्द्र, . । प्रतिष्ठान की स्थापना की। उसके द्वारा उन्होंने लेन-देन राधाकृष्ण और गोबिन्द दास । का व्यवहार प्रारम्भ किया। जिससे सम्पत्ति में खूब वृद्धि पारिख जी ने अपनी मृत्यु से पहले ही लक्ष्मी चन्द्र हुई। पुण्य का उदय जो था। उनके प्रतिष्ठान को साख को अपना उत्राधिकारी बना दिया था। और अपनी सारी लोक में प्रसिद्ध हो गई। और वे व्रज क्षेत्र के सबसे अधिक सम्पत्ति मनीराम जी को सोंप दी। पारीख जी के स्वर्ग- घनिक माने जाने लगे । उनकी उदार परिणति और जन
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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