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________________ दिल्लो पट्ट के मूलसंघीय भट्टारक प्रभाचन्द्र परमानन्द जैन शास्त्री प्रभाचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गए है । एक नाम तहि भव्वहि सुभहोच्छव विहियउ, के अनेक विद्वानों का होना कोई आश्चर्य की बात नही है। सिरि रयणर्णाकत्ति पट्टणिहियउ । जैन माहित्य और इतिहास को देखने से इस बात का महमंद साहि मणुरंजियउ, स्पष्ट पता चल जाता है कि एक नाम के अनेक प्राचार्य विज्जहि वाइयमणुभजियउ ॥ विद्वान और भट्टारक हो गए है। यहाँ दिल्ली पट्ट के -बाहुबलि चरित प्रशस्ति मुलसघीय भट्टारक प्रभाचन्द्र के सम्बन्ध में विचार करना उस समय दिल्ली के भव्यजनो ने एक उत्सव किया इम लेग्व का प्रमुख विषय है। था और भ० रत्नकीति के पट्ट पर प्रभाचन्द्र को प्रतिष्ठित पट्टे श्री रत्नकीर्तेग्नपमतपसः पूज्यपादीयशास्त्र. किया था। मुहम्मद बिन तुगलक ने सन् १३२५ (वि० व्याख्या विख्यातकीति गणगणनिधिपः सत्क्रियाचाराचंचः।। स० १३८२) से सन् १३५१ (वि० स० १४०८) तक श्रीमानानन्द धामा प्रति वुधनुतमामान संदायि वादो। राज्य किया है। यह बादशाह बहुभाषा-विज्ञ, न्यायी, मीयादाचन्द्रतारं नरपति विदितः श्रीप्रभाचन्द्र देव ॥ विद्वानों का समादर करने वाला और अत्यन्त कगर (जैन सि० भा०, भा० १ किरण ४) शासक था। अतः प्रभाचन्द्र इसके राज्य में स० १३८५ के लगभग पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए हो। इस कथन से पट्टापट्टावली के इस पद्य मे प्रकट है कि भट्टारक प्रभा वलियों का वह समय कुछ प्रानुमानिक सा जान पडता है । चन्द्र रत्नकीनि भट्टारक के पट्ट पर प्रतिष्टित हुए थे। वह इतिहास की कसौटी पर टीक नही बैठता। अन्य रत्नकीति अजमेर पट्ट के भट्टारक थे। दूसरी पट्टावली में किसी प्रमाण से भी उसकी पुष्टि नहीं होती। दिल्ली पट्ट पर भ० प्रभाचन्द्र के प्रतिष्ठिन होने का समय प्रभाचन्द्र अपने अनेक शिष्यो के साथ पट्टण, खंभात. स. १३१० बतलाया है। और पट्टकाल स० १३१० से धारानगर और देवगिरि होते हुए जोइणिपुर (दिल्ली) १३८५ तक दिया है, जो ७५ वर्ष के लगभग बंटता है। पधारे थे। जैसा कि उनके शिष्य वनपाल के निम्न उल्लेख दूसरी पट्टावली मे सं० १३१० पौष सुदी १५ प्रभाचन्द्र जी ° १३१० पाप सुदा १५ प्रभाचन्द्र जी से स्पष्ट है :गृहस्थ वर्ष १२ दीक्षा वर्ष १२ पट्ट वर्ष ७४ मास ११ पट्टणे खंभायच्चे धारणयरि देवगिरि । दिवस १५ अन्तर दिवस ८ सर्व वर्ष ६८ मास ११ दिवस मिच्छामयविहणंतु गणिपत्तउ जोपणपुरि । २३ । (भट्टारक सम्प्रदाय पृ० ६१)। -बाहुबलि चरिउ प्र. भट्टारक प्रभाचन्द्र जब भ० रत्न कीति के पट्ट पर आराधना पजिका के सं० १४१६ के उल्लेख से स्पष्ट प्रतिष्ठित हुए उस समय दिल्ली में किसका राज्य था, है कि वे भ० रत्नकीर्ति के पट्ट को सजीव बना रहे थे। इसका उक्त पट्टावलियो मे कोई उल्लेख नहीं है। किन्तु १. सं० १४१६ चैत्र सुदि पचम्यां सोमवासरे सकलराज भ० प्रभाचन्द्र के शिष्य धनपाल के तथा दूसरे शिष्य ब्रह्म शिरोमुकुट माणिक्य मरीचि पिंजरीकृत चरणकमल नाथूराम के सं० १४५४ और १४१६ के उल्लेखो से ज्ञात पादपीठस्य श्रीपेरोजसाहेः मकल साम्राज्य धुरीबिभ्राहोता है कि प्रभाचन्द्र ने मुहम्मद बिन तुगलक के मन को णस्य समये श्री दिल्या श्रीकुदकुन्दाचार्यान्वये सरस्वती अनुरंजित किया था और वादी जनों को बाद मे परास्त गच्छे बलात्कारगणे भ० श्रीरत्नकीर्तिदेव पट्टोदयाद्रि किया था - जैसे उनके निम्न वाक्यों से प्रकट है : तरुणतरणित्वमुर्वीकुर्वाणं भट्टारक श्री प्रभाचन्द्र देव
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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