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________________ १२८, वर्ष २३, कि० ३ अनेकान्त -'हम तो कायर है हम क्या लडेगे ?' कहते है देव उसे वापस ले गए। -जो श्रीमन्त है शूरवीर हैं वे लड़ें।' सम्राट अजातशत्रु की विजय पताका वैशाली पर फह-इस प्रकार वैशाली के लाखों मनुष्यों का संहार राने लगी। फिर तो मागधी सेना द्वारा इतना अत्याचार हमा । एक विशेष प्रकार का मन्त्र चानित रथ बिना और अनाचार हा कि मागघी सेना के ही जो समझदार किमी सारथी के वैशाली--सेना के बीच निर्द्वन्द मूसल की व्यक्ति थे काँप उठे। सम्राट तो स्वय ग्रामोद प्रमोद मार करता हा एव लोगों को कुचलता हुआ घूम रहा और उत्सवो मे व्यस्त थे, उन्होने भी इसे रोकने का कोई वा उमके द्वारा ही एक दिन मे वैशाली सेना के लाखो प्रयत्न नही किया। स्वय राजपुत्र उदायीभद्र ने सम्राट से मनुष्य कुचन दिए गए। इस विषय में निवेदन किया परन्तु वह भी निरर्थक हुआ। चेटक और नवमल्नवी, नवलिच्छवी ऐसे १८ काशी, राजपुत्र उदायीभद्र को सम्राट और उसकी सेना से कौशल के गणराजानों की बहुत बड़ी ऐतिहासिक पराजय घृणा हो गयी। वह संनिको की एक टुकड़ी लेकर सम्राट के वापस जाने के पूर्व ही मगध की अोर लोट पड़ा। सम्राट अजातशत्रु-कुणिक विजयी हुअा। कुणिक के गर्व का ठिकाना नही था । वह अपने को पराजित चेटक अपने कोट मे चला गया। प्राकार चक्रवर्ती समझने लगा था और विश्व-विजय की धुन के द्वार बन्द कर लिए गए। कुणिक प्राकार को घेरे बहुत उसके सिर पर सवार हो गई। दिनों तक पड़ा रहा। राजधानी वापस पाकर वह भगवान महावीर के __ अमात्य वस्मकार ने दूसरी चाल चली । मगध की समवशरण मे पहुँचा । विनय आदि क्रियानो के उपरान्त नगरवध, मागधिका वेश्या की उसने सहायता ली। उसने प्रश्न किया। वैशाली के नागरिको में यह बात फैलाई गयी कि वैशाली 'भगवान क्या मै चक्रवर्ती हूँ? मे स्थित तीर्थकर मुनि मुव्रतनाथ के मानस्तम्भ के टूट जाने भगवान की दिव्य ध्वनि हुईपर वैशाली बच सकेगी। फिर क्या था। लोगो ने मानस्तम्भ को तोडना --'क्या मै चक्रवर्ती हो सकूगा' ? प्रारम्भ कर दिया। कायरो को पता नहीं था कि इस - 'इस काल मे बारह चक्रवर्ती हो चुके हैं । तेरहवां मानस्तम्भ के अतिशय से वैशाली अजेय बनी हुई थी चक्रवर्ती नही होने का।'-दिव्य ध्वनि फिर हुई। और महाबनी अजातशत्रु की सारी शक्ति वैशाली पर - 'पदासीन चक्रवर्ती मरने के बाद कहाँ जाता है ? पूर्ण विजय करने में समर्थ नही हो सकती थी। -'सप्तम नरक मे।' जैसे ही मानस्तम्भ टूट कर गिरा, मगध की सेना --'मैं मर कर कहाँ जाऊंगा' ? वस्स कार का सकेत पाकर पूरी शक्ति से टूट पड़ी। --'तुम छठवे नरक मे जानोगे'। वैशाली का सर्वनाश हो गया। परन्तु उसे इन सारी बातों पर विश्वास कहाँ था ? हल्ल और विहल्ल हार और हाथी शत्रु से बचाने उसे तो चक्रवर्ती बनने की धुन थी। तीव्र मान के कारण के लिए भाग खड़े हुए। वह अन्धा हो गया था। प्राकार की खाई में भीषण अाग लगी हुई थी। वह दिग्विजय के लिए निकल पड़ा। तिमिस्र की सेचनक हाथी इसे अपने विभङ्ग ज्ञान से जान चुका था। गुफा मे उसे किसी ने रोका। कोई कहते हैं वह देवता उसे बलात् बढ़ाया गया तो उसने उन दोनो को सूंड से था। कोई कहते है राजपुत्र उदायीभद्र था। परन्तु उसी पकड़ कर नीचे उतार दिया। अपने स्वामियों को अग्नि अन्धेरी गुफा में गर्वीले अजातशत्रु कुणिक की हत्या हो मे जल मरने से उसने बचाया और स्वयं अग्नि में प्रवेश कर गई। गया। देवप्रदत्त हार का क्या हपा, किसी को पता नहीं। सम्राट का सपना अधूरा रह गया। .
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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