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१२६, वर्ष २३ कि० ३
जब कुणिक को वस्सकार ने यह सूचना दी तो वह चिन्तित हुआ और उसने वस्सकार को शीघ्र गौतम बुद्ध के पास जाकर मगध- वैशाली के विषय पर गोष्ठी करने का आदेश दिया ।
अनेकान्त
बुद्ध राजग्रह पहुँच चुके थे। वे गृद्धकूट पर्वत पर विराज रहे थे । वस्सकार वही पहुँचा और उनसे वैशाली गणतन्त्र की शक्ति का कारण पूछा ।
भगवान बुद्ध ने उसे वज्जियो ( वैशाली वालों) के सात अपरिहानीय नियम बतलाए जिनके द्वारा उनकी शक्ति की अभिवृद्धि होती रहती है।
२. जी एक मत से परिषद् मे बैठते है, एक मत से उठते है, एक ही करणीय कर्म करते है वे भापति की भेरी सुनते ही खाते हुए आभूषण पहनते हुए, या वस्त्र पहनते हुए भी ज्यों के त्यो एकत्रित हो जाते हैं। ३. स्त्री अवैधानिक कार्य नहीं करते। विधान का
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उच्छेद नहीं करते।
४. वज्जी वृद्धो का सत्कार करते हैं, उन्हें मानते है, पूजते है।
५. बज्जी, कुलस्त्रियों और कुलकुमारियों के साथ बलात् विवाह नहीं करते।
१. सन्निपात बहुल है, अर्थात् उनके अधिवेशन में पूर्ण सम्राट ! वज्जि (लिडवी)
उपस्थिति रहती है।
६. वज्जी अपने नगर के बाहर और भीतर के चेत्यो, मन्दिरो का श्रादर करते है। उनकी मर्यादाओ का उलघन नहीं करते ।
७. बज्जी तो की धार्मिक सुरक्षा रखने है इसलिए कि भविष्य में उनके यहाँ बर्हतु भाते रहे और सुख से विहार करते रहे।
बुद्ध ने कहा कि जब तक ये मात अपरिहार्यं नियम उनमे चलते रहेगे लिच्छवियों ( वज्जियों) की अभिवृद्धि होती रहेगी, अभिहानि नहीं होगी।'
तक गम्भीर मन्त्रणा की भोर प्रपनी गुप्त योजना का श्राकार प्रकार निश्चित कर लिया ।
दूसरे दिन राजदरबार में सभी सवार हो गए जब सम्राट और महामात्य वस्सकार के बीच नीचे की भाँति कटु वार्तालाप हुआ ।
महामात्य वस्सकार चतुर और बुद्धिमान मन्त्री था । उसने बुद्ध की बातो के आधार पर अपनी अगली चाल पर विचार करना प्रारम्भ कर दिया। जब वह वापस अजातशत्रु के पास पहुँचा उस समय तक उसकी सारी योजना बन चुकी थी। उसने और प्रजातशत्रु ने अर्धरात्रि
सम्राट ने महामात्य से प्रश्न किया'अन्ततोगत्वा क्या हमारे महामात्य बिल्कुल परास्त ही हो जाएगे या बजियो को परास्त करने की कोई योजना बनाई जा रही है ?"
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महामात्य वस्सकार ने उच्छृंखलता पूर्वक उत्तर दिया आपस मे सभी एक मत है उनके यहाँ धर्म का आदर है। हम लोगों का उनको जीतना दुष्कर कार्य है ।'
सम्राट क्रोध पूर्वक बोले
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'मै महामात्य से इस प्रकार के उत्तर की प्राशा नही रखता था । अब तो मुझे यह भी लगता है कि राज्य के गुप्तचर विभाग ने जो सूचना मुझे दी है वह सच्ची है।'
इसके उपरान्त अपने स्वर को और ऊचा कर एव किचित क्रोध में सम्राट ने पूछा - 'क्या यह सच है कि आपने लिच्छवियो को भेंट स्वरूप गुप्त रूप से कुछ वस्तुएं मंत्री है।'
वस्सकार ने अपना सर नीचा कर लिया। उनके इस व्यवहार से सारी सभा सन्नाटे मे आ गई । किसी के अनु मान मे भी यह बात नहीं थी कि महामात्य वस्सकार मगध राज्य के साथ धोखा करेंगे । अब सभी उत्सुक होकर सम्राट की ओर देखने लगे ।
सम्राट तीक्ष्ण दृष्टि से वस्सकार की ओर देख रहे थे। उनकी श्योरी चढी हुई थी एकाएक उन्होंने गंभीर शब्दो मे कहा - ' वस्सकार तुम महामात्य रहने लायक अब कदापि नही रहे । श्रब मैं समझ गया कि पिछले दस युद्धों मे हमारी हार क्यों हुई है। मैं तुम्हें ऐसी सजा दूंगा कि मगध राज्य में यह भी एक उदाहरण स्वरूप रहे ।'
यकायक उन्होने कहा - 'हमारी आज्ञा है कि वस्सकार का सर मुंडन कराकर नगर से निकाल दिया जाय मगध साम्राज्य की कोई भी प्रजा वस्सकार को स्थान एवं भोजन न दें ।'