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________________ सम्राट का प्रपुरा सपना १२५ पर्द्धमान महावीर और गौतम बुद्ध जैसे मनीषि जब इस तलवारों आदि से युद्ध चल रहा था एव पैदल सेना भी पृथ्वी पर है और वे इस समय इन्हीं प्रदेशों में बिहार कर लाखों की संख्या मे लड़ रही थी। सेनापति काली कुमार रहे है तो क्यो न उनसे भी मिलकर इस विरोध को दूर बहादुरी से लडे परन्तु राजा चेटक का अमोघ एक वाण कराने का प्रयत्न किया जाए। छटा, उसने काली कुमार को धराशायी कर दिया। मगध इस पर महामात्य वस्सकार (वर्षकार) ने हँसकर की सेना भाग चली। कहा-'वर्द्धमान महावीर और चेटक का पारिवारिक इसी समय भगवान महावीर का समवशरण चम्पा सम्बन्ध तो है ही, चेटक महावीर के अनुयायी भी है। नगरी मे आया हुआ था। कालीकुमार की पत्नी उनसे उसे श्रमणों का प्राशीर्वाद प्राप्त है । भला इस दशा मे हम पूछ रही थी। लाभ की प्राशा कैसे रख सकते है ? रही गौतम बुद्ध की 'भगवन्, इस युद्ध मे क्या मगध विजयी होगा ?' बात । तो क्या यह सर्वविदित नही है कि गौतम को भगवान की दिव्य ध्वनि हुई–'नहीं' । लिच्छवी अत्यन्त प्रिय है। फिर उसने प्रश्न किया-क्या मेरे पति लौट कर काली कुमार ने सयत रहते हुए उत्तर दिया- आवेगे ?' दिव्य ध्वनि हई-'नहीं'। महामात्य ! आपने इन महापुरुषों को गलत समझा है। परन्तु आश्चर्य यह कि इस विपत्ति की सूचना मिलने फिर आप क्या यह नही जानते कि लिच्छवी गणतत्र है, पर भी कालीकुमार की राजपत्नी न रोई न उसने होश उनके यहां जमी एकता है हममे नही है. क्या उन्हे परास्त खोया । वह सयत रही। केवल एक दीर्घ नि.श्वास उसके करना सरल है ? मुह से निकला। फिर उसने सयत वाणी से उच्चारण __ महामात्य और काली कुमार की चर्चा में आक्रोश कियाका पुट प्रा गया था। सम्राट अजातशत्रु ने उन दोनो की 'अरहते शरण पव्वज्जामि, बातो को रखते हुए कहा-'बुद्ध और महावीर, दोनो 'सिद्ध शरणं पध्वज्जामि,' मनीषियो के प्रति हम सभी की श्रद्धा है परन्तु हिसा के 'साहू शरणं पव्वज्जामि' क्षेत्र मे इनकी राय लेना अनुचित होगा।' 'केवलि पण्णत धम्मं शरणं पव्वज्जामि ।' सम्राट की आज्ञा से गगा के इस ओर नई महानगरी वह वही दीक्षित होकर साध्वी हो गई। की योजना पर कार्य प्रारभ कर दिया गया परन्तु युद्ध में एक-एक कर दस युद्धो मे सम्राट कुणिक दम बार विलम्ब करने की अमात्य की राय नही मानी गई। पराजित हुआ और उसके दसों भाई युद्ध में खेत पाए। दोनों मोर की सेनाएं सग्राम क्षेत्र में इकट्ठी होने वह हताश हो गया। तभी महामात्य वस्सकार की लगी। मन्त्रणा से उसने मन्त्र सिद्धि का योग करना प्रारभ किया। प्रथम युद्ध मे अजातशत्रु कुणिक की अोर से काली वस्सकार अपनी योजना के अनुसार गगा के इस पार कुमार के सेनापतित्व में मगध की सेना डट कर खडी हो पाटलिपुत्र की सुरक्षित नगरी का निर्माण शीघ्रता पूर्वक करा रहा था। राजा चेटक वर्द्धमान महावीर के समक्ष श्रावक के एक दिवस गौतम बुद्ध का सघ पाटलिपुत्र (पटना) १२ व्रत ले चुके थे । एक विशेष व्रत भी लिया था कि "मै पहुँचा। राजाज्ञा के अनुसार महामात्य वस्स कार ने उनका एक दिन मे एक वाण से अधिक युद्ध मे नही चलाऊगा।" स्वागत सम्मान किया और उन्हे भोजन कराया। परन्तु सर्वविदित था कि उनका वह एक वाण अमोघ तदुपरान्त बुद्ध ने इस नगरी के ३ अन्तराय बतलाए। हुआ करता था। दोनों ही अोर व्यूह रचनाए की गई थी 'पाग, पानी और आपसी मतभेद सर्वदा इस नगरी वा और दोनों पक्ष जमकर भयंकर युद्ध करने लग गए। अन्तराय करेगे।' यानी इस नगरी को सदा प्राग पानी और हाथियों, घोड़ों और रथों पर तीर कमान, बरछो प्रापसी मतभेदके कारण विघ्न का सामना करना पड़ेगा। . . . . गई।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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