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१२४. वर्ष २३ कि० ३
अनेकान्त
अपनी निधियों के साथ लिए हुए चम्पानगरी से चल काशी-कौशल के अधिनायकों की शक्ति और सहयोग का पड़े। अपनी सुनिश्चित प्रायोजना के अनुसार वे अपने उन्हें पूर्ण भरोसा था। तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ, पारसन थ नाना वैशाली के अधिनायक राजा चेटक की शरण मे एव वर्द्धमान महावीर के सम्यक् उपासक होने के कारण पहुँच गये।
वे निर्भय थे। उन्हे जल्दी क्रोध नही पाता था। परन्तु कुणिक को यह पता चला तो वह इस अपमान से कुणिक के दूत के दुर्व्यवहार से वे क्रोध किये बिना नही अत्यन्त क्रोधित हुआ।
रह सके। उसने अपना दूत राजा चेटक के पास भेजा और उन्होंने गरज कर कहा- 'मैं युद्ध के लिए तैयार हूँ। हल्ल और विहल्ल के साथ हाथी और हार लौटा देने को कुणिक को शीघ्र भेजो, मैं प्रतीक्षा करूगा।' चेटक के कहा। चेटक ने कहा-'हार और हाथी हल्ल और राज्य से कुणिक के दूत को धक्के देकर बाहर निकाल विहल्ल के है । वे मेरी शरण मे आ गये है, मैं उन्हे वापस दिया गया। इस प्रकार तिरस्कृत और अपमानित नही लौटाता। यदि 'श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना का दूत कुणिक के पास वापस पहुंचा। प्रात्मज और मेरा नप्तक (नाती) कुणिक', हल्ल और इधर राजा चेटक ने काशी, कौशल के १८ नरेशा विहल्ल को मगध साम्राज्य का आधा हिस्सा दे दे तो मै को निमंत्रित कर उनसे परामर्श मांगा-णिक हार और हाथी दिलवा सकता है।
राजा की चेलना गनी का पुत्र, मेग नप्तक (नाती, सम्राट अजातशत्र-कुणिक ने फिर दूत भेज कर सन्देश दोहिता) कणिक हार और हाथी के लिए युद्ध करने पा दिया-'हल्ल और विहल्ल बिना मेरी प्राज्ञा लिए हार रहा है। हम सब लोगो को मिल कर युद्ध करना है कि और हाथी ले गये है। वे दोनों वस्तुएं मेरे राज्य मगव उसके सामने समर्पित होना है?' की है, इसलिए उन्हे शीघ्र लौटा देना ही योग्य है।
सभी राजानो ने कहाचेटक ने पुनः उसकी मांग अस्वीकार कर दी और
'युद्ध करना है, समर्पित नही होना है।' दूत को खाली हाथ वापस कर दिया।
इस निर्णय के उपरान्त सभी गजा अपने अपने राज्य दूत द्वारा समाचार मिलने पर कुणिक की उत्तेजना वापस गये और युद्ध की तैयारियो मे लग गए। बहुत बढ़ गयी। वह आवेश में आ गया और लाल-लाल कुणिक ने शीघ्र से शीघ्र अपने दसो भाइयो को बुला प्रॉखों, एवं फड़कते हुए होठो से उसने दूत को पुनः पत्र कर एव अपने दो महामात्यो सुनिधि एवं वस्सकार, से द्वारा यह सम्वाद लिख कर प्रेषित किया
मत्रणा की। ___ 'हार हाथी वापस करो या युद्ध के लिए तैयार हो वस्सकार का कथन था कि निच्छवियो से युद्ध करने जानो।'
के पूर्व गगा के इम किनारे एक सुरक्षित नगर की स्थापना उसने दूत को यह भी प्राज्ञा दी
होनी चाहिए। सुनिधि ने भी कहा कि इसप्रकार हम लिच्छ'तुम चेटक की राजसभा में जाकर उसके सिंहासन वियो से अपनी सेना को सुरक्षित रख सकते है, और उन्हे पर लात का प्रहार करो। तदुपरान्त भाले की नोक पर गंगा के इस पार अपनी ओर आने से रोक सकते है। युद्ध रख कर मेरा यह पत्र उसके हाथों मे देना।'
सामग्री भी गगा के उस पार युद्धस्थलो मे भेजना हमारे महावली अजातशत्रु एव मगध के महान सम्राट के लिए सरल हो जायगा। दूत का गर्व भी कम नहीं था। उसने ठीक वैसा ही किया सम्राट अजातशत्र-कुणिक इन सभी बातो से सहमत जैसा कि उसके सम्राट ने आदेश दिया था।
था-'परन्तु नगर की योजना पूर्ण करने में तो वर्षों लग चेटक वृद्ध और दूरदर्शी राजनयिक थे। अपने शौर्य जाएंगे'-'जब उसने ऐसा उतावलेपन से कहा तो सभी मौर सुबुद्धि के द्वारा उन्होने वैशाली गणतन्त्र की स्थापना समझ गए कि सम्राट शीघ्रता चाहता है। की थी। अपने मित्रों-नवमल्लकी, नवलिच्छवी-इन १८ दसों भाइयो मे अग्रणी कालीकुमार ने राय दी कि