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सम्राट का अधुरा सपना
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थाली बदली जाय, अजातशत्रु कुणिक हंस कर रह गया दिनों सौन्दर्य और शोभा से सम्पन्न थी। तीर्थकर व मु. और जान बूझ कर उसी थाली म भोजन करता रहा। पूज्य का निर्वाणस्थल होने के कारण मन्दारगिरि से चा चेलनाको यह बात पसन्द नही पाई और उसने जब अापत्ति तक श्रमणों का संगम सदैव हुमा करता था। चेलन। ने की तो अजातशत्र कुणिक हंस कर बोला--मा ! मैं अपने कुणिक को प्रेरित किया और सम्राट कुणिक ने च पापुत्र को कितना प्यार करता है, इसी बात से देखो। नगरी को मगध की नयी राजधानी घोषित कर दिया ।
परन्तु इस बात पर जब चेलना रोने लगी तो उसे चम्पानगरी मे आकर कुणिक ने कालीकुमार प्रादि बडा पाश्चर्य हया। पूछा-'माँ'! तुम इस बात पर रोने अपने दसो भाइयों को बुलाया। राज्य सेना, धन प्रादि क्यों लगी?"
को ११ हिस्सो मे बाट कर उन्हे दिया और प्रानन्द दूर्बक तभी माँ चेलना ने उसे कुणिक के बचपन की वह वहां राज्य करने लगा। उसके दोनो सगे भाइयों विहल्ल घटना कह सुनाई जबकि उसके घाव द्वारा सडी हुई और हल्ल को दो अमूल्य निधियाँ-सेचनक हस्ती और दर्गन्धयुक्त अगुली को उसके पिता सम्राट बिम्बमार श्रेणिक देवप्रदत्त हार श्रेणिक से मिल ही चुकी थी इमलिए उन्ह ने अपने मह में रख लिया था । अन्त में वे बोली- राज्य में हिस्सा न देकर अपने साथ प्रेम और प्रादर के
'बेटे तुम्हारे गिना भी तुम्हें अत्यन्त प्यार करते थे, साथ कुणिक ने रखा। वरना क्या वे तुम्हारी उम दुर्गन्धपूर्ण दूपित अगुला का प्रतिदिन विहल्ल कुमार सेचनक हाथी पर सवार केवल तुम्हे शान्ति दने के लिए अपने मह में रख लेते ? रोग
हो अपनी रानी के साथ विहार और जलक्रीडा के लिए आज उसी बात की याद मा गयी और साथ माथ यह
गगा तट पर जाता। उसके प्रानन्द और भोग देख कर भी कि उन्ही पिता को तुमने कैद में बेडिया से जकड कर मार
कर नगरी मे चर्चा उठी-' राज्यश्री का उपभोग तो वास्तव रख छोड़ा है।'
मे विहल्ल कुमार कर रहा है । कुणिक नही।" इतना मनना था कि कुणिक थाली छोड कर उठ
यह चर्चा धीरे-धीरे कुणिक की रानियो तक पहंची। वहा हया । बोला--"परन्तु यह कथा तो मुझे अाज
उसकी एक रानी पद्मावती ने सोचा यदि से निक तक किसी ने बतायी नहीं। हाय, मैं कितना पापा हूँ कि हाथी मेरे पास नही. देवप्रदत्त हार मेरे पास नही तो इ। ऐसे प्रिय पिता के साथ मैने ऐमा दुर्व्यवहार किया- मैं राज्य वैभव से मुझे क्या ? अभी उनको मुक्त करूगा।"
कुणिक से उमने यह बात कही। परन्तु उसने हम इतना कर वह अपने रथ पर सवार होकर पिता के कर इस बात को टाल दिया, कहा-'वह तो भाइयो को पास दोडा गया। उसके पिता श्रेणिक ने जब कुणिक को पिताजी ने दिया है हमारा नहीं है।' अपनी पोर दोडे हुए आते देखा तो उन्हे विश्वाम हो गया परन्तु अनेकों बार कहे जाने पर अन्त मे वह अपनी कि अवश्य कुणिक उनकी हत्या करने के लिए पा रहा है। पत्नी के वश होकर हार और हाथी मांगने के लिए विवश उनके हाथो-पावों में बेडिया लगी हई थी। उन्होने हो गया। भगवान महावीर को स्मरण किया और उठ खडे होने के उसने विहल्ल और हल्ल कुमार को बुलाकर बड़े प्रेम यत्न मे गिर पड़े। लोहे की कील पर उनका माथा जा पूर्वक उनसे उन वस्तुप्रो को दे देने के लिए कहा । उस लगा। उनका वही प्राणान्त हो गया।
समय तो वे चिन्तायुक्त चले गये परन्तु कई बार फिर वही कुणिक के शोक का ठिकाना न था। राजगृह मे सूचना आने पर उन्होंने अपनी वस्तुओं को देने से इन्कार अब एक क्षण भी रहना उसके लिए दुश्वार हो गया। कर दिया । उसने निश्चय कर लिया कि वह अपनी राजधानी और कुणिक इससे रुष्ट हो गया। कही ले जाएगा।
हल्ल और विहल्ल कुमार को प्राती हुई विपत्ति का चम्पानगरी (माजकल के भागलपुर के निकट) उन प्राभास मिल गया और वे एक रात्रि को चुपचाप सपरिवार