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________________ 'राणों के आधार पर एक ऐतिहासिक कथा : सम्राट का अधूरा सपना श्री बाबू सुबोधकुमार श्रेणिक के जीव ने कुणिक के जीव का, किसी एक वैशाली गणतंत्र के अधिनायक राजा चेटक को बीचबचाव पूर्वजन्म मे, वध किया था। करने के लिए कहे परन्तु उसकी हिम्मत नही हुई ।। वह उसके कई जनम-मरण के बाद यह कथा तब प्रारभ जानती थी कि उन्होने अभी तक चेलना का अपहरण होती है जब कि श्रेणिक बिम्बसार मगध का सम्राट था करने वाले श्रेणिक को क्षमा नहीं किया है । और उसकी राजधानी राजगृह मे थी। वैशाली के राजा कुणिक बहुत ही शौर्यवान और प्रतापी नरेश सिद्ध चेटक की पुत्री चेलना मगधको साम्राज्ञी थी । गर्भवती थो। हुा । अनेको दुर्जय शत्रुयो को उसने जीता । क्रमश. वह कुणिक का जन्म हुआ। श्रेणिक और चेलना की। अजातशत्रु यानि "जिमका शत्रु जन्मा ही नहीं" के नाम प्रसन्नता की सीमा नही थी। देव वशात् बालक की से सुप्रसिद्ध हुअा। उमने तीन विवाह किये, जिनमें एक अगली मे भयकर घाव हा। राजवैद्य थक गये । बालक मोहाल नरेश पसेनजित की कन्या थी। श्रणिक-चलन। को शान्ति नहीं मिली । एक रात वह मारे कष्ट के चीख से अजातशत्र कणिक के दो और सगे भाई थे-हल्ल रहा था। किसी उपचार से वह चुप नही हो रहा था । और विहल्ल । इसके अतिरिक्त दूसरी माँ से कालीकुमार श्रेणिक ने पुत्र के दुःख-शमन के लिए मोहवश, घाव से आदि दस अन्य भ्राता थे । सडी दुर्गन्धपूर्ण अगुली को अपने मुंह मे रख लिया। इससे राजा श्रेणिक के पास राज्य के अतिरिक्त दो और बालक को शान्ति मिली और वह चुप होकर सो गया। अमूल्य निधियों थी। मेचनक हाथी और दूसरा अठारह यह घटना नगर मे लोगो की जुबान पर फैल गयी। सरा देवतायो द्वारा दिया गया हार । कहा जाता था कि बालक के घाव और इस घटना के कारण ही बालक का इन दोनो निधियोका मूल्य मगधके पूरे राज्यके बराबर था। नाम कुणिक (अगुली का घाव) प्रचलित हो गया। श्रेणिक राजा श्रेणिक ने प्रेमवश हाथी को तो अपने पुत्र हल्ल और कुणिक शब्दो में साहित्यिक सौन्दर्य होने से राज- को दे दिया था और देवप्रदत्त हारको दूसरे पुत्र विहल्ल को। घराने में भी यह नाम स्वीकृत हो गया। सम्राट कुणिक ने राजगृह के पचपहाड़ी दुर्ग के अन्दर कुणिक के रूप मे मगध साम्राज्य का एक राजप्रासाद मे पिता श्रेणिक को कैद मे रखा था; स्वय बुद्धिमान और शौर्यवान राजकुमार अवतरित हुअा। अपने लिए उन्होने दर्ग के बाहर प्राकृतिक उष्ण जलउसका प्रभाव दिन-दिन बढता गया और उसकी सम्राट घारापो के समीप एक विशाल गजप्रासाद निमित कगया। होने की प्राकाँक्षा भी बलवती होती गई। पूर्वजन्म के जिस दिन सम्राट अजातशत्र-कूणिक के घर पुत्र नं बैर-भाव ने उसे पिता श्रेणिक की हत्या करने के लिए जन्म लिया. उस दिन राजगृह मे खुशियो का ठिकाना प्रेरित किया होगा। परन्तु उसकी प्रावश्यकता नहीं पड़ी। नही था। राजघराने में पुत्र का उदय हुपा इसलिए उनका उसने मौके से अपने पिता सम्राट श्रेणिक बिम्बसार को नामकरण 'उदायी' किया गया । राजगृह मे ही उनके राजप्रासाद में कैद कर लिया और एक दिवस की घटना है। अजातशत्रु भोजन कर स्वय मगध का सम्राट बन गया । इस विषय मे अपनी मा रहे थे । माँ चेलना पौत्र को गोद में लिए हुए पखा झल चेलना के विरोध की उसने तनिक भी परवाह नही की। रही थी । यकायक बालक ने पेशाब किया जिसके छोटे चेलना ने चाहा कि इस विपत्ति में वह अपने पिता, सम्राट अजातशत्रु की थाली मे पड़े। परन्तु इसके पूर्व कि
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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