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________________ १२० वर्ष २३, कि०३ अनेकान्त गगन न बोस भान, महीने तक हुई राजुल की मार्मिक विरहावस्था का चित्रण सुर ताला को हो तान, है। श्रावण माह में प्राकृतिक उपादान मौर तीज का चमकं बीजरी हो। त्योहार विरहणी को अधिक दुखदायी हुमा है :दूलह नेमिनाथ का स्वागत करने के लिए उग्रसेन के सषि सांवणडो प्रब प्रायो, दरवाजे पर सोना, चांदी, पीतल, ताबा मादि के कलश बो सब पुरष त्रिया मन चायोबे। सिर पर धारण किये गाती हुई स्त्रियां खड़ी हैं। किन्तु बरस मेघ चमकं बोजोबे, द्वार पर पाने से पूर्व ही पशुओं की क्रन्दन-ध्वनि सुनकर __ सषिया सब मिलि बेल्हें तीजो में। और उसके मर्म को जानकर नेमिनाथ विरक्त हो गए । हं कैसे षेल्ह हारी वे, हलधर आदि का समझाना भी उन्हें गिरिनारि जाने से नेम जाइ चढ्यो गिरनारी वे। न रोक सका झूठो दोस पसुन सिर दीयो के। हलधर केसौ बीनउ जी, ठाढ़ा जोड़पा हाथ । वा तो अपनी जाण्यौ कीयो । छपन कोटि जादुमण, फिर चालो जगनाथ । माह मास का शीत तो वह अकेली सह ही नहीं नेम नगीनो बोलियो जी, थे घर जावो.भ्रात । पाती:म्हे ससार स्यो दुरिछा जी, भव-भव मेरो भ्रात ।। सषी महा मास की राते बे, नेमिनाथ के विरक्त होने का समाचार सखियों से ___एकलड़ी रही न जाते थे। सुनकर राजमतो विलखी अवश्य, किन्तु माता-पिता के सी लागे कोमल अंगो बे, समझाने पर भी दूसरा विवाह करने को तैयार नहीं हुई। ___ नहीं भाजे दूजो संगो बे। नेमिनाथ की एकनिष्ठ अनुरागिणी राजमती भी उन्ही की ३. जिन गीत :-८ चरण के इस मार्मिक गीत में अनुगामिनी बनी राजमती ने सखियो को नेमिनाथ को बुला लाने को कहा माय कहै सुणिहो राजमती, कहो हमारी मानि । है। उसे पश्चाताप है कि नेमिनाथ ने पहले विवाह की नेम गयो तो जांण दे जी, और बिहाव प्रानि । सोचकर फिर वैराग्य क्यो लिया? राजल मास्यों इम कहै जी, थे क्यों बोलौ पाप । इ भव तो बर नेम छ जी, और म्हारं माइ बाप । सषी री नेम जो नै ल्याहो, अरिहां प्रभु जी नै ल्याहो कनककन मोती तज्या जी, तोड्या नवसर हार । पाछ्यो लागी नेमके जी, जाइ चढ़ी गिरनारि । नेम जी ने ल्याव ने सषी री, ___ काहे कुं व्याहु न चल्या हो नेम, संसार की स्वार्थपरता और असारता जानकर क्यों सिर बांध्यो मोड़, राजमती ने सयम लेना ही उचित समझा :मात पिता सुत सुंदरी जी, को कोइ को नाहि । __ क्यों छोड़ी मृगलोचनी हो, स्वारथ प्रापण सबै कर जी, विपति पड़े जब माहि । सरस मिली थांकी जोड़। मुणि राजमति चितवं जी, यो संसार असार । कर का चोली मुबड़ा री सखी, अजिका पासि बड़ी भई जी, लोयो सजम मार। सिर का द्योली चीर । तपस्वी नेमिनाथ को केवलज्ञान उदित होने पर ४. डोरी को गीत:-इसमे अनेक योनियो में भटअष्टविधि से पूजा और समवशरण की रचना हई। कने वाले जीव को उसके कप्टो का वर्णन करते हुएतदनन्तर नेमिनाथ मोक्षगामी हुए। "डोरी थे लगावो हो नेम जी का नाव स्यो" की शिक्षा २. नेम जी की लहरि :-यह १८ छन्दो की विरह- दी गई है। कवि ने देवगति को भी बन्धन का कारण रचना है । इस रचना में सावन के महीने से भाषाढ़ के मानकर शोकप्रद ही कहा है
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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