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________________ ढूंढाड़ी कवि ब्रह्म नाथू की रचनाएँ डा. गंगाराम गर्ग अनेक जैन विद्वानों के साधना-स्थल राजस्थान के पूर्वी नेमिनाथ के विवाह के लिए राजमती को मंगनी हेतु एक भाग ढूढाढ़ प्रदेशको भाषा ढूंढाडी अपनी कोमलता, मधुरता दूत उसके पिता के पास भेजते है। उग्रसेन अपने को और बोध गम्यता के कारण गद्य साहित्य के अतिरिक्त गीत गौरवान्वित समझते हुए इस सम्बन्ध को विनम्रतापूर्वक काव्य की भी भाषा रही है । अज्ञात कवि 'नाथू' दूढाड़ी स्वीकार कर लेते है :भाषाके प्रज्ञात गीतकारो मे से एक है। अपने नाम के साथ इक देइ बेटी पाय लागो, भरज सुणिज्यो म्हाह री। 'पाण्डे' और 'ब्रह्म' शब्दों का प्रयोग करने से 'नाथू' ब्रह्म- हूँ गरीब ये साहिब म्हांका, मैं बोट पकरी थाह रो। चारी प्रतीत होते है। इनका प्रमुख साधना-स्थल वर्तमान इक बार बारहकरों होनती, औरो कछु जाणों नहीं। टोक जिले में स्थित 'नगर' का प्रमुख जैन मन्दिर था जहाँ भूला चूकां समझा लोज्यो इह बात जाणो सही। श्रावक भाव सहित पूजा व दानादि करते थे। नाथू ब्रह्म समुद्रविजय की नगरी में अब नेमिनाथ को दूलह वेष की निम्नलिखित रचनाएं मिली हैं : में सजाया जाता है। उनके पारीर पर हल्दी का उबटन नेमीश्वर राजमतीको व्याहुला:-इस ग्रन्थ का करके सिर पर सेहरा बांधा जाता है। फिर उनकी आँखों प्राण मटी ६. सवत १७२८ मे हुई । इसमें 'तलदी, में काजल लगा कर चबाने के लिए पान का बीडा दिया निकामी सिंदरी' विद्रावनी' की ढालों में नेमिनाथ मोर जाता है। गाना, वाद्य-ध्वनि और लोकाचार सभी से राजमती के समस्त विवाह-प्रसंग का वर्णन किया गया है। उत्सव की शोभा बढ़ गई हैग्रन्थ की कथा के अनुसार राजा समुद्रविजय अपने पुत्र भुवा कुंता गाव छ मंगलचार तो, मिलता है जिनका संग्रह संस्कृत के कोश ग्रंथों में नहीं लुंण उतार बंन्हड़ी जी। पाया जाता। प्रबन्ध चिन्तामणि, प्रबन्ध कोश और पुरा- कोड़ि छपन जादु सब ज्यां को नारि तो, तन प्रबन्ध संग्रह ये तीनों ग्रन्थ सिंघी जैन ग्रन्थमाला से गाव गीत सुहावंण जी। मुनि जिन विजयजी द्वारा सम्पादित प्रकाशित हो चुके है। बाजा बाजे साढ़ी बारा कोडितो, इनमे पाए हुए शब्दों का एक महत्वपूर्ण संग्रह डा० भोगी गाय बमामा दुड़वड़ो जी। लाल साडेसरा और जे०पी० ठाकर ने किया है। यह ग्रन्थ भेरि नफोरी बाजे छ ताल ती, लेक्सिको ग्राफिबल स्टडीज इन जैन सस्कृति (Lexico मावल बाजे बमवमौ जो ॥३॥ graphical Studies in Jain Sanskriti) are gife. गजा समुद्रविजय पुत्र को व्याहने के लिए ज्यो ही यन्टल इस्टीट्यूट, बड़ौदा से प्रकाशित हो चुका है। बारात लेकर चलने लगे, त्यों ही मार्ग मे अनेक प्रकार के जैन साहित्य बृहद् इतिहास भा. ५ में इनके अतिरिक्त शकुन होने लगे। कवि ने उनकी बारात के वैभव में श्रीधरसेन रचित विश्वलोचन कोश, असग के ननार्थकोश हाथी, विमान, रथों की चर्चा करते हुए घोड़ों का अधिक शब्दचद्रिका प्रादि का उल्लेख है। वर्णन किया है१. नगर नगीन सोभिती जी, चौबीसी ब्राजमान । घोटक अंत न पार , राको सिरबार । श्रावग पूजे भाव स्यों जी, सकत सहित दे दान ।। बगतर पहरयो हो भार, नप सप सबबन्या हो। -प्रशस्ति, "श्री नेमीश्वर राजमती को व्याहुलो" मारखी चल्या प्रसमानर,
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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