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११८, वर्ष २३, कि०३
भनेकान्त
मन्तिम भाग तो उन्हें प्राप्त ही नहीं हुमा था। पर उन्हें लिए करवा ली है। इनके अतिरिक्त अपवर्ग नाममाला, प्राप्त प्रति में जो राजस्थानी शब्द, टिप्पण रूप में मिले निघण्ट संग्रह, बीजनिषण्ट और पौषधि नाममाला मादि थे वे विशेष महत्व के हैं। अन्त में "सिद्ध शब्दार्णव' में कोश ग्रंथों का उल्लेख प्रो. हीरालाल कापड़िया ने अपने पाए हुए संस्कृत शब्दों का अंग्रेजी मे अर्थ भी सम्पादक ने "जैन संस्कृत साहित्य के इतिहास" नामक ग्रन्थ में की है। विशेष श्रम करके दे दिया है । इसलिए अंग्रेजी जानने वाले एकाक्षरी नाममाला में जैन विद्वानों के रचित प्रमरविद्वानों के लिए भी यह संस्करण बहुत उपयोगी हो गया चन्द्र, सुधाकलश प्रादि को नाममालाएं उल्लेखनीय हैं। है। प्रारम्भ मे ३६ पृष्ठोंकी अग्रेजी भूमिका भी उल्लेखनीय अमरचन्द १३वी, १४वीं शताब्दी के विद्वान हैं। इनकी है। लोहावट से प्राप्त पूर्ण एवं शुद्ध प्रति हमने श्रीमुरली- एकाक्षर नाममाला २१ श्लोकों की है। और सुधाकलस घर पानसे को भेज दी है । प्राशा है इसका अगला सस्करण हर्षपुरीयगच्छ के राजशेखर सूरि के शिष्य थे। अतः इनका अधिक शुद्ध और अच्छे रूप में निकलेगा।
समय भी १४वी शताब्दी का ही है। इनके रचित संगीतोउपरोक्त 'शब्द रलाकर' के रचयिता साधुसुन्दर के पनिषद सारोद्धार नामक संगीत विषयक ग्रन्थ प्राप्त है गुरू साधुकीति रचित 'शेष नाममाला' या 'शेष सग्रह जो कि बडौदा प्रोरियंटल सीरीज से प्रकाशित भी हो नाममाला' नामक कोष भी प्राप्त है जो अभी तक अप्र- चुका है। इनकी एकाक्षर नाममाला ५० श्लोकों में है। काशित है। लौका गच्छीय ऋ० गुणचद्र रचित मनोरमा अमरचन्द और सुधाकलश को नाममालाएं अन्य अनेक नाममाला की प्रति मुझे कलकत्ते के जैन भवन में प्राप्त ऐसी ही नाममालाप्रो के साथ "एकाक्षर नाम कोश संग्रह" हुई है जो सं० १८१ की रचना है।
नामक ग्रथ मे राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर आशिक शब्दकोश के रूप में 'अपवर्ग नाममाला' से पन्यास मुनि रमणीक विजय जी द्वारा सम्पादित होकर नामक १३वी शताब्दी का एक शब्दकोश प्राप्त हुआ है। प्रकाशित हो चुकी है । इसमे अन्तिम ग्रन्थ वाचनाचार्य श्री जिसका दूसरा नाम पचवर्ग परिहार नाममाला भी रखा वल्लभ रचित 'विद्वत् प्रबोध' विशेष रूप से उल्लेखनीय है। गया है। यह अभी तक अप्रकाशित है। इसके रचयिता प्रो० हीरालाल कापडिया ने कई सदिग्ध रचनाओ जिनभद्र सूरि को प्रो० हीरालाल कापड़िया ने १५वीं का उल्लेख भी अपने ग्रन्थ में किया है और कई ऐसे शताब्दी के प्रसिद्ध जैसलमेर मादि ज्ञान भण्डारो के स्था- अन्य कोश भी मिलते है जिनमे रचयिता का नाम नहीं पक जिनभद्र सूरि मानलिया है पर वह ठीक नहीं है । ग्रथ । दिया गया है। ऐसी रचनामो का उल्लेख करना यहाँ कार ने अपना परिचय देते हुए जिनवल्लभ सूरि का शिष्य प्रावश्यक नही समझा। पौर जिनदत्त सूरि का भक्त बतलाया है। इससे ये १६वीं २०वी शताब्दी मे १० जैन मुक्ति विजय जी ने एक शताब्दी के सिद्ध होते है। इनके सम्बन्ध मे डा० दशरथ बहुत महत्वपूर्ण सस्कृत शब्दों का एक कोश तैयार किया शर्मा का भी एक लेख छप चुका है।
जो गुजगती अर्थों के साथ दो भागो मे अहमदाबाद से १६वीं के प्रारम्भ में ही तपागच्छीय शुभशील
प्रकाशित हो चुका है। इसका नाम "शब्द रत्न महोदधि" गणी अच्छे विद्वान हो गये है। इन्होने पचवर्ग संग्रह नाम रखा गया है। स.१६९३ में इसका प्रथम भाग ९५४ माला की रचना की। इसमे ६ काण्ड है । उन्ही के रचित
पृष्ठो का प्रकाशित हुअा, फिर स. १९९७ मे द्वितीय पचवर्ग परिहार धातु सग्रह नामक एक और रचना भी
भाग छपा है। कुल पृष्ठो की संख्या दोनो भागों की प्राप्त है। इन दोनो रचनामो की सग्रह प्रति भडारकर
२१५३ है। श्री विजय जीति सूरि वाचनालय गाधी रोड, मोरियटल रिसर्च इन्स्टीटयूट पूना से प्राप्त कर हमने
अहमदाबाद से यह ग्रन्थ प्रकाशित हुप्रा है। मूल्य क्रमशः दोनों ग्रन्थों की प्रतिलिपि अपने अभय जैन ग्रन्थालय के
८ रुपये और १० रु. है। यह कोश १२ वर्षों के श्रम का
र १. लेखक ने रचनाकाल सं. १८ लिखा है, जो भ्रामक सुफल है । मूल्य भी प्रचारार्थ बहुत कम ही रखा गया है। है, हो सकता है कि वह सं० १८०० हो।
जैन ग्रन्थो में बहुत से ऐसे शब्दों का प्रयोग भी