________________
११६, वर्ष २३, कि०३
अनेकान्त
मादि की प्रौढ़ एव दार्शनिक चर्चा प्रधान रचनाएं मिलने कोश भी प्राप्त एवं प्रकाशित है। मूल नाममाला, गुजराती लगती हैं । जैनाचार्यों में बहुत से मूलत: ब्राह्मण थे, इस- अनुवाद के साथ पं० त्रिभुवनदास अमरचन्द ने पालीलिए सस्कृत के विद्वान तो वे प्रारम्भ से थे ही। फलतः ताणा से सं० १९८३ में द्वितीयावृत्ति प्रकाशित की, उनमें उन्हे प्रौढ़ संस्कृत रचनाए करने में कोई कठिनाई नही २०५ श्लोक हैं । यद्यपि २०४ वें श्लोक मे इस नाममाला हई। पर व्याकरण और कोष जो जैनेतर विद्वानों के का परिमाण २०० श्लोक का बताया है। अमरकीति के रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ थे. उन्ही से काम चलाया जाता रहा। भाष्य सहित इसका सुन्दर सस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से इसलिए ११वीं शताब्दी से पहले' श्वे. जैनों के रचित सं० २००७ में प्रकाशित हुमा । इसके अन्त मे धनंजय की कोई संस्कृत व्याकरण भोर कोश ग्रन्थ उपलब्ध नही हैं। नाममाला भी टीका सहित प्रकाशित है। प्रस्तावना में हवीं शताब्दी के विद्वान जिनेश्वर सूरि मौर बुद्धिसागर धनंजय का समय ईशा के पाठवी का उत्तरार्ध और हवीं सूरि दोनों भ्राता ब्राह्मण थे। श्वे. बुद्धिसागर सूरि जी का पूर्वाद बतलाया गया है जो विचारणीय है। धनजय ने सर्वप्रथम स्वतंत्र व्याकरण बनाया जो बुद्धिसागर व्या- दिगंबर सम्प्रदायानुयायी गृहस्थ थे उनके रचित द्विसंधान करण के नाम से प्रसिद्ध है। उसका मूल नाम 'पंचग्रन्थो'- काव्य और विषापहार स्तोत्र भी प्रसिद्ध है। शब्द-लक्ष्मलक्षण है ७ हजार श्लोक परिमित इस व्याकरण श्वेतांबर विद्वानो में प्राचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृत शब्द की रचना स. १०८० में जावालपुर (जालोर) मे हुई। कोश संबंधी कई रचनाए की। जिनमे से "अभिधान दिगंबर सम्प्रदाय के प्राचार्यों ने तो इससे पहले भी सस्कृत चिन्तामणि" बहुत ही प्रसिद्ध है। इस नाममाला मे रूड, व्याकरणादि सम्बन्धी ग्रंथ बनाये थे। पर कोश ग्रन्थ तो यौगिक, यानि व्युत्पत्ति से सिद्ध और मिश्र शब्दों को उनके भी अधिक पुराने नही मिलते । शायद सबसे पहले अमर कोश की तरह भिन्न-भिन्न कांडों मे पर्याय वाचक विसघान-राघव पाहवीय (काव्य के रचयिता) कवि धनंजय शब्दों सहित दिया गया है। इसमें ६ काड है-१. देवाने 'नाममाला' नामक सस्कृत शब्दकोश की रचना की। घिदेव, २. देव, ३. मर्त्य, ४. त्रियक, ५. नरक, ६. सामावनंजय का समय १०-११वी शताब्दी के प्रास-पास का न्य है। इन काण्डों की श्लोक संख्या क्रमशः ८६, २५०, माना जाता है। इसके बाद तो कई महत्वपूर्ण शब्दकोश ५६७, ४२३, ७ ओर १७८ तथा कुल १५४१ श्लोक हैं। तैयार हुए। जिनमे प्राचार्य हेमचन्द्र के कोश ग्रन्थ तो बहुत इस नाममाला पर पाचार्य श्री की तत्वाभिधायिनी नामक ही महत्वपूर्ण हैं।
८५०० श्लोकों की परिमित टीका उपलब्ध है। इस पर धनंजय नाममाला के २ संस्करणों में २०३ मोर अन्य भी कई टीकाए प्राप्त है। अभिधान चितामणि के २०५ पद्य प्रकाशित हुए हैं। धनजय ने एक शब्द पर से दो संस्करण उल्लेखनीय है । पहला गंवरण देवचद लालशब्दांतर बनाने के लिए विशेष पद्धति का उपयोग किया। भाई पुस्तकोद्धार फड, सूरत से प्रकाशित हुअा है। दूसरा से पृथ्वी के नामो के प्रागे घर शब्द जोड देने से, पवंत संस्करण गुजराती शब्दार्थ के साथ गिरधरलाल शाह,
नाम, मनुष्य के नामों के प्रागे पति शब्द जोड देने से अहमदाबाद ने प्रकाशित किया है। राजा के नाम, वृक्ष के नामो के मागे चर शब्द जोड़ देने प्राचार्य हेमचन्द्र का दूसरा कोश 'अनेकार्थ सग्रह मै बन्दरों के नामों का बन जाना । धनंजय की नाममाला नामकोश' भी महत्वपूर्ण है। यह भी ६ काडो में है। पर प्रमरकीर्ति का भाष्य अनेकार्थ नाममाला श्वे. शब्द चौखम्बा सस्कृत सीरीज से सं० १९८५ में यह प्रकाशित १. दि० विद्वानों के रचित जैनेन्द्र व्याकरण आदि अन्य
हो चुका है। भूमिका में इसे २००० श्लोक परिमित इससे पहले बने हैं। वे अनुपलब्ध हैं।
बतलाया गया है। १, २, ३, ४, ५, ६ स्वरों वाले अनेधनंजय का समय प्राचार्य वीरसेन की धवला टीका कार्थ शब्दो को इसमे ६ कांडों में विभक्त किया है। अन्त से पूर्व का है। क्योकि उसमे नाममालां का एक पद्य
मे अव्यय वर्ग भी संग्रहीत हो गया है। गणना करने से
म अव्यय वग भा सग्रहात हा गया है। गणना । उद्धृत है।
-सम्पादक समस्त श्लोकों की संख्या १९३१ होती है। प्रकाशित