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मलपुरका जन शिलालेख
(रथोद्धता छंद)
मुलाकात हो जाने पर अर्थात् स्वर्गवासी हो जाने पर, तत्र नाकयुवति स्तन स्थली,
कुंद कर दिया है शत्रुषों के मुख कमलों को जिसने ऐसे पत्रवल्लिघनबरस्पृशि ।
प्रमानन्दक प्रासलराज चन्द्र हुए। चाहडः प्रतिनरेन्द्रकानन,
(विशेष :-भासलराज को जो चन्द्रमा बताया है पयोषवावशिखिमूतिरुद्ययौ ॥८॥
सो उचित है। क्योंकि चन्द्रमा भी “मीलितारि मुखांबुजः" अर्थ :-उन परमाडिराज के अप्सरामों के चित्रांकित है अर्थात् अरि-अलि-भौरें हैं मुख मे जिनके ऐसे कमलों को स्तनों का मालिगन कर लेने पर अर्थात् उन परमाद्रिराज संकुचित करने वाला है (रात में कमल संकुचित हो जाते के स्वर्गवासी होने पर 'चाहड' राजा हुए जो शत्रु है और सूर्योदय पर खिलते हैं।) राजामों रूपी वन को जलाने मे दावानल थे।
(शार्दूल विक्रीडित छंद) (विशेष :-स्तन-स्थली पत्रवल्लिघनडबर' का अर्थ
संग्रामेषु समग्रसाहसरिपुषण्णभकंभस्थलहै स्तनों पर बेल-बूटे आदि का चित्रांकन था।)
मुक्तावंतुरिता कृपाणलतिका बाभातिहस्ते तव । (अनुष्टुप् छद)
धीमन्नासल भूप किन्तु भवते जैत्रधिया प्रेषित: तत्र स्वर्गपुरी पौर, गौरवंशमुपेयषि ।
कन्दर्पोत्सवलेख एष कदलीपत्रे पवित्राक्षरः ॥१२॥ नवा वैरिमर्माविन्, महीजानि रजायत ॥६॥
अर्थ :- युद्धो मे सम्पूर्ण साहसी शत्रुनो को रौंदने अर्थ :-उन गजा चाहड के भी स्वर्गपुरी के पुर
वाले ऐसे हाथियो के कुभस्थलो की गजमुक्ता में व्याप्त वासी अर्थात् देव उनका जो गौरवश (देवगण गौर वर्ण
लपलपाती तलवार, हे श्रीमन् प्रासल नरेन्द्र ! आपके होते है) उसे प्राप्त होने पर अर्थात् स्वर्गवासी होने पर
हाथ मे ऐसी सुशोभित होती है मानों विजय लक्ष्मी ने शत्रुहंता नवा नाम के राजा उत्पन्न हुए।
प्रापके लिए केले के पत्ते पर पवित्र अक्षर लिख कर (विशेष :-महीजानि-मही पृथ्वी ही है जानि-स्त्री
वसंतोत्सव (होली) का लेख ही भेजा हो। जिसके अर्थात् पृथ्वीपति राजा ।) (वसततिलका)
(अनुष्टप्) यस्मिन् विलासकुशले हृदयाधिनाथ
त्वयाऽवधूत भूपाल, गोरक्षणारियोषिताम् । स्थाने करं क्षिपति सागरमेखलेयम् ।
लोचनेषु नपासल्ल, चक्रे लक्ष्मीनिरंजना ॥१३॥ उत्कंटका न, पृथुकम्पवती न जज्ञे
अर्थ : हे आसल्ल नरेन्द्र ! पराजित राजाओं की प्रौढांगनेव न बभार विवर्णभावं ॥१०॥
पृथ्वी की रक्षा करने वाले अापने शत्र-नारियों की अर्थ :--जिन सुखदायी नृवर्मा शासक के द्वारा प्रांखो की शोभा को काजल रहित कर दिया (आपके यथोचित टेक्स लगाने पर यह पृथ्वी उपद्रवियो से रहित द्वारा शत्रों के राज्य छीन लिए जाने पर उनकी स्त्रियो हो गई तथा अस्थिर स्वामित्व और दुःख सकट से दूर हो ने जो रुदन किया उससे उनकी आंखों की शोभारूप काजल गई अर्थात प्रजा ने अमन-चैन का अनुभव किया। जिस धुल गया।) तरह विलासप्रिय पति के द्वारा काम-स्थान पे हाथ लगाने
(वसत तिलका) पर प्रौढ स्त्री न तो रोमाचित होती है न चौकती है और प्रस्य प्रतापकनक रमलयंशोभि न म्लान होती है।
मुक्ताफलेरखिलभूषण विभ्रमायां । (अनुष्टुप्)
पादोनलक्ष विषय क्षिति पक्मलाक्ष्याअस्मिन्नाषेदुषि स्वर्ग-श्री संसर्ग महीभुजि ।
मास्ते पुरं 'नलपुर' तिलकायमानं ॥१४॥ नंदत्यासल राजेन्दुर्मीलितारिमुखांबुजः ॥११॥
प्रर्थ ;-इन प्रासल नरेन्द्र के प्रतापरूपी सुवर्ण मौर अर्थ :-इन (नवर्मा राजा) के भी स्वर्ग लक्ष्मी से निर्मल यशरूपी मोतियो के सम्पूर्ण प्राभूषणों से अलंकृत