SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ वर्ष २३ कि.३ अनेकान्त सक्षेप में इसका विषय शिक्षादायक और मनोरजक दोनो तीसरे अंश की प्रारम्भ की गाथा १५४-१६०, को पप मन्दिर ने परकृत याने बाद की बनी कहा है। १२. कथा रत्नाकर-यह ग्रन्थ संस्कृत मे है और १४. कथावली-यह भद्रेशवर का लिखा हुमा प्राकृत उत्तमर्षि इसका रचयिता है। उपलब्ध हस्तप्रति अपूर्ण है मे एक भारी गद्य-ग्रंथ है। इसकी अब तक एक ही प्रति और वह दूसरे खण्ड पर समाप्त हो जाती है। इसमें साधू पाटण मे पाई गई है। उस प्रति का संवत् १३६ [मस्तिम निंदा" का परिणाम दिखाने के लिए रुक्मिणी की कथा अक झड या टूट गया है। डा. याकोबी के अनुसार है, सम्मिलित है। परन्तु दलाल के अनुसार वह सं. १४६७ की है। दलाल १३. कथार्णव-धर्मघोषमूरि [लगभग १३वी सदी भद्रेश्वर को कर्ण के गज्यकाल [१०६४-६४ ई.] का ई.] का इसिमण्डल या ऋषिमण्डल स्तोत्र २०० से २१८ समय देता है । जब कि याकोबी इस ग्रन्थकार को, बहुत गाया की रचना है जिसमे शलाका पुरुपो और उनके धर्म का रचना ह जिमम शलाका पुरुषा भार उनक धम- करके वही भद्रेश्वर मानता है कि जो १२वी सदी विक्रमी पगयण समकालिको, प्रत्येक बुद्धों, जिनपालित जैसे काल्प- दितीया में उमा था। कछ भी हो, इस ग्रन्थ को निक वीगे, मेतार्य जैसे क्षमाशील मुनियो और महावीर के चन्द्राचार्य के परिशिष्टपर्व से प्राचीनतम तो मानना ही का जिनम कुछ क जावन प्रसग भा होगा। इसमे ६३ शलाका पुरुपो का वृन है और कालको कुछ-कुछ दिए है मादि को पाद्वान-नमस्कार किया गया। लेकर हरिभद्रमूरि तक के प्राचार्यों की भी जीवनिया दी है। इसमें से अधिकाश भागमो, नियुक्तियो और प्रकीण हुई है । जहा तक इम द्वितीय विभाग की बात है, हेमचन्द्र की में भी पाए जाते है। जो प्रौपदशिक कथानो, गौरवा. तो वज्रस्वामी की कथा लिख कर ही परिमिष्टपर्व समाप्त वित कथामो और वर्णनात्मक दृष्टान्तो में अनंतिहासिक कर देने है, जबकि भद्रेश्वर श्रीहरिभरि तक अपनी कथा पात्र से प्रतीत होते है, मब यहा वैराग्य-वीर या जन को ले पाता है। याकोबी कहत है५ 'सामग्री का संग्रह सघ की सुप्रसिद्ध व्यक्ति मानी गई है। टीकाकारा क लिए युगप्रधानों के सम्पूर्ण इतिहास के लिए सबसे पहले कदाइन बावापो की व्याख्या में स्तोत्र में उल्लिखित व्यक्तियों चित् भद्रश्वर द्वारा ही किया गया था। और इसकी की पूर्ण जीवनी देना इसलिए परमावश्यक था। प्राधे दजन कथा मामान्यतया चूर्णिया और टीकामो में मिल रहे से अधिक वृत्तिवा इस स्तोत्र पर उपलब्ध है। प्राचीनतम कथानको की अधिक माजित सस्करण ही है ।' भद्रेश्वर प्रति सं. १३८० को भौर नवीनतम स. १६७० की है। और हेमचन्द्र की रचनामो के कुछ भेदो का विचार करने इमकी प्राकृत मे वृहद्वृत्ति पाटण के समूह मे है । खरतर- बाद. याकोबी कहते है, 'भद्रेश्वर को रचा मे साहिगच्छ के पनमन्दिर की वृत्ति 'कथार्णव' कहलाती है और त्यिक गुण कम है। यह श्वेताम्बर सम्प्रदाय के इतिहास वह वि. सं. १५५३ याने १४६६ ई० की है। उसमे की असम्बद्ध मामग्री का संग्रह मात्र है कि जो चणि और गावानो की व्याख्या भोर मारी कथाए सस्कृत अनुष्टप टीका के प्रचुर साहित्य से छांट ली गई है। कथावली छन्द में दी हुई है"। मूल स्तोत्र की कुछ गाथा जैसे कि हेमचन्द्र की स्थविगवली चरित्र से तुलना मे नीचा है २२. हीरालाल मराज, जामनगर वाले दारा मन , क्योकि स्थविगवनी चरित्र में जम्ब से वजन तक मे प्रकाभित; हर्टल द्वाग सन् १९२० में जरमन भण्डारो को हस्तप्रतियो का मूचीपत्र पृ. १४, स. भाषा मे अनूदित; देखो विण्टरनिट ज : भासाइ भाग १२६, बड़ोदा १९२३; पाटण हस्त. की सूची, भान २०५४५। १,१.११९ आदि। ०३. पेटरसन की प्रतिवेदनाए ४, पृ.८० । २५. याकोबी सम्पादित, बिबलोथिका इण्डिका, कलकत्ता २४. देखो श्री ऋषिमण्डल-प्रकरणम् प्रात्मवल्लभ पन्थ- से १९३२ मे प्रकाशित द्वितीय सस्करण, स्थविराबनी माला सं. १३, वलाइ १९३६, उसका इण्ट्रोडक्शन चरित्र को देखो। पाटण हस्त. की सूची भाग १, पृ. विशेष हासे, जैन ग्रन्थावली. प. १७ण; जैसलमेर ५६, २४४ ।
SR No.538023
Book TitleAnekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy