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भगत प्यारेलाल जी का समाधिमरणपूर्वक स्वर्गवास
पूज्य बाल ब्रह्मचारी भगत प्यारेलाल जी महाराज का समाधिमरण ज्येष्ठ सुदी ७ से चाल हमा ५ तोला गर्म जल से। ज्येष्ठ सुदी १५ शुक्रवार को दिन के एक बजकर पचास मिनट पर बड़े होशहवास में मरण हया । अन्त में जयपूर संस्कृत कालेज के प्रिसिपल पं० गुलाबचन्द जी पहुंच गये थे। उन्होंने खूब धर्म सुनाया तथा अग्नि संस्कार भी कराया। उनके पानेसे समाधि शान्तिपूर्वक सम्पन्न हुई।
भगतजी को दिन तक १००/१३५ दस्त होते रहे। आपकी सेवा के लिए ईसरी से ब्र० प्रात्मारामजी भा आये थे। तथा बा. रूपचन्द जी तथा ब्र० चमेलोवाई जी ने बहुत ही सेवा की। भगत जी को तीव्र वेदना थी: किन्त उन्होंने परवाह न की। उनका समाधिमरण बड़े प्रानन्द से हमा। प्रतिदिन पड़े-पड़े सामायिक पाठ सुनते थे । शक्ति क्षीण हो गई थी पर उत्साह पूर्ण था। आपका त्याग प्रशंसनीय था, धैर्यशक्ति भी थी। उफ नही करते थे।
भगत जी का जन्म राजा खेडा के पास दिप्पी गांव में श्री नाथूराम जी जैन के घर मगशिर सदी ४ सम्वत १९४१ में हया था। पाप ईस्वी सन् १९४१ में आज से ५६ वर्ष पहले कलकत्ता पाये थे। पाठशाला में तो नही पढ़े थे। पर उस समय पं० गजाधरलालजी आदि से कुछ पढ़ लिया करते थे। इस तरह सस्कृत और प्राकृत भाषा का अर्थ करना सीख गये थे। गोम्मटसार की अङ्क संदष्टि प्राप चार-पांच जनों को १६३९ में पढाया करते थे। मुनि श्रुतसागर जी महाराज ब्र० सुरेन्द्रनाथ जी आदि सब उनसे पढ़े हैं।
जब आप कलकत्ता पाये तो स्व० बाबू छोटेलाल जी के बड़ भाई स्व० दीनानाथ जी तथा सेठ बलदेवदास जो से पूजन करते समय परिचय हुआ। स्वभाव से सादा जीवन तथा स्वाध्याय प्रेमी होने से दीनानाथ जी अापका भगतजी महाराज कहते थे। शुरू में १६१७ तक तीन वर्ष अापने कपडे को फेरी की थी। वह छडा दी गई और पाप सामाजिक, पूजन तथा स्वाध्याय में समय बिताने लगे। स्व० दीनानाथ जो का परिवार ग्रापको देवता की तरह मानता था । बड़े बूढे, स्त्री, बच्चे सभी पर प्रापका प्रभाव था। सेठ दयाचन्द जी, सेठ विरधीचन्द जी, सेठ बैजनाथ जा, सेठ हुकुमचन्द्र जी इन्दौर, सेठ भागचन्द जो इन्दौर, सेठ रतनलाल जी रांची, जगन्नाथ जी कोठरिया तथा हजारोबाग, गया, गिरीडीह, जियागज, प्रासाम, राजस्थान आदि के भाइयों पर आपका बड़ा प्रभाव था। चारित्र के आप ज्यादा पक्षपाती थे।
आप उदासोन पाश्रम इन्दौर तथा ईसरी के अधिष्ठाता थे, पीछे पद त्याग कर दिये थे। फिर भी दोनों पाश्रमों में आपकी सम्मति मानी जाती थी। अापने अपने खच के लिए किसी से पैसा नहीं लिया। अापने ४५ वर्ष पहले राजाखेड़ा में एक साधारण पाठशाला खोलो था। वह अाज एक विद्यालय के रूप में है। उसमें ३०० बालक और १०० कन्याएं पढ़ती हैं। पं० नन्हेलाल जी वर्षों से प्रधानाध्यापक के रूप में उसका संचालन करते हैं। भगतजी पं० जी को बहुत मानते थे और बड़ा स्नह करते थे। वर्तमान में विद्यालय का फण्ड २६००००) है और डेढ लाख के मकानात हैं। इसकी ट्रष्ट कमेटी के संरक्षक भगतजी थे । सभापति घमचन्द जी हैं, शान्तिलाल मंत्री हैं, और सदस्य नन्दलालजी, जगमन्दिरदास जी, रूपचन्दजी, श्यामलाल जी, हमकचन्द जी तथा सावित्रीबाई जी हैं।
नन्दलाल सरावगी
कलकत्ता