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भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य
एक धर्मभीरू गृहस्थ है; उसकी विषयासक्त भार्या उसे अन्तगडदसाप्रो की कथाएँ भी दो भागों में विभक्त अनुरक्त करने की भरसक चेष्टा करती है यहाँतक कि अंत की जा सकती है, एक तो वे जिनका सम्बन्ध अरिठ्ठनेमि में तंग होकर महासयय उसे यह शाप दे देता है कि उसका और कृष्ण-वासुदेव के युग से है और दूसरी वे जिनका नरक में जन्म हो। महावीर उसे इसका प्रायश्चित्त करने महावीर और सेणीय के युग से । इन ६२ प्रकरणों मे हमे को कहते हैं और वह प्रायश्चित्त करता है और यथाकाल ऐसे नर और नारियों की कथाएँ दी गई हैं कि जिनने उसे मुक्ति मिलती है। नन्दनीपिया और सालिहीपिया तीर्थकर के धर्म के अनुसार चलते हुए संसारचक्र का नाश भी धर्मभीरु गृहस्थ हैं जो यथाकाल मुक्ति प्राप्त करते हैं। कर दिया था और मुक्ति प्राप्त कर ली थी। हम इस ये कहानियाँ उस सांचे में ढली हई है कि सिर्फ नाम, ठाम
विचार से कि राजवंशों के नर और नारी भी भिक्षुमष मे बदल कर ही उन्हें कई गुणित किया जा सकता है। इन
अपने ग्रापको दीक्षित करा लेते है, पराभूत ही हो जाते सब कहानियों का लक्ष्य एक ही है। इनमे नाम, ठाम
हैं । प्राध्यात्मिक स्वातत्र्य की पुकार धार्मिक रगरूटों की आदि विवरण ही भिन्न-भिन्न है। 'दढ़प इथा' प्रात्मा का
मांग खूब जोरों से कर रही है और इस प्रकार वैगगी प्रतीतात्मक एक नाम ही प्रतीत होता है कि जिसने दृढ़
सेना की सैन्यपंक्ति बढती ही जा रही है। कुछ ही कथाएँ श्रद्धा का विकास कर लिया है और इस प्रकार मुक्ति
पूर्णरूप में दी गई है। शेप इतना मा कह कर ही समाप्त प्राप्त करती है। ऐसी प्रात्मा की जीवनी उववाइय और
कर दी गई है कि नाम, ठाम प्रादि के सिवा वे पूर्ववत ही रायपसेणइय दोनों मे ही दी गई है।
है। इनमे गजमुकुमाल की एक प्रादर्श वैराग्य कहानी है अपरिवर्तनीय नमूने के वर्ण की ओर उनका वों में
जिसमे क्षमा और प्रायश्चित्त-शौर्य का अपूर्व दृष्टान्त हमारे विभाजन का विचार करते हुए, नायाधम्मकहानो का
सामने प्राता है। देवकी के छह पुत्र जन्मते ही हरिणगद्वितीय श्रुतस्कन्ध, अन्त गडदसामो, अनुत्तरोववाइयदसाम्रो
मेसी देव की कृपा से सुलसा की गोद मे पहुँचा दिए गए और निरयावलियायो कि जिस मे अन्तिम पाँच उपाग
थे और बड़े होने पर वे भिक्षु बन गए थे। जब देवकी सन्निविस्ट है, को एक ही वर्ग में रखा जा सकता है।
इस बात से शीर्ण-क्षीण हो रही थी कि उमका कोई भी नाया के दूसरे स्कध मे दिए ढांचे, नाम और कथा के उद्
पुत्र उसके पास नहीं है और कृष्ण भी उमसे छह छह घोष-शब्द से ऐसी २०६ कथाए स्वतः ही पावृत्तिकार रच
महीने बाद ही मिलते है, तो कृष्ण ने किमी देवी को ले जैसी पूर्ण कथा काली की वहाँ दी गई है। ये सब प्रसन्न कर यह वर प्राप्त किया faaz इतना ही समझाने के लिए है कि किस प्रकार पूर्व जन्मों माल के रुप में देवकी के गर्भ मे जसले में की धर्माधना के कारण इन देवियों को ऐसी-ऐसी समय पाने पर देवकी के पुत्र रूप से गजमकुमाल का स्थिति प्राप्त हुई। उदाहरणार्थ, काली पाश्वनाथ का जन्म हपा था। अवस्था पाने पर और बहुत कुछ समझाते प्रवचन सुनती है और पुप्फचूला आर्या की नेश्रा में भिक्षुणी बुझाते हुए भी गजसुकुमाल ने दीक्षा लेकर अपने श्वसुर बन जाती है। जैसा उसके विषय मे सन्देह किया जाता सोमिल को बहत ही अप्रसन्न और क्रुद्ध कर दिया; क्योकि था. भिक्षणी होने पर भी वह शरीर की जरा भी उपेक्षा वह यह मान बैठा या कि भर जवानी में उसकी पुत्री का नही करती है, परन्तु न्हवण, विलेपन प्रादि मे वैसी ही उसने जानबूझ कर हो तिरस्कार किया है। इसलिए एक रत रहती है और इसलिए अन्त में उसे गण से बाहर कर दिन जब कि गजसुकुमाल श्मशानभूमि मे तप कर रहे थे, दिया जाता है। परन्तु वह उपवासादि तपस्या तो करती सोमिल ने बदला लेने की धुन में, उनके सिर पर मिट्टी ही रहती है और मरने पर इसीलिए वह देवी रूप जन्म का एक चुला बनाया और बधगते अंगारे चिता से उठा लेती है। यह देवी महावीर का दर्शन-वंदन करने पाती कर उसमें उसने लबालब भर दिए। युवक भिक्षु ने यह है मौर महावीर गौतम को तब उसका भविष्य कह सब घोर परिषह पूर्ण शांति और समता के साथ सहन देते है।
किया और उसे सहते हुए अपने प्रष्ट-कर्म दलिकों को