________________
वर्ष १३ कि. १
एवम्
जला कर मोक्ष ही प्राप्त कर लिया। उधर सोमिल कृष्ण को देखते ही भय से धकाल मरण कर गया। इस शास्त्र में ही हमें द्वारका और यादव कुल के नाश का भी वृत्त मिलता है। पूजकों को सताने वाले गुण्डों के विरुद्ध गदा उठाने वाले मुद्गर प्राणी यक्ष की, और अर्जुन माली उसकी स्त्री वंधुमति की कथा ऐसे लोगो की लोककथा के अत्यन्त सुन्दर नमूने हैं कि जो देव और देवियों के भक्त है। परन्तु यह बात कि मुद्गरपाणी परमधर्मष्ठ सुदर्शन के विरुद्ध कुछ भी नही कर पाता है, इतना ही नही अपितु एक दम असहाय ही हो जाता है, हमे बता रही है कि महावीर के अनुयायियो की उससे उच्चता और महत्ता स्थापित करने में इस लोक कथा का उपयोग पूरी पूरी कुशलता से कर लिया गया है। अर्जुनक माली महावीर का भक्त अनुयायी बन जाना है और भिक्षु होने के पश्चात् वह शांति और समता के साथ लोगों द्वारा दी गई यातनाएं दुःख और दुत्कार-फटकार सभी कुछ सहता है। जिसका परिणाम यह होता है कि इस तरह पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त करते हुए वह अन्त मे मुक्ति प्राप्त कर देता है। राजकुमार अतिमुक्तक की कथा यह बताती है कि पाप्यात्मिक समस्याओं ने तब नवयुवकों को भी कंसा तीव्र प्रेरित किया था और वे भिक्षु जीवन स्वीकार कर तप साधना से अन्ततोगत्वा मुक्ति प्राप्त कर सदा के लिए ही उस समस्या का हल निकाल लिया करते थे ।
अनुत्तरोववाइय-दामो में उन लोगों की कहानियां हैं कि जिनने तप साधना से अनुत्तर विमानों की प्राप्ति की । इनमें धन्न की कथा एक नमूना रूप ही है और वह यह प्रतिपादित करती है कि वैरागी जीवन की साधना में तप का कितना भारी महत्व है।
निरयापलिया में हम चेलण राणी से राजा श्रेणिक का पुत्र, कुणिय, के जन्म की कथा का जीवन्त वर्णन पाते हैं। जब वह गर्भ में था तब चेल्लणा राणी को अपने पति हो का मांस खाने का अद्भुत दोहद उत्पन्न हुआ । इस दोहद को उसके सौत पुत्र अभय ने कौशलपूर्ण रीति से पूर्ण कराया था पर इस दोहद की घटना से चेहलणा रानी पूरी भयभीत थी और मान रही थी कि उसकी यह सतान अवश्य ही राज्यवंश का कलंक होगी । और
अनेकान्त
इसलिए उसने शिशु को गर्म में ही नष्ट कर देने का प्रयत्न तक किया था, परन्तु सब प्रयत्न विफल गए। जैसा कि उसे भविष्य भासा था, कुणिय निःसन्देह बड़ा दुष्ट कुमार हुआ। वह पिता के जीते ही उन्हें कंद कर राज्यसिंहासन हड़प लेना चाहता था और उसने ऐसा ही किया । श्रपने सगे भाई बेहल्ल से राजा होने पर वह रत्नहार और गजराज छीन लेना चाहता था कि जो उसे पिता श्रेणिक से ही इनाम रूप मे मिले हुए थे। बेह ने इसलिए अपने नाना चेटक के यहाँ जाकर शरण ले ली श्रौर चेटक ने नव मल्लिकों, नव लिच्छवियो के साथ वेहल्ल के सत्य-पक्ष की रक्षा करने के लिए सधियाँ कुणिय और उसके दस भाइयों के विरुद्ध की । जो घमासान युद्ध हुआ उसमें कुणिय के दसो भाई मारे गए और वे हेमाभ नरक में गए। कुप्पियाँ में काल आदि भाइयों के पुत्रों की कि जो महावीर के भिक्षु बन गए थे और जो धर्माचरण कर भिन्न भिन्न स्वर्गों में गए, ही कथा चलती है। पुफिया मे सावत्थी के प्रगाई की कथा है कि जिसको भगवान् पार्श्वनाथ ने भिक्षु दीक्षा दी थी और जो भ्रपने साध्वापारी धनुशासन का कठोर पालन करने के फलस्वरूप मरने पर चंद्र-क्षेत्र में चंद्रमा के रूप में जम्म पाया। इसमें दूसरी मनोरंजक कथा वेदादि निष्णात ब्राह्मण सोमिल की है कि जिसको पार्श्वनाथ ने ही सम्यक श्रद्धान प्रायः करा दिया था, परन्तु भागे चल कर वह श्रमण साधना में विदिताचारी हो गया और वृक्षादि शेपग करता हुआ फिर से ब्राह्मण धर्मानुसार ही जीवन यापन करने लगा एवम् अन्त में वह दिशावोवसीय सामू या परिव्राजक हो गया। किसी देव ने प्रतिबोध देकर उसे अपनी स्थिति का भान कराया तो वह फिर से जैन साध्वाचार का पालन करने लगा । घोर प्रायश्चित्त करते हुए मृत्यु प्राप्त कर वह शुक्र ग्रह हो गया और यथाकाले वह निर्वाण प्राप्त करेगा । सुभद्रा की कथा में कहा गया है कि वह बच्चों के लिए बहुत ही लालायित रहती थी। परन्तु उसके कोई भी संतान नही हुई। पहले उसने श्राविका के व्रत अंगीकार किए और फिर वह भिक्षुणी ग्रार्या भी हो गई। परन्तु उसकी बच्चों को तीव्र लालसा फिर भी नहीं भरी और इस लिए भिक्षुणी जीवन में भी वह दूसरों के बच्चों का