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________________ कहानी मगध सम्राट् राजा विम्बसार का जैनधर्म परिग्रहण परमानन्द शास्त्री एक समय राजा बिम्बसार (श्रेणिक) एक बड़ी सेना के साथ वन में शिकार खेलने के लिए गया । वहाँ उन्होंने उस वन में यशोधर नाम के एक जैन तपस्वी महा मुनि को कायोत्सर्ग में स्थित ध्यानारूढ देखा । महामुनि यशोधर ध्यान अवस्था में निश्चल, निष्कप खड्गासन में स्थित थे । वे परमज्ञानी क्षमाशील और श्रात्मस्वरूप के सच्चे वेत्ता, उपसर्ग परीषह के जीतने में समर्थ मुनिपुंगव थे । उन्होने मन को सर्वथा वश में कर लिया श्रा । शत्रु, मित्र, मणि और कंचन में समभाव रखने वाले तत्त्वज्ञ तपस्वी थे । वे परम दयालु, निष्कंचन इन्द्रियजयी तथा समतारस में निरत रहते थे । राजा बिम्बसार की दृष्टि उन पर पड़ी, उन्होने उससे पूर्व कभी कोई जैन श्रमण नहीं देखा था । अतएव उन्होंने पार्श्ववर्ती एक सैनिक से पूछा "देखो भाई ! स्नान आदि के संस्कार से रहित एवं मुण्ड मुडाए नग्न यह कौन व्यक्ति खड़ा है ? मुझे शीघ्र बतलाओ ।" " कृपानाथ ! क्या श्राप इसे नहीं जानते ? यही महाभिमानी महारानी चेलना का गुरु जैन मुनि है ।" बिम्बसार की तो यह इच्छा पहले ही थी कि महारानी के गुरु से बदला लिया जाय । पार्श्वचर की बात सुनकर उनकी प्रतिहिंसा की अग्नि भड़क उठी, उन्हें तुरंत रानी द्वारा किये गए अपमान का स्मरण हो आया प्रतएव उन्होंने क्षण एक विचार कर अपने साथ श्राए हुए सभी शिकारी कुत्तों को मुनिराज के ऊपर छुड़वा दिया । दूर हो गई। उन्होंने ज्यों ही मुनिराज की परमशान्त मुद्रा देखी, तो वे मंत्र कीलित सर्प के समान शान्त हो गए। और उनकी प्रदक्षिणा देकर उनके चरणों के समीप शान्त होकर बैठ गए । बिम्बसार रोष के प्रवेश में गाफिल होकर म्यान से तलवार खींच कर मुनिराज को मारने के लिए चल दिया। जब वह मार्ग में जा रहा था तब एक भयानक काला सर्प फण ऊँचा किए हुए मार्ग में प्राया, राजा ने सर्प को पार्श्वचर चूंकि बौद्ध था । उसने महाराज से निवेदन देखते ही उसे जान से मार डाला । श्रौर उसको धनुष से किया कि उठा कर मुनिराज के गले में डाल दिया। मुनिराज गले में सर्प पड जाने पर भी अपने श्रात्मध्यान से जरा भी विचलित नहीं हुए किन्तु संसार की स्थिति का यथार्थ परिज्ञान कर समभाव में स्थित हो गए । मुनिराज की सौम्यता और क्षमाशीलता देखते ही बनती थी । वे कुत्ते बड़े भयानक थे, उनकी दाढ़े बड़ी लम्बी थीं, नौर डील-डौल में भी वे सिंह के समान ऊँचे थे । किन्तु मुनिराज के समीप पहुँचते ही उनकी सारी भयानकता विम्बसार इस दृश्य उन्होंने कुत्तों को जब क्रोष की प्रदक्षिणा करते देखा, को दूर से देख ही रहे थे । रहित शान्त होकर मुनिराज तो मारे क्रोध से उनके नेत्र लाल हो गए । वे सोचने लगे कि यह साधु नहीं, किन्तु कोई धूर्त, वंचक, मन्त्रकारी है। इस दुष्ट ने मेरे बलवान कुत्तों को भी मन्त्र द्वारा कीलित कर दिया है। मैं भी इसे दण्ड देता हूँ । उनके रोष ने उन्हें विवेक रहित श्रौर अज्ञानी जो बना दिया था । इससे उस समय बिम्बसार की उस वक्र दृष्टि का सहज ही प्राभास हो जाता है । बिम्बसार शिकार का कार्यक्रम स्थगित कर राजगृह वापिस आ गया, वहां अपने गुरुनों को उक्त सब समाचार सुनाया । बिम्बसार द्वारा जैन गुरु का अपमान किये जाने से उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । एक प्रहर रात्रि बीती होगी। रानी चेलना अपनी सामायिक समाप्त कर उठ ही रही थी कि राजा बिम्बसार प्रत्यन्त प्रसन्न होते हुए उसके पास आकर बोले
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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