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________________ ७२ धनेकान्त यक्षी को लघु प्राकृतियां अकित है । मंगल कार्य में वे बहुत आदर के साथ इसे स्मरण करते पादपीठ पर से मुख्य मूर्ति एक फुट तीन इच ऊची है तथा यथाशक्ति घी, दूध, नारियल, सुपाड़ी, फूल, फल एवं एक फुट दो इंक चोली है । मूर्ति में श्रीवत्स का लघु तथा अगरबत्ती अर्पित करते हैं। नौदुर्गा के अवसर पर आकार में अंकन, कन्धों तक लटकती हुई केश राशि तथा एक बड़े मेले का आयोजन भी यहाँ होता है। इस मूर्ति पृष्ठभाग में चक्राकार भामण्डल विशेष उल्लेखनीय है। के महत्त्व के सम्बन्ध मे निकटवर्ती ग्राम कठकोना के प्रमुख मूर्ति के शिरोभाग पर क्रमशः तीन छत्र इस भव्यता और भूतपूर्व जमीदार का जबानी बयान सुनिए, जो अपने पूरे चारुता से उत्कीर्ण किये गये है कि उनमें गुथा हुमा एक गाँव की ओर से इस मूर्ति की उपासना करने पाया था। प्रत्येक मणि साकार हो उठा है। छत्रत्रय के दोनों पाश्वो उसी के शब्दो में प्रस्तुत है :मे भगवान का मानों अभिषेक करने हेतु अपने शडादण्डो "हमारा नांव अग्नू बलद काशीराम है। मोर उमर में कलश लिए हुए अत्यन्त सुसज्जित गजराजो का ६५ साल की है। हम ई गाँव के जमीदार पाहन । ई मनोरम निदर्शन दर्शको का मन सहज ही अपनी ओर मूरत की पूजन हमी करत हन । रोट, नरियल, दम कथा आकृष्ट कर लेता है। गाँव वारन की तरफ से टम-टम से होत रहत है । पासमुख्य मूर्ति के उभय पार्यो में अशोक वृक्ष के नीचे पास के गाँवन के लोग हर सम्वार को इकट्ठे होकर तीन-तीन इंच की दो-दो (प्रत्येक पोर) तीर्थकर मूर्तियाँ फल, फूल, दूध, घी चढाते है, भक्त गावत है। ई देवता और भी अंकित है । इन सबके पृष्ठ भागो मे प्रभामण्डल जीव नहीं मांगता । ए ही देव हमारे गाँव का रक्षक है।" तो है ही, कंधों पर केशराशि भी दिखाई गई है। इस बयान के समय उसकी श्रद्धा पद पद पर टपक यद्यपि इस मूर्ति पर कोई लेख नहीं है, तथापि सम. रही थी। गाँव मे पहुँचने पर अन्य लोगों से बर्ता मे उक्त सामयिक कला और मूर्तिगत विशिष्ट लक्षणों के प्राधार तथ्वों की पुष्टि पाई। इस मति से करीब १ फर्लाग दूर पर इनका निर्माण काल ईसाकी सातवीं-पाठवी शती प्रतीत एक प्राचीन मन्दिर के अवशेष भी है। होता है। इस समय महाकौशल में जैन धर्म एक शक्ति किवई नदी के तट पर ही अन्यत्र, कोतमा से करीब शाली धर्म के रूप मे समादृत था और कलचुरि वश के । दो मील एक शिलालेख उत्कीर्ण होने की सूचनाएं भी शासको ने इसे पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया था। विवेच्य प्रदेश कलचूरियों की राज्य सीमा में विद्यमान था। प्राप्त हुई है । यदि किवई नदी के तटवर्ती प्राचीन स्थानो का सर्वेक्षण और आवश्यकतानुसार उत्खनन कराया जाता दुःख का विषय है कि कुछ वर्ष पूर्व किसी पागल ने है तो प्राचीन कौशल, विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के इतिइसे खण्डित कर दिया। किन्तु मूर्ति के तीनो खण्ड सुर हास पर नया प्रकाश पडेगा। क्षित हैं तथा अच्छी स्थिति में है। ___ यद्यपि इस मूति के पास-पास के ग्रामों में अब एक १. मुझे इस स्थान का पर्यटन कराने का श्रेय श्रीविरतीभी जैन नही है तथापि उस प्रदेश की जैनेतर जनता लाल जैन कोतमा तथा उनके मित्रो को है। अतः इसे बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजती है। प्रत्येक उन्हे धन्यवाद । सन् १६७९ की जनगणना के समय धर्मके | खाना नं. १० में जैन लिखाकर सही आँकड़े इकट्ठा करने में सरकार की मदद करें।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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