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________________ जैन समाज की कुछ उपजातियाँ शाह जोजा ने बनवाया और उनके पुत्र पुण्यसिंह ने उसकी निर्माण में भी यह प्रेरक रहे हैं। इनके द्वारा लिखाये विधिवत प्रतिष्ठा की। प्रतिष्ठाकर्ता मुनि विशालकीर्ति हुए ग्रन्थ अनेक शास्त्र भडारों में उपलब्ध होते है। वर्तके शिष्य शुभकीति है जो बडे विद्वान और तपस्वी थे। मान मे भी वे समृद्ध देखे जाते हैं। इनमें १८ गोत्र प्रचइनसे कीर्ति स्तम्भ के समय पर पर्याप्त प्रकाश पडने की लित हैं। खेरज, कमलेश्वर, काकड़ेश्वर, उत्तेरश्वर, मंत्रसम्भावना है। श्वर, भीमेश्वर, भद्रेश्वर, विश्वेश्वर, सखेश्वर, अम्बेश्वर, वघेरवाल वंश में कृष्णदास नाम के कोई मिष्ठ चाचनेश्वर, सोमेश्वर, राजियानो, ललितेश्वर, काशवेश्वर, श्रावक हए है । वे चाँदखेड़ी के हाडा वंशीय राजा किशोर बूद्धेश्वर और सघेश्वर । इनके अतिरिक्त 'वजीयान' नाम सिंह के प्रामात्य थे । राज्य का सब कार्यभार वहन करते का एक गोत्र और पाया जाता है। इस गोत्र वाली वाई थे। उन्होंने चांदखेडी में एक विशाल भोयरे का निर्माण हीरो ने जो भ० सकलचन्द्र के द्वारा दीक्षित थी। उसने कराया था जो स० १७३६ मे बनकर समाप्त हुआ था। सं० १६६८ मे सागवाडे मे सकलकीति के वर्धमान पुराण उसकी उन्होंने पंच कल्याणक प्रतिष्ठा स. १७४६ मे की प्रति सकलचन्द्र को भेट की थी। कराई थी, जो महत्वपूर्ण थी। और जिसे आमेर के भट्टा- इस वंश के द्वारा निर्मित मन्दिरो में सबसे प्राचीन रक जयकीर्ति ने सम्पन्न कराई थी। मन्दिर झालरापाटन का वह शान्तिनाथ का मन्दिर है, हुबड या हमड़-यह उपजाति भी उन चौरासी जिसकी प्रतिष्ठा हुमडवशी शाह पीपा ने वि० स० ११०३ उपजातियों में से एक है। इसका यह नामकरण कब में करवाई थी। इस जाति में अनेक विद्वान भट्टारक भी और कैसे हुआ, इसका कोई इतिवृत्त नहीं मिलता। पर हुए हैं। यह जाति सम्पन्न और वैभवशालिनी रही है । इस जाति भट्टारक सकलकीति और ब्रह्म जिनदास इसी वश के का निवास स्थान गुजरात, बम्बई प्रान्त और बागड प्रात भूपण थे, जिनकी परम्परा २.३ सौ वर्षों तक चमकी। में रहा है। यह दस्सा और वीसा दो भागो मे बटी हुई इस जाति में जैनधर्म परम्परा का बराबर पालन होता है। इस जाति में भी अनेक महापुरुष और धर्मनिष्ठ व्यक्ति हुए है। अनेक राज्य मन्त्री और कोषाध्यक्ष प्रादि इनके अतिरिक्त गंगेरवाल, सहलवाल, नरसिंहपुरा, सम्माननीय पदो पर प्रतिष्ठित रहे है। इनके द्वारा आदि अनेक उप जातिया है जिनका परिचय प्राप्त नही निर्मित अनेक मन्दिर और मूर्तियां पाई जाती है। ग्रन्थ । है, इसलिए उनके सम्बन्ध मे यहाँ कुछ प्रकाश नही डाला २. देखो अनेकान्त वर्ष २२ किरण १ । जा सका। ३. देखो, कृष्ण बघेरवाला का रासा, जयपुर भण्डार नोट-विशेष परिचय के लिए देखे अनेकान्त वर्ष १३ (अप्रकाशित)। किरण ५ । अनेकान्त के ग्राहक बनें 'अनेकान्त' पुराना ख्यातिप्राप्त शोष-पत्र है। अनेक विद्वानों और समाज प्रतिष्ठित व्यक्तियों का अभिमत है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो सकता है जब उसमें घाटा न हो और इस लिए प्राहक संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। हम विद्वानों, प्रोफेसरों, विद्यार्थियों, सेठियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों, कालेजों, विश्वविद्यालयों और जैन त को प्रभावना में श्रद्धा रखने वालों से निवेदन करते हैं कि वे 'अनेकान्त' के प्राहक स्वयं बनें और दूसरों को बनावें। और इस तरह जन संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करें। व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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