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अनेकान्त
है कि लम्ब कंचुक अाम्नायी भी अच्छे सम्पन्न और राज- अपना योगदान दिया है। इस जाति के १५ गोत्र बतमान्य रहे हैं। वर्तमान में भी वे अच्छे धनी और प्रति- लाये जाते है जिनका उल्लेख डा. विद्याधर जोहरापुरकर ष्ठित है। यहाँ लम्बकंचकान्वय के एक दी मूतिलेख उद्धत ने किया है। खरोड, खंडारिया. वोखडिया, गोवाल, किये जाते हैं :
चवरिया, जुग्गिया, ठोलया, नगोत्या, पितलिया, वागदिया, १ संवत् १४१३ वर्षे वैशाख सुदी १३ बुधे श्रीमूल- भूरिया, मढया, सावला, सेठिया, हरसोरा । इनमें ढोल्या संघे प्रतिष्ठाचार्य श्री जिनचन्द्रदेव लम्बकचुक साह निगोत्या-ये दोनों गोत्र खंडेलवालों के गोत्र ठोल्या और सहदेव भार्या चम्पा पुत्र दोनदेव भार्या मूला पुत्र लखनदेव, निगोत्या से साम्य रखते है और हरसोरा गोत्र राजस्थान पद्मदेव, धर्मदेव प्रणमन्ति नित्यम् ।
के 'हरसोरा ग्राम की याद दिलाता है।' जहाँ आज भी -जैनसि० भा० भा० २ १०६ अनेक वघेरवाल जन विद्यमान है । वघेरवालो का वर्तमान २ सं० १४१२ वर्षे वैशाख सुदी १३ बधे मूलसघे निवास महाराष्ट्र और राजस्थान (जयपुर) में पाया जाता प्रतिष्ठाचार्य प्रभाचन्द्रदेव लम्बकचुक सा० न्याङ्गदेव भार्या है, वघेरवालो के २०-२५ घर धार स्टेट में है, और अन्यत्र ताण पूत्र लाल्ह भायां महादेवी वारम्बारं प्रणमति । भी होगे । प्राचार्य कल्प प० पाशाधर जी इसी जाति के
-जैनसि० भा० भा० २, पृ०५ अलकार थे। जिनके द्वारा धर्मामृत नाम का महान ग्रथ वघेरवाल-इस जाति का निकास 'वघेरा' से है। स्वोपज्ञ टीका सहित बनाया गया है । इनका समय विक्रम वघेरा राजस्थान में केकड़ी से १०-११ मील के लगभग की तेरहवीं शताब्दी है । अनगार धर्मामत की टीका वि० दूर है । यद्यपि वर्तमान मे वहां वघेरवालों का एकभी घर सं० १३०० मे पूर्ण हुई है। विद्यमान नही है। किन्तु राजस्थान मे अजमेर और
चित्तौड के दिगम्बर जैन कीर्ति स्तम्भ के निर्मापक जयपुर के पास-पास रहने वाले वघेरवाल अपनी पंतक शाह जीजा वधेरवाल वशी है। जो साह सानाय के पुत्र जन्मभूमि को देखने और वहा की शान्तिनाथ की मति के थे, और जीजा के पुत्र पूर्णसिंह या पुण्यसिह भी अपने दर्शन करने अवश्य प्राते रहने के मामले को पूर्वजो की कीर्ति का सरक्षण करते रहे है। इनके द्वारा के महीने में केकड़ी से वघेरा गया था तो वहा अनेक समा
प्रतिष्ठित मूर्तिया और मन्दिर अनेक स्थानों पर पाये जाते गत वघेरवाल सज्जनो से परिचय हुमा। उनसे पूछने पर
है'। नेनवां (राजस्थान) में वघेरवालो का अच्छा मन्दिर ज्ञात हुआ कि किसी समय यह स्थान वघेरवालो से प्रावृत
बना हुआ है। अनेकान्त वर्ष २२ किरण १ मे चित्तौड़ के
कीति स्तम्भ से सम्बन्धित जो अप्रकाशित अपूर्ण शिलालेख था, हमारे पूर्वज पहले यही रहे । वघेरवाल कुटुम्बियो के मध्य में बसा हुआ था, किसी समय उसका विनाश हुआ
छपा है उससे ऐसा आभास होता है कि उक्त कीर्ति स्तम्भ होगा । वहाँ अनेक खण्डहर पड़े है। किसी समय वह एक १. स. १५३२ वैशाख सुदी ७ श्री मूलसंघे भट्टारक बड़े नगर के रूप में प्रसिद्ध होगा, इस समय वह एक जिनचन्द्रदेवा वधेरवालान्वये साह टीकम पुत्र कोनो छोटा-सा गाँव जान पडता है। १२वी १३वी शताब्दी
भार्या धर्मणी तस्य पुत्र वछमाडल नित्य प्रणमति । की प्रतिष्ठित अनेक मूर्तिया विराजमान है, जिनमे शान्ति
(पादौदी मन्दिर जयपुर) नाथ की मूर्ति बडी मनोग्य है। यहाँ दो मन्दिर है, एक
सं० १५७१ जेठ सुदी २ मूलसघे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये कुछ पुराना और दूसरा नवीन । स्थान अवश्य प्राचीन
प्रभाचन्द्राम्नाये बघेलवाल वशे रतन... । जान पड़ता है। एक स्थान पर दो बड़े शिलालेख भी
स० १७४६ सावन सुदी ६ मूलसघे भ० जगत्कीर्ति देखने में आये पर वे साधन सामग्री के प्रभाव मे पढ़े नहीं
तदाम्नाये वघेरवालान्वये मघा गोत्रे सा० श्री नेपूसी जा सके।
भार्या नौलादे तयोः पुत्रः सं० श्री किशनदास प्रतिष्ठा इस उपजाति में भी अनेक महापुरुष होते रहे है कारापिता डूगरसी छील नित्य प्रणमति । जिन्हें समय-समय पर जैन धर्म के उत्थान एवं प्रसार में
(अनेकात वर्ष १८ किरण ६ पृ० २६२, २६४),