SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कीर्तिस्तम्भ चित्तौड़ के अप्रकाशित शिलालेख श्री रामवल्लभ सोमानी जयपुर "महाराणा कुम्भा" और "वीर भूमि चित्तौड" पुस्तके जाति का वणित किया है। [बघेरवाल जातीय सा० नाय लिखते समय मुझे कई दिनों तक चित्तौड़ रहना पड़ा था सुतः जीजा केन स्तम्भः कारापितः] । और यहाँ के शिलालेखों के बारे में भी विस्तृत अध्ययन पुण्यसिंह सम्बन्धी लेख सम्भवत: किसी मन्दिर मे लग करने का अवसर मिला था। उदयपूर महाराणा साहब के रहा था। इसका प्रस्तुत खड गुसाईजी के चबूतरे पर स्थित संग्रह में. कई शिलालेखों की प्रतिलिपियाँ देखने को मिली। समाधि पर लग रहा है जिसे किसी ने बुरी तरह से घिस इनमें से ३ लेख जैन कीर्तिस्तम्भ से सम्बन्धित है और दिया है जिसे अब अच्छी तरह से पढ़ नही सकते है। इस एक किसी विस्तृत प्रशस्ति का खंड था। ये लेख मेवाड़ लेख को ढढने के लिए गत वर्ष मई मे चित्तौड गया या । के विस्तृत इतिहास “वीर विनोद" लिखते समय संग्रहीत तब वहाँ अनायास ही जैन कीति स्तम्भ के पास महावीर व राये गये थे। इनमें से कुछ उदयपुर सग्रहालय मे रखे प्रसाद प्रशस्ति वि०स० १४६५ का खंड मिल गया है जिसे है और अब तक अप्रकाशित है। लेख बहुत अधिक मैने "वरदा" पत्रिका में प्रकाशित करा दिया है। सडित हैं। श्रेष्ठि पुण्यसिह वाला यह लेख कई दृष्टियो से वि० सं० १५४१ के मूर्ति लेख में जैन कीर्तिस्तम्भ महत्त्वपूर्ण है । इसमे जैन साधु विशालकीर्ति और शुभस्थापित करने वाले साह जीजा और उसके पुत्र पुण्यसिह कीर्ति का उल्लेख है जो निस्सदेह दिगम्बर सम्प्रदाय के का नामोल्लेख है। प्रस्तुत लेखो में एक जीजा का और है। प्रस्तुत लेख में इनका बडा सुन्दर वर्णन है। इन्हे दूसरा श्रेष्ठि पुण्यसिंह का है। बड़ा विद्वान वणित किया गया है। श्लोक स० ४० से मैंने कुछ वर्षों पूर्व "चित्तौड़ और दिगम्बर जैन सम्प्र. ४२ तक विशालकीर्ति का वर्णन है। ये सभवतः दर्शनदाय" नामक विस्तृत लेख शोध पत्रिका (उदयपुर) मे शास्त्र के विद्वान थे । श्लोक सं० ४३ एव ४४ में शुभप्रकाशित कराया था। इसके बाद गगराल और सेणवाँ कीर्ति का उल्लेख है। जिला (चित्तौड़) से प्राप्त १३७५-७६ और १३८६ के प्रारम्भ मे श्लोक सं० २२ से २५ तक जीजा श्रेष्ठि दिगम्बर जैन लेख भी 'वीरवाणी' जयपुर में प्रकाशित का वर्णन है। इसके द्वारा सुन्दर मन्दिर निर्माण का कराये थे। इन लेखों के मिल जाने से चित्तोड़ मे दिगम्बर उल्लेख है। दुर्ग के अतिरिक्त चित्तौड की तलहटी, खोहर सम्प्रदाय की स्थिति का विस्तृत परिचय मिलता है। सांचोर आदि में भी जैन मदिर बनवाये । इसका पुत्र श्रेष्ठि जीजा शाह सम्बन्धी ३ लेख मिले है। इनमें पुण्यसिंह था जो महाराणा हमीर का समकालीन था। से २ लेख इसके साथ दिये जा रहे है। तीसरा लेख बहुत इसका प्रस्तुत प्रशस्ति में बड़ा सुन्दर वर्णन है। ही अधिक खंडितावस्था मे है। पहले में प्रथम श्लोक में इन प्रशस्तियों के मिल जाने से यह विवादास्पद प्रश्न फैलाश शैल शिखर स्थित आदिनाथ देव की स्तुति की गई समाप्त हो जाता है कि जैन कित्तिस्तम्भ दिगम्बर सम्प्रदाय है । दूसरे श्लोक में अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। इसके का ही था। इसे श्रेष्ठि जीजा ने बनाया था। इसके पुत्र बाद पावापुरी सम्मेद शिखर आदि निर्वाण स्थलों का पुण्यसिंह ने भी कई निर्माण कार्य कराये । संभवतः कीत्तिउल्लेख है। कुल १२ श्लोक हैं । पाठ अधिकतर खंडित हैं। स्तम्भ की प्रतिष्ठा विशालकीत्ति से कराई गई थी, अन्त में "संघ जीजान्वितं सदा" उल्लेखित है । दूसरे लेख में क्योंकि लेख की अंतिम पंक्ति में 'मानसस्तम्भ" की जि.सका मागे का कुछ भाग खंडित हो गया है। संघपति - प्रतिष्ठा का जो वर्णन माता है वह संभवत: इससे ही जीजा का सुन्दर वर्णन है। इसमे उसके द्वारा स्तम्भ सम्बधित रहा हो । इसका निर्माणकाल भी १३वीं शताब्दी निर्माण करने का भी उल्लेख किया है। इसे बधेरवाल सिद्ध होता है ।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy