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________________ भगवान महावीर और छोटा नागपुर २७७ के प्रसंख्य मठों और मन्दिरों को मिट्टी में मिला दिया। प्रकार श्रमण संस्कृति भारत से विनाश होने से बच गई। उसी समय जब इस संसार की सूचना उत्कल सम्राट भारत के इतिहास में खारवेल अमर हो गया। वापसी खारवेल को मिली तो वह अत्यन्त दुःखी और क्रोधित काल मे उसने भग्न जैन चैत्यो और मन्दिरों का पुननिर्माण हना। उसने घोषणा की कि 'यद्यपि वह अहिंसा सिद्धान्त कराया। श्रावकों की वस्तियो को फिर से बसाने और का पोषक है फिर भी सत्य की रक्षा के लिए उसे युद्ध समृद्ध करने में अपार धन लगा दिया। मानमि और करना ही होगा।' 'हाथी-गुम्फा' के पत्थर पर उत्कीण सिंहभूमि श्री सम्पन्न हो गई। इतिहास में स्पष्ट हो जाता है कि खारवेल ने मगध पर ई० स० ७०० के निकट श्रावको द्वारा छोटा नागपर चढाई कर दी। वह मानभूमि के उसी श्रमण प्रदेश से के इलाको से व्यापार देश विदेशो मे बहत चलता था। होता हा मगध की ओर बढ़ा, जिस जैन भूमि का उत्कल (उड़ीसा) और बंगाल के समुद्र तटों से विदेश पूष्यमित्र ने संहार किया था। ज्यो-ज्यों वह पुष्यमित्र के व्यापार होता था। धीरे धीरे श्रावको नेताम्बे की खानों अत्याचार को देखता हैया मगध की ओर बढ़ा, उसका का इस प्रदेश में पता लगाया और सम्भवतः भारत में ये क्रोध बढ़ता ही गया। पहले लोग थे जिन्होंने अपने हाथो से ताम्बे का उत्पादन सम्राट खारवेल की वीरता भारत क्या, विदेशो में किया और अत्यन्त उच्चकोटि तक अपनी कार्यक्षमता को भी प्रख्यात थी। गया के गोरठ-गिरी के पास ज्यों ही ले गए। उसकी सेना पहुँची सारे मगध राज्य में खलबली मच गई बगाल गजेटियर (Voj. xx) सिंहभूमि (१९०६) और मारे डर के पूष्यमित्र मगध छोड़ कर मथुरा की में अग्रज प्रा. मेल ने लिखा है जिससे स्पष्ट है कि सराक पोर भाग खड़ा हया। उस समय मथुरा का शासक ग्रीस नाम के पिछड़े वर्गों द्वारा (Copper) ताम्बा निकालने देश का डेमेट्रिपोस था। महान् सिकन्दर द्वारा मनोनीत मनोनीत का ढग देखकर अत्यन्त पाश्चर्य उसे हुआ था बिना काममा खारवेल, पुष्य- मशीन के वे अपने हाथो से ही उवचकोटि का ताम्बा मित्र को खदेड़ता हुया मथुरा पा पहुँचेगा, सिकन्दर का उत्पादित करते थे। गवर्नर डेमेट्रिनोस भी मथुरा छोड कर भागा। प्रो. मले के ५० वर्ष पूर्व डा० स्टोहर ने जो कि सम्राट खारवेल के शासन का यह १२वा साल था। स्वयं उच्चकोटि के इन्जीनियर थे लिखा है-ये लोग वह इस युद्ध मे उत्कल से इतने मारे हाथी लाया था कि जमीन की बहुत तह में जाकर काम नही करते; परन्त अपनी सारी सेना को उसने हाथी पर ही गंगा पार ताम्बा उत्पादन की क्षमता सराको की उत्तम है क्योंकि कराया था। 'हाथी-गम्फा' के लेख में यह भी बताया वे बिना किसी कल-पुर्ज के ही अपना कार्य सिद्धहस्त गया है कि मगध के सेनापति वहसतिमित्र को उसके होकर करते है। इनसे पूछने से मालूम होता कि सैकड़ों चरणो मे सर नवा कर क्षमा मांगनी पड़ी। उसने सम्राट् वर्षों से इनके घर यह धन्धा चला आ रहा था। खारवेल के चरणों पर अपार सुवर्ण एव जवाहरातो को सन् १८६८ में डा० बिल ने लिखा है- 'सराक नाम रखकर उसे प्रसन्न किया। उसी समय जैन सम्राट् खार- की एक जाति जो कि एक जमाने में इस प्रदेश के प्रधिवेल ने वर्षों पूर्व मगध के राजा नन्द के द्वारा अपहरण की पति थे, ताम्बा निकालने में अपूर्व क्षमता रखते होगे। हुई उत्कल राजघराने की भगवान प्रादिनाथ की श्री उन्होने इस प्रदेश के उन सभी स्थलों की खोज प्रत्यन्त सम्पन्न मूर्ति मगध राज्य से वापस ली। मगध से उत्कल बारीकी से की होगी जहाँ भी ताम्बा की खाने हैं क्योंकि तक मति के साथ की गई उसकी शोभा यात्रा कैसी अद्भुत ऐसे सारे स्थलो पर ताम्बा निकाले जाने के माघार हुई होगी उसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है। मिलते है । प्राज भी उन्ही सराक जाति के प्रशिक्षित वर्ग सम्राट खारवेल ने मगध की गद्दी पर लोभ नही द्वारा कही-कही ताम्बा निकाला जाता है।' किया। दुश्मन को उसने क्षमा अवश्य कर दिया। इस मेजर टिकेल ने १८४० ई० मे लिखा है-सरावक
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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