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________________ २७६ बर्ष २२ कि. सम्राट खारवेल के काल में मानभूमि और सिहभूमि भी कर रहा है। मैंने इस विषय में बंगाल के मण्य मंत्री श्री उत्कल नरेश के सहयोग से समृद्धि के शिखर पर पहुँच प्रजय मुखर्जी से पत्र व्यवहार के द्वारा 'वर्धमान का नाम चके गांव-गांव में जैन चैत्यों, मन्दिरों और स्तूपो की पुनः स्थापित करने की स्वीकृति ले ली है। अब भारत शोभा अनोखी थी। श्रावकों की हजारों बस्तियां थी। सरकार से पत्र व्यवहार चल रहा है। माज भी इन सभी स्थानों के भग्न अवशेष मानभूमि इस प्रकार निश्चय पूर्वक ऐतिहासिक बल पर कहा पौर सिंहममि में विखरे पड़े है। सड़कों के किनारों पर जा सकता है कि भारत जैन मतियां जहां तहां पड़ी मिलती है। पिछले १०० मे श्रमण सस्कृति का केन्द्र रहा है। यही कारण है कि वर्षों की लिखित सूचनाओं के माधार पर निश्चयपूर्वक भारत के भारत के प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में इस प्रदेश को अपवित्र कहा जा सकता है कि इनमें से हजारों बहुमूल्य ऐतिहा- एवं दूषित स्थान घोषित किया है। कही पर तो जैनियों सिक मूर्तियां प्रब लापता हो चुकी हैं। प्राचीन श्रावक को 'दानव' तक कह डाला है। वैसे तो दानव कहने की परिवारों के सुसंस्कृत एवं सभ्य नागरिक लुप्त हो चुके है, प्रथा ही ऐसी थी कि विरोधियो को दानव कह देना सहज जो कछ प्राज भी बचे है वे पिछड़े वर्ग के कहे जाते हैं था। प्राचीन कथानो मे मनुष्यों को दानव बना डालने एवं उन्हें हम श्रावक नहीं 'सराक' कहते है। यानी वह के उदाहरण भरे पड़े है। हम श्रावकों से भिन्न 'सराक' जाति के लोग माने मानभूमि और सिहभूमि की जैन संस्कृति भी उसी जाते है। धार्मिक वैमनस्य की शिकार हुई। अन्य धर्मावलम्बियों यह सारे दुर्भाग्य की कहानी जो कि अाज है, ई० के उत्पीडन के द्वारा बौद्धधर्म तो बिल्कुल ही इस प्रदेश सं० १३०. के लगभग तक वह ही हमारे गौरव का इति- ही क्या भारत से ही उखड़ गया। जैनधर्म उखड़ा तो हास था। इसे हम भूल चुके हैं। नहीं, विखर अवश्य गया। ईसा के ६०० वर्ष पूर्व महावीर के पावन चरण से भारत के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त से लेकर सम्राट पवित्र ये भूमियाँ और श्रावकों से भरपूर इनके नगर और सम्प्रति तक जैनधर्म को राज्याश्रय अखण्ड रूप से मिला। गाँव भाखिर केसे विखर गये? परन्तु इन्ही मौर्य सम्राटों की शृखला में अन्तिम मौर्य ___ सम्राट अशोक और उनके पौत्र सम्राट् सम्प्रति के राजा वृहद्रथ को उनके सेनापति पुप्यमित्र ने मार डाला काल तक इन स्थलों को हजारों जैन नगरियों और गाँव, और स्वयं मगध का शासक बन बैठा। मौर्य सम्राटों द्वारा जैन यति, मुनियों और श्रावक श्राविकानों द्वारा ससार दण्ड-समता और व्यवहार समता के ऐसे कड़े नियम बनाये के सारे वैभवों से भरपूर थे। जैनधर्म की पताका मगघ गए थे जिसके द्वारा ब्राह्मणों के लिए विशेष सरक्षण के से उत्कल प्रदेश एवं बंग देश तक फहराती थी। एक कानून दूर हो चुके थे। अन्दर ही अन्दर उनमे आग कथनानुसार महावीर स्वामी ने अपने तीर्थकाल का प्रथम सुलग रही थी परन्तु बलशाली सम्राटों के आगे उनकी चौमासा वर्षमान नगरी में बिताया था। यह प्राचीन कुछ चलती न थी। अवसर खोजने की क्रियाएं तो चल वर्षमान नगरी ही बंगाल का माधुनिक 'वर्दवान' है। रही थी, जिसे पुष्यमित्र ने पूरा कर दिया। तदुपरान्त इसके पूर्व प्राचीनतम काल में इस स्थान को प्रस्थिग्राम मौर्यो के सर्वधर्म समन्वय और सरक्षण के सिद्धान्तो की के नाम से जाना जाता था। वर्षमान महावीर के प्रथम बलि दी गई और पुष्यमित्र ने मगध से ही क्या, मानचौमासे का स्थल होने के कारण ही यह वर्धमान नगरी भूमि और सिंहभूमि से भी श्रमणों को मिटा देने में राज्य के नाम से मशहूर हो गया। की सारी शक्ति लगा दी। ब्राह्मण अपनी विजय पर विषयान्तर तो हो रहा है, परन्तु इसी सदर्भ में यह दीवाने हो गये थे और पुष्यमित्र ने अत्याचार एवं दानसूचना भी कर दू.कि पिछले ३-४ मास से इस 'बर्दवान' वीय बृत्तियों द्वारा भीषण सहार किया। कहा जाता है का नाम फिर से 'वर्षमान' स्थापित करने का मैं प्रयास कि उसने पजाब के जलन्धर तक के जैनियो और बौद्धों
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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