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अनेकान्त
गया है यद्यपि उक्त कवित्त में उनकी स्पष्टता उतनी प्रन्यकर्ता का जीवन-दर्शनअधिक नहीं है।
पण्डित शिरोमणिदास मूलतः प्रागरा के रहने वाले ४. कर्मविपाक कथन-इस अध्याय मे निगोद तथा थे। मध्यावधि उनके दो ग्रन्थ मिलते हैं-धर्मसार पौर नरक तिर्यच, मनुष्य और देव गति के दुःखों और उन
सिद्धान्त-सिरोमणि । दोनों ग्रन्थों के देखने से पता चलता दुःखो के कारणो का विस्तृत वर्णन है। किस कषाय और
है कि उनमें भक्ति काल की मूल प्रवृत्तियाँ समाविष्ट हैं।
न किस दुष्कर्म से जीव जिस गति में भ्रमण करता है इसका
धर्मसार मे जहाँ निर्गुण और सगुण भक्ति का दिग्दर्शन स्पष्ट कथन है।
हैं वहाँ सिद्धान्त-शिरोमणि मे उसका दूसरा पक्ष सन्दर्शित ५. योगीश्वर महिमा वर्णन-इसमे व्रत, तप, अनु- है। दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों के बीच मध्य प्रेक्षा, तत्त्व प्रादि का वर्णन है।
काल में बढ़ते सिथिलाचार की वहाँ घोर निन्दा की है। ६. केवलज्ञान महिमा-इसमे भगवान के अतिशयों
श्वेताम्बर मुनि और दिगम्बर भट्टारक उनकी इस निन्दा
वेता गुणों और ऋद्धियों का वर्णन है तदनन्तर ज्ञान प्राप्ति की
के मुख्य मात्र है। प्रक्रिया व उसकी महिमा दिखाई गई है।
गुरुपरम्परा-पण्डित जी भट्टारक सकलकीर्ति को ७. पंच कल्याणक वर्णन-प्रस्तुत अध्याय में समव
अपना अप्रत्यक्ष गुरु मानते थे। ग्रन्थ के प्रादि भाग मे शरण का चित्रण और पच कल्याणको का वर्णन किया
जिन प्राचार्यों का उन्होंने नामोउल्लेख किया है उनमे गया है।
भट्रारक सकलकीति भी है। उनके विषय मे लिखा हैभाषा शैली
सेऊँ सकलकीरति के पाय । सकल पुरान कहै समुझाय ॥ पण्डित जी की भाषा मे सरस प्रवाह है । उनके शब्द ग्रन्थ के अन्त भाग मे पण्डित जी ने अपनी गुरु परम्परा और भाषा में पर्याप्त सामञ्जस्य है। यद्यपि ग्रन्थ वर्णना- इस प्रकार दी है :त्मक शैली से लिखा गया है फिर भी रुचिकर बनपडा है।
यश:कीति लौकिक शब्दों का यहाँ प्रयोग अधिक है। ग्रन्थ में केवल दोहा, चौपई, सोरठा, अडिल्ल और कवित्त छन्दो का
ललितकीति प्रयोग है। इनमें कवित्त और सवैया अधिक प्रभावक है।
धर्मकीति उदाहरणतः कवित्त की सुन्दरता देखियेजो अपजस की डंक वजावत लावत कुल कलंक परषान।
पद्मकीर्ति जो चारित को वेइ जुलांजुल गुन वन को दावानल दान । सो शिव पंथ किवारि वतावत मावत विपति मिलन को थान
सकल कीति चितामन समान जग जे नर सील रतन जो करत भजान।
ललितकीति इसी प्रकार सवैया की सरसता का पान कीजिएकलह गयंद उपजाईवे को विदागिरि,
ब्रह्म सुमति कोप गीष के प्रघाइवे को सुमसान है।
पण्डित गगादास सकट भुजग के निवास करिबे को विल, वैर भाव चोर को मह निसा समान है।
पण्डित शिरोमणिदास कोमल सुगुन धन खंडिवे को महा पौन,
इस प्राचार्य परम्परा के देखने से यह निष्कर्ष निकाला 'नवन वाहिवे का दावानल वान है। जा सकता है कि पण्डित शिरोमणिदास बलात्कार गण की नीत नय नीर जन साइवे की हिम रासि, उत्तरीय जेहरट शाखा से सम्बन्धित रहे है। डॉ. विद्याऐसौ परिग्रह राग दोष को निदान है ॥२-६२॥ घर जोहरापुरकर के भट्टारक सम्प्रदाय में सकलकीर्तिके