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________________ पं० शिरोमणिदास विरचित धर्मसार सिहरोन नगर उत्तिमसुभनाम । सांतिनाथ जिन सोहै षाम ॥ पंग ग्रंष निधन पनवन्त । जड़ पंडित पद पावै संत। प्रतिमा अनेक जिनवर की अस । दरसन देखत पाप विनास पुत्र हीन बह रोग अपार । पर बह दुख भुगतं संसार । श्रावग बस धर्म के लीन । अपने मारग चले प्रवीन ॥ २. सम्यक्त्व महिमा:-धर्म का मूल सम्यक्त्व मानकुटंबसहित मिलि हेत जु कियौ। तहाँ प्रन्थ यऊ पूरन कियो। कर पण्डित जी ने उक्त सभी प्रश्नों के उत्तर सम्यक्त्व क्षत्रपती सोहै सुलतान। औरंगपातसाहि जु बखान ॥ भूमिका पूर्वक प्रस्तुत किये है। सर्वप्रथम उन्होंने बताया देवीसिंघ राजा तह चन्द । वरिन को दोनो बहु दण्ड । कि सम्यक्त्व की उत्पत्ति कैसे होती है और उसके बिना प्रजा पुत्र सम पाल धीर । राजन मैं सोहै वरवीर ॥ वार" जीव क्यों भटकता है। इस प्रसग में मूढना, मद, शका और तिनकं राज यह ग्रन्थबनायौ । कहैं सिरोमनि बहु सुख पायो। दिक दोषों का तथा उनके अतिचारो और पच मिथ्यात्वो संवत् सत्रासबत्तीस । वैसाख मास उज्ज्वल पुन दीस ।। का वर्णन है। इसके बाद सम्यक्त्व की महिमा का कथन त्रितिया तिथि है समझऊ समेत । भवनजनको मंगलसुखहेत। किया गया है। मूढता वर्णन करते समय तत्कालीन कुछ प्रन्थ सातसै वेसठ जान । दोहा चौपही कही बखान ॥ ऐसी मूढतापो का भी वर्णन कियाहै जो वैदिक धर्मावइति धर्मसार ग्रन्थे श्री सकल कीर्ति उपदेसेन पडित लम्बियों के प्रभाव से जनो मे मा गई थी। उदाहरणतः सिरोमनिदास विरच्यते सप्तम सधि। इसके बाद प्रति- हाथी, घोडा, बैल, गाय आदि की पूजा करना, बड, पीपर, लिपिकार ने समय लिखा है प्रतिलिपि समाप्त होने का। ऊमर, तुलसी, दूब प्रादि वृक्षो की सेवा करना, अन्तर, -चैत्रसमासे शुक्लपक्षे तिथि ३ बुधे सवत १८२१ भी भूत, सती, सीतला, सूर्य, चन्द्र, यक्ष, नाग आदि को देवी...। श्री के बाद कुछ भी नहीं लिखा । अतएव प्रतिलिपि. देवता मानना, गोबर थापकर उनकी पूजा वरना, गाय कार का नाम अज्ञात ही है । का मूत्र पीना, भुजरिया बनना आदि। विषय विवेचन ३. पन क्रिया वर्णन ।-श्रावक का मूल धर्म त्रेपन समूचे ग्रन्थ मे ७६३ दोहे और चौपाइयाँ है। ग्रन्थ क्रियानों का परिपालन करना है। इनका वर्णन इस कार ने उन्हे सात सन्धियो में विभक्त किया है-१. अध्याय में दिया गया है। श्रेणिक प्रश्न, २. सम्यक्त्व महिमा, ३. पनक्रिया वर्णन, ४. कर्म विपाक कथन, ५. योगीश्वर महिमा फल. ६. अष्टमूलगुनव्रत सुन वार । द्वादस तप सामायिक चार । केवलज्ञान महिमा और ७. पचकल्याणक विधि । येकादस प्रतिमा सुन हेत। वारा दिन में कहीं सुचेत ।। १.श्रेणिक प्रश्न :-जैन साहित्य सजन श्रेणिक प्रश्नो जलगालन इक पन्थऊ लीन । तीन तत्त्व वह कही प्रवीन । के माध्यम से अधिक हमा है। श्रेणिक (विम्बसार) यत्रपन ये त्रेपन किरिया परवान । बरनन करो सुनो दे कान ॥ भारतीय इतिहास का एक उज्ज्वल व्यक्तित्व है जिसने जैसी विधि ग्रन्थन मैं जानी । तंसी में पुनि कही वखानी। जैनधर्म और साहित्य की अनुपम सेवा की है। पडित जेनर विषई धर्म न जाने । धर्म सार विषि ते नहि माने शिरोमणि ने श्रेणिक से प्रश्न कराये और उनका उत्तर जेनर धर्म सील मन लावधर्मसार सुनके सुख पावं । भगवान् महावीर से दिलाये । प्रश्न है-धर्म के भेद क्या यहां पण्डित जी ने ८ मूल गुण, १२ व्रत, १२ तप, है ? स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती है ? जीव ४ सामायिक, ११ प्रतिमा, जलगालन, रात्रि भोजन त्याग, चतुर्गति में परिभ्रमण क्यों करता है और वह परिभ्रमण ४ दान इन ५३ क्रियानों का वर्णन किया है। कवित्त में कैसे दूर किया जाता सकता है ? उनका यथास्थान उल्लेख नहीं हो पाया। इसमें १६४ अनिक पूछ मनवचकाय । धर्म भेद कहिए समुझाय। दोहे, सोरठे और चौपाइयां हैं। इनमें कुछ शब्द ऐसे हैं जो श्रावक मोक्ष फल कंसो होय । सोउ कहिये हम पर सोय॥ आज भी उसी रूप में प्रचलित हैं। जैसे-अन्थऊ, कुम्हडा, श्रावक जतिवर भेद है जैसे । सो समुझावं मुनिवर तसे। भटा, कलीदे, ननू, मूत, तुरकीवात, थाती इत्यादि । उक्त कसे जिय बटुंगति में पर। कैसे जिय भवसागर तरं॥ पन क्रियानों का विस्तार से सुन्दर शैली में वर्णन किया
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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