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________________ १९० वर्ष २२ कि. ३-४ अनेकान्त सम्बन्धित जैन विद्यानों के अध्ययन-अनुसन्धान में सम्मिलित होने वाले विद्वानों से पहले सम्पर्क स्थापित सक्रिय रूप से रत और रुचि रखने वाले विद्वानों, करेगी ताकि प्राकृत एव जैनिज्म विभाग मे जाने वाले शोधाथियो और सस्थाओं में पारस्परिक सम्पर्क सह- निबन्धों के स्तर में सुधार एवं संख्या में वृद्धि हो सके। योग एव शोध प्रवृत्तियों को गति देना । सम्पर्क-सूत्र : (ख) जनविद्या से सम्बन्धित विभिन्न शोध-परियोजनाओं जनालाजीकल रिसर्च सोसायटी' (J. R. S.) के को सम्पन्न करने-कराने का प्रयत्न करना। कार्य-संचालन के लिए एक सहयोगी-समिति का भी गठन (ग) जैन विद्या से सम्बन्धित शोध-निबन्धी एवं स्वतन्त्र किया है, जो डा० गोकलचन्द्र जैन, वाराणसी एव प्रो. कृतियो के प्रकाशन आदि की समुचित व्यवस्था लक्ष्मीचन्द्र जैन सीहोर को सहयोग प्रदान करेगी। सोसाकरना। के सम्बन्ध में सभी प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करने हेतु सदस्यता: इस पते पर पत्र-व्यवहार किया जा सकता है। मानविकी तथा विज्ञान से सम्बन्धित जैन विद्यानों डॉ. गोकुलचन्द्र जैन, के अध्ययन अनुसन्धान मे सक्रिय रूप से रत या रुचि जनरल सेक्रेटरी जे. आर. एस. रखने वाले विद्वान, शोधार्थी, सस्थाएं एव अन्य व्यक्ति कृष्णा निवास, गुरुबाग, इस सोसायटी के सदस्य हो सकेगे । वागणमी-१ (भारत) रिसर्च जनरल : प्राच्य विद्या सम्मेलन का अग्रिम अधिवेशन : ___ 'जैनालाजिकल रिमर्च सोसायटी' विद्वानों के बीच अ०भा० प्राच्य विद्या मम्मेलन का अग्रिम अधिसम्पर्क-राहयोग स्थापित रखने के साथ-साथ हिन्दी-अंग्रेजी वेशन १६७१ अक्तबर में विक्रमविश्वविद्यालय के तत्वावमे एक शोध-पत्रिका भी प्रकाशित करेगी, जिसके प्रार- धान में उज्जैन में सम्पन्न होगा। इस अधिवेशन में प्राकृत म्भिक विशेषाक में इस प्रकार की सामग्री सकलित होगी : एव जैनिज्म विभाग के अध्यक्ष डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, (१) देश-विदेश में जैन विद्या सम्बन्धी अध्ययन अनुसन्धान प्रारा चने गये है। ऐसी प्राशा है, इस अधिवेशन में जन___ के कार्यों का विवरण । विद्या के प्रध्ययन-अनुशीलन में रत अनेक विद्वान सम्मि(२) जैन विद्या के अध्ययन-अनुसन्धान के लिए देश- लित होगे। शोध-निबन्धो की संख्या भी गत अधिवेशनो विदेश में उपलब्ध सुविधा-माधनो का विवरण। से काफी बढेगी। उनका स्तर भी सुधरंगा । (३) जैन विद्या के अनुसन्धान एवं प्रकाशन मे सलग्न प्रशिक्षण की आवश्यकता : __ संस्थानो का परिचय । विगत ५-६ वर्षों से अ० भा० प्राच्य विद्या सम्मेलन (४) पी० एच० डी० एवं डी. लिट् उपाधि के निमित्त के अधिवेशनो में सम्मिलित होते रहने से एक बात यह स्वीकृत शोध-प्रबन्धों के सक्षिप्त-सार । स्पष्ट हुई है कि यद्यपि प्राकृत एव जैनिज्म विभाग में (५) जनविद्या की किसी भी भाषा मे प्रकाशित पुस्तको निवन्धो की संख्या में वृद्धि हुई है, किन्तु उनके स्तर में एव निबन्धों की समीक्षा । कोई वृद्धि दृष्टिगोचर नहीं हुई। अन्य विषयों के विद्वान (६) जैन विद्या के अध्ययन-अनुसन्धान के सम्बन्ध में तो समय-समय पर अन्य छोटे सम्मेलनो, सेमिनारो आदि अनेक दुर्लभ महत्वपूर्ण सूचनाएँ । मे सम्मिलित होते रहते है। निबन्ध पढ़ते रहते है। (७) जैन विद्या के अनुसन्धान कार्य के लिए कुछ चुने अतः उनका स्तर भी मुघर जाता है । किन्तु जैनविद्या के हुए महत्वपूर्ण विषय । अध्येतायो को ऐसे कम ही अवसर प्राप्त होते है। प्राचीन 'जनालाजीकल रिसर्च सोसायटी' का अगला अधि- परम्परा के विद्वानो को तो और भी कम । अत. यह वेशन प्र. भा. प्राच्य विद्या सम्मेलन के २६वे अधिवेशन बहत प्रावश्यक है कि निवन्ध लेखन मे पालोचनात्मक के अवसर पर उज्जैन मे होगा। सोसायटी अधिवेशन मे वकाल-विभाजन की दृष्टि को ध्यान में रखा जाय
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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