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________________ जनविद्या का अध्ययन अनुशीलन : प्रगति के पथ पर 'जैनालाजिकल रिसर्च सोसायटी' ने इस प्रकार के निर्देशन के कार्य को करने की घोषणा की है । व्यवहार में श्राने पर यह एक शुभकार्य होगा । दूसरे, जनविद्या से सम्बन्धित कोई न कोई प्र० भा० स्तर पर एक सेमिनार प्रतिवर्ष आयोजित होना चाहिए। उससे भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिलता है । इधर कुछ समय पूर्व तेरापन्थी महासभा ने दर्शन एवं सस्कृति परिषद के चायोजन द्वारा एक ऐसा क्रम प्रारम्भ किया था। किन्तु वह भी अवरुद्ध सा हो गया है । उसे पुनः चालू होना चाहिए। समाज के अन्य वर्गों से भी ऐसे प्रयत्न होना चाहिए। अब ऐसा समय आ गया है कि विद्वानों के निर्माण एव सरक्षण से समाज उदासीन नही रह सकता । अतः समाज का भी उत्तरदायित्व जनविद्या के प्रचार-प्रसार के कार्यों में बढ़ गया है । समाज का दायित्वबोध : महानगरी कलकत्ता में श्रायोजित इस अधिवेशन मे सम्मिलित विद्वानो एव पठित निबन्धो का उक्त विवरण एक पोर जहाँ जनविद्या के अध्येताओं के उत्साहवर्द्धन मे सहायक होगा, वहाँ जैन समाज के जागरूक नागरिकों के दायित्वबोध का उत्प्रेरक भी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अधिवेशन मे सम्मिलित विद्वानो ने कलकत्ता जैन समाज द्वारा प्रायोजित विभिन्न स्वागत-सम्मान समारोहो में देखा । श्री जैन सभा ने अधिवेशन के पूर्ण से ही विद्वानो से सम्पर्क स्थापित किए उन्हें हर तरह की सुविधा प्रदान करने के लिए ग्रामन्त्रित किया। इसी का परिणाम था कि विश्वविद्यालय में निवास भोजनादि की व्यवस्था होते हुए भी अनेक विद्वानों ने जैन समाज के स्नेहपूर्ण घातिष्य को ही स्वीकार किया। यह एक ऐसा था जिसने जैनविद्या के अध्येताथी एवं समाज के नागरिकों को पारस्परिक सहयोग के लिए अवसर प्रदान किया। २६ अक्तूबर ६ को श्री जैन सभा ने जैन भवन के भव्य प्रागण मे समस्त जैन विद्या के अध्येताओ के स्वागतार्थ प्रायोजन किया। विद्वानों के परिचय के बाद उन्हे माल्यार्पण एवं पुस्तकें प्रादि भेट देकर समाज ने अपना श्रादर व्यक्त किया। इस अवसर पर विद्वानों १६१ की ओर से भाषण करते हुए डा० प्रा० ने० उपाध्ये ने कहा - " आपके इस स्वागत सम्मान से हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गयी है। अब हमारा लेखन, मनन और चितन न केवल अनुसन्धान से ही सम्बन्धित रहेगा अपितु हमे समाज की समस्याओं के प्रति भी सचेत एवं सक्रिय होना पड़ेगा । आपके इस स्नेह से हम आश्वस्त हुए है कि हमारा अध्ययन अनुसन्धान साधनों के अभाव मे अब रुकेगा नही ।" जैन सभा के अतिरिक्त दि० जैन महिला परिषद् स्थानकवासी समाज, जनश्वेताम्बर पंचायती मंदिर एवं जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा की ओर से भी समागत विद्वानों का स्वागत सम्मान किया गया । १ नवम्बर को प्रातः महासभा के स्वागत समारोह मे सम्मेलन के धनेक मनीषी विद्वान् भी सम्मिनित हुए सम्मान का आभार मानते हुए । इस सम्मेलन के अध्यक्ष डा० पी० एल० वैद्य ने कहा- "मुझे हर्ष है कि जैन धर्म के श्रावक अपनी समाज के विद्वानो को पुनः वह सम्मान और सहयोग प्रदान करने के लिए तत्पर हुए है, जिसके आधार पर सम्पूर्ण जैन वाडमय समृद्ध हुआ है । हम लोगो ने जैन वाडमय का अध्ययन इसलिए नही किया या कर रहे है कि इसके पीछे कोई धार्थिक लाभ है, अपितु हम यह महसूस करते है कि बिना जैन विद्या के अध्ययन के भारतीय वाङमय और मस्कृति का अध्ययन पूर्ण नहीं होता ।" इसी दिन शाम को जंगभवन मे विद्वानो एवं प्रबुद्ध नागरिकों की उपस्थिति मे एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन हुआ, जिसमे जैन विद्या के प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित अनेक वक्ताओ के भाषण हुए। इन सब प्रायोजनो के मचालन एवं व्यवस्था मे श्री मिश्रीलाल जैन, श्री कमलकुमार जैन, श्री पवशीपर शास्त्री, श्री जुग मन्दिरदास जैन, एव श्री श्रीचन्द्ररामपुरिया, भवरलाल नाहटा यादि समाज के प्रमुख व्यक्तियो का सम्पूर्ण सहयोग रहा। माना है, मागामी अधिवेशन मे भी विद्वान एवं समाज के व्यक्तियों का इसी प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहेगा, जिससे जैनविद्या का अध्ययन-अनुशीलन निरन्तर प्रगति के पथ पर बढ़ता रहेगा ।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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