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________________ जैनविद्या का अध्ययन-अनुशीलन : प्रगति के पथ पर १८६ श्री प्रकाशचन्द्र सिंघई, सागर, डा० पी० वी० वापट । १८ अ निगलेक्टेड फील्ड आफ इण्डियन साइकालाजी: अन्य विद्वान जो स्वीकृति के बाद भी प्रन्यान्य कारणो जैन योग से अधिवेशन मे उपस्थित न हो सके १६ धर्मपद और जैनधर्म : एक तुलनामूलक अध्ययन २० जैन रहस्यवाद डा० नथमल टाटिया, वैशाली, डा. मोहनलाल मेहता, वाराणसी, डा०, हीरालाल जैन, जबलपुर, डा० २१ जैनधर्म मे प्रात्मा का स्वरूप : एक विवेचन विमल प्रकाश जैन, जबलपुर, डा. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, २२ जैन तर्कशास्त्र को समन्तभद्र की देन २३ द बुद्धिष्ट एड जैन आईडिया प्राफ ए वतारमल रायपुर, डा. वीरेन्द्रकुमार जैन, गुना, प्रो० भागचन्द्र कन्सेप्शन प्राफ लिविग वीइंग भागेन्दु, सीहोर, प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन, सीहोर, प्रो० २४ श्रीमद रायचन्द्र के दार्शनिक विचार सुमतिकुमार जैन, अलीगढ, प्रो० पूर्णचन्द्र, सागर, प. संस्कृति : गोपीलाल अमर, सागर आदि। २५ पाबजवेंशन पान सम सोर्सेज आफ द पुण्याश्रवकथा अधिवेशन में पठित निबन्ध ! कोश २६ द एस्पेक्ट आफ लव एज रिभील्ड इन द अपभ्रश ___इस अधिवेशन में जैन विद्या से सम्बान्धत लगभग बर्सेज कोटेड इन द प्राकृत ग्रामर प्राफ हेमचन्द्र ४० निबन्ध 'प्राकृत एवं जैनिज्म विभाग' तथा अन्य २७ तीर्थङ्करत्व व बुद्धत्वप्राप्ति के निमित्तो का तुलनाविभागोके अन्तर्गत पढ़े गये। उनके विषय इस प्रकार है त्मक अध्ययन साहित्य : २८ जैन टेम्पल्स इन कर्नाटक १ द समराइच्चकहा एण्ड विलासवईकहा २६ कुवलयमालाकहा में वर्णित ७२ कलाएँ २ अपभ्रश साहित्य की एक अप्रकाशित महत्वपूर्ण कृति। ३० जैनधर्म मे मूर्तिपूजा का विकास पुण्णासवकहा ३ ब्रह्म जयसागर का सीताहरण ३१ कुवलयमालाकहा मे वर्णित चित्रकला : एक अध्ययन ४ कुवलयमालाकहा में वणित शास्त्र और शास्त्रकार इतिहास : ३२ उद्योतन एण्ड हरिभद्रमूरि ५ द प्रमेयकण्ठिका : एन अनपब्लिश्ड संस्कृत वर्क प्रॉन जैन लाजिक ३३ प्रानन्दपुर इन जैन केनातीकल लिटरेचर ६ द टाइटिल आफ उत्तराध्ययनमूत्र ३४ जैन साहित्य में वर्णित मगध ७ नायिकाज इन गाहासत्तसई ३५ जैन साहित्य एव सस्कृति का केन्द्र : राजस्थान ८ प्रज्ञापना और षट् खण्डागम जैनालॉजीकल रिसर्च सोसायटी: ६ साहित्य-मीमासा : प्राकृत टेक्स्ट रिस्टोरड अ. भा० प्राच्य विद्या सम्मेलन के इस कलकत्ता १० अपभ्रश का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ : सिरीपालचरिउ अधिवेशन में दिनाक ३० अक्तूबर ६६ को सायकाल भाषा-विज्ञान V"जैनालॉजीकल रिसर्च सोसायटी' का श्रीमान् प० दल११ द अपभ्रश पेसेज फाम अभिनवगुप्ताज तन्त्रसार एण्ड मुख मालवणिया के सारगर्भित अभिभाषण द्वारा उद्घाटन प्राविश्किावृत्ति सम्पन्न हुा । डा० प्रा० ने० उपाध्ये, डा० गोकुलचन्द्र १२ प्राकृत फेमिनाइन फार्मस एन्डिग इन या जैन एव प्रो० एम० वाई० बंद्या ने अपने भाषणो द्वारा १३ प्रोनोमेटो पोइटिक वर्डस् इन प्राकृत इस सोसायटी के उद्देश्य एव कार्यों पर प्रकाश डाला। १४ प्राकृतिज्म इन वेदाज जनविद्या के अध्ययन अनुशीलन को एक मुनिश्चित गति १५ मृच्छकटिक और चारूदत्त में प्राकृत का प्रयोग प्रदान करने के लिए स्थापित इस "जैनानाजीकल रिसर्च धर्म-दर्शन: १६ द रोल ग्राफ मारेलिटी प्लेज एण्ड स्टोरीज फार द सामायटी" का सक्षिप्त परिचय इस प्रकार है प्रोपेगेशन आफ रिलीजन उद्देश्य१७ द कन्सेप्ट आफ 'जीव' इन जैनिज्म (क) भारत तथा विदेशो में मानविकी तथा विज्ञान से
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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