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________________ १५८ वर्ष २२ कि. ३-४ अनेकान्त ज्ञानपीठ-पत्रिका विद्या के अध्ययन-अनुसन्धान में जैनेतर विद्वान उत्साहजैनविद्या के अध्ययन-अनुशीलन की प्रगति में अने- पूर्वक कार्य करने लगे तो जैन विद्वानों का ध्यान भी इस कान्त, श्रमण आदि जैन पत्र-पत्रिकाओं का सहयोग भी ओर गया। वे भी अनुसन्धान कार्य में रुचि लेने लगे। काफी रखा है। इधर ज्ञानपीठ-पत्रिका के दो विशेषांकों विगत चार-पाच वर्षों से 'प्राकृत एव जैनिज्म' विभाग में ने इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है । ज्ञानपीठ-पत्रिका सम्मिलित होने वाले विद्वानों की संख्या बढ़ गयी। सम्मेका प्रथम विशेषांक प्र० भा० प्राच्य विद्या सम्मेलन लन के अलीगढ अधिवेशन मे इस विभाग मे लगभग २० वाराणसी अधिवेशन के अवसर पर गत वर्ष 'जैन-साहित्य विद्वान सम्मिलित हुए। बनारस अधिवेशन मे ३० निबन्ध संगोष्ठी स्मारिका' के रूप में प्रस्तुत किया गया था। पढे गए । और इस वर्ष यादवपुर विश्व विद्यालल कलइसमे जन विद्याभों के अध्ययन-अनुसन्धान आदि से सम्ब- कत्ता में प्रायोजित प्रधिवेशन मे इस विभाग के निमित्त धित महत्वपूर्ण एव दुर्लभ सामग्री दी गई है। द्वितीय लगभग पचास विद्वान उपस्थित हुए। जनविद्या के अध्यविशेषाक उक्त सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के अव- यन-अनुसन्धान के क्षेत्र में इस प्रकार का उत्साह निश्चित सर पर इस वर्ष प्रकाशित किया गया है। इसमे भारतीय ही हर्ष का विषय है। विद्या की उपेक्षित शाखाओं--विशेषकर जैन वाङमय सम्मिलित विद्वान : और संस्कृति से सम्बन्धित शोध-कार्य की प्राधारभत अ०भा० प्राच्य विद्या सम्मेलन कलकत्ता मे प्रायोसामग्री प्रस्तुत की गई है। जैन वाङमय के अध्ययन जित अधिवेशन में सम्मिलित विद्वानों मे कतिपय इस प्रकार है :अध्यापन से लेकर प्राचीन साहित्य के प्राधुनिक प्रस्तुति डा० प्रा० ने० उपाध्ये, कोल्हापुर, डा० एच० सी० करण तक की चर्चा इसके निबन्धों मे है। भारतीय विश्व श्व भयाणी, अहमदाबाद, डा. उमाकान्त शाह, बडोदा, पं० विद्यालयों में जैनविद्या के अध्यापन की व्यवस्था के अब के. भुजबली शास्त्री, धारवाड़, ५० दलसुख मालवणिया, तक के स्वरूप को यह विशेषाक उजागर करता है। इस प्रसटाबाट रानमिनट टास्त्री प्राश टा. पी. m. प्रकार की बहुमूल्य सामग्री के संकलन एवं प्रकाशन के उपाध्ये, बम्बई, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, नालन्दा, डा. लिए भारतीय ज्ञानपीठ के संचालक, श्री लक्ष्मीचन्द जैन कृष्णचन्द्र प्राचार्य, भुवनेश्वर, श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, कलडा. गोकुलचन्द जैन के प्रयत्न सराहनीय हैं। जैन विद्या कत्ता, डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर, डा. हरीन्द्र के अध्ययन-अनुशीलन की प्रगति के लिए ज्ञानपीठ पत्रिका भूषण जैन, उज्जैन, प्रो० वी० के० खडबडी, धारवाड, का प्रति वर्ष एक विशेषाक प्रस्तुत होता रहेगा, ऐसी डा० रत्ना श्रीषन्, बैंगलोर, प्रो० एम० एस० रणदिवे, आशा है। सतारा, श्रमती रणदिवे, सतारा, डा. राजाराम जैन, प्राकृत एवं जैनिज्म विभाग : पारा, डा० नरेन्द्र भानावत, जयपुर, श्रीमती शान्ता जैन वाङमय और सस्कृति के अध्ययन-अनुसन्धान भानावत, डा० गोकुलचन्द्र जैन, बनारस, डा० देवेन्द्र कुमार को गति देने में अ. भा. प्राच्य विद्या सम्मेलन पूना ने जैन, इन्दौर, डा० के० प्रार० चन्द्रा, अहमदाबाद, डा. भी महत्वपूर्ण योगदान किया है। प्रारम्भ मे इस सम्मेलन भागचन्द्र जैन, नागपूर, श्रीमती पुप्पा जैन, नागपूर, प्रो. मे जैन विद्या का कोई विभाग नहीं था। श्री डा० प्रेमसुमन जैन, बीकानेर, प्रो. रामप्रकाश पोद्दार, वैशाली, प्रा० ने० उपाध्ये अकेले जैन विद्वान थे, जो इस सम्मेलन डा० परममित्र शास्त्री, राची, प्रो० बी० मोहरिल, नागके अधिवेशनो में सम्मिलित होते थे। उनके निरन्तर पुर, श्री चन्द्रभाल द्विवेदी, बनारस, डा० अजित सुखदेव प्रयन्नो के फलस्वरूप में इस सम्मेलन में 'प्राकृत एव बनारस, डा० दरवारी लाल कोठिया, वनारस, श्री ए. जैनिज्म' नामक विभाग को सम्मिलित किया गया। जे० शर्मा, श्रीकार्तिकचन्द्र शाह, श्री लालचन्द्र जैन, स्वतन्त्र विभाग बन जाने पर भी दो-चार विद्वान ही इसमे वाराणसी, श्री सन्मतकुमार जैन, वाराणसी, कु० एन० सम्मिलित हो पाते थे । किन्तु कुछ समय पहले जब जैन एन० हल्दीकर, बम्बई, कु० पी० एस० पोटनिस, बम्बई,
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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