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________________ वीर सेवामन्दिर का साहित्यिक शोषकार्य प्रशस्ति संग्रह के द्वितीय भाग में अपभ्रंश भाषा के उन्हें जहां तक भी बन सका ऐतिहासिक क्रमानुसार देने का १२२ दिगम्बर ग्रंथों की प्रादि-मन्त प्रशस्तियां दी गई है। प्रयत्न का किया है। इस समय लक्षणावली के संपादन मोर मोर ५५ अंधकारों का शोषपूर्ण परिचय भी लिखा गया प्रकाशन का कार्य चल रहा है, लक्षणों का हिन्दी अनुवाद अपभ्रश भाषा के अनुपलब्ध ग्रंथों का नामोल्लेख भी दिया भी दिया है जिससे विद्वान, विद्यार्थी और स्वाध्यायी जन है। परिचय में जो ऐतिहासिक सामग्री दी गई है वह सभी लाभ उठा सकते है। लक्षणावली का संपादन कार्य महत्वपूर्ण हैं। अनेक परिशिष्टों द्वारा उन ऐतिहासिक पं० बालचन्द जी सिद्धान्तशास्त्री कर रहे हैं। उसके तथ्यों को उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है। प्रस्तुत अब तक तीस फार्म छप चुके हैं । प्रागे कार्य चालू है। संग्रह में ९ वीं शताब्दी से १७ वीं शताब्दी तक की सामा- अनेकान्त पत्र का प्रकाशन पहले १४ वर्ष तक मासिक जिक, धार्मिक और नैतिक परिस्थितियों पर अच्छा प्रकाश रूप में हमा और अब उसका प्रकाशन द्वैमासिक रूप में डाला गया है। हो रहा है, जिसमें अनेक ऐतिहासिक, साहित्यिक, दार्शप्रशस्तिसंग्रह के तृतीय भाग का सकलन कार्य भी निक, तात्विक और समीक्षात्मक लेख, कहानी, कविता सामने है. उसका कुछ भाग सकलित हो चुका है, पर प्रादि प्रकाशित होते है। प्राधकांश कार्य शेष है, उसके लिए बाहर के कुछ प्रथ- वीरसेवामन्दिर का यह सेवा-कार्य किसी तरह भी भडारों का अवलोकन करना और अप्रकाशित ग्रन्थों के भुलाया नहीं जा सकता। इन सब ग्रंथों की तैयारी में आदि अन्तभाग का संकलन करना आवश्यक है, समय अन्य संस्थानों की अपेक्षा वीर सेवामन्दिर मे अल्प खर्च मिलने पर उसे पूरा करने का विचार है। में महान कार्य संपन्न हुए है। जब कि उनमे अर्थ व्यय प्रकाशन-कार्य अधिक होता है । यह तथ्यसमाज से छुपा हुआ नहीं है । वीर सेवा मन्दिर में केवल अनुसन्धान कार्य ही संपन्न मुझे प्राशा है कि समाज ऐसी महत्वपूर्ण सेवा भावी संस्था नहीं हुआ, किन्तु अनेक ग्रन्थों का सानुवाद प्रकाशन भी . मी को अपनाएगी और उसे आर्थिक सहयोग प्रदान कर उसके हुपा है। पुरातन जैनवाक्य-सूची स्वयम्भूस्तोत्र, युक्त्यनु सेवा कार्य मे अपना हाथ बटाएगी। शासन, स्तुति विद्या, समीचीन धर्मशास्त्र, आप्तपरीक्षा, वीर सेवामन्दिर द्वारा अब तक जिन ग्रंथों, ग्रथकारों न्यायदीपिका, श्रीपुरपार्श्वनाथ स्तोत्र, शासनचस्त्रि- आदि के सम्बन्ध में अन्वेषण कार्य हुआ है उसकी सक्षिप्त शिका, प्रभाचन्द्र का तत्त्वार्थसूत्र, समाधितत्र और इप्टो. तालिका निम्न प्रकार है :पदेश, अध्यात्मकमलमार्तण्ड, अनित्यभावना, सत्साधुम्मरण अनुसंधान कार्य के कुछ संकेतमंगलपाठ बनारसी नाममाला अध्यात्म रहस्य दिल्ली के तोमर वशी अनंगपाल तृतीय (स०११८६) आदि ग्रंथ प्रकाशित हुए है। पुरातन जैन वाक्य- की खोज से दिल्ली के इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश सूची, जिसमे ६२ दिगम्बर ग्रथों के पद्यो का आदि भाग पडता है । सं० ११०६ से १२४६ तक के लिए जो प्रानंद दिया गया है और प्रस्तावना में मुख्तार सा० ने उनके सवत की कल्पना की गई थी, जिसका निरसन प्रसिद्ध सम्बन्ध में अच्छा विचार किया है, जो मनन करने योग्य विद्वान हीराचन्द जी मोझा ने किया था। इससे भी उसकी है, इन सब ग्रंथों की प्रस्तावनाये अत्यन्त महत्व पूर्ण है, निरर्थकता पर प्रकाश पड़ता है। और इतिहास की कितनी जो ऐतिहासिक अनुसन्धाताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी ही भूल-भ्रांतिया दूर हो जाती है। विजोलिया के शिलालेख से चौहान वंश की वंशावली जैन लक्षणावली (जैन पारिभाषिक शब्द कोष) का का सम्बन्ध भी ठीक घटित हो जाता है। संकलन दिगबर-श्वेतांबर ग्रंथों पर से किया गया है। यह सिद्धसेन के सामने सर्वार्थसिद्धि मोर 'राजवातिक' कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि लक्ष्य शब्दों का संग्रह दो नामक लेख से पं० सुखलाल जी संघवी की उस मान्यता सौ दिगंबर भौर इतनेही श्वेताम्बर प्रन्पों परसे हुमा है। मोर का निरसन हो जाता है कि सिद्धसेन गणी को दूर देश
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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