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________________ वीर-सेवामन्दिर का साहित्यिक शोध-कार्य पं० परमानन्द जा जैन शास्त्री वीर सेवा मन्दिर एक प्रसिद्ध शोध संस्थान है, जिसके है। मुस्तार साहब ने अब तक जो कार्य इस सम्बन्ध में संस्थापक वयोवृद्ध ऐतिहासिक विद्वान स्वर्गीय पं० जुगल- किया व उनके सहायक विद्वानों ने किया, उनका आधार किशोर जी मुख्तार है। जिसका उद्देश्य जैन साहित्य, भी वही पुस्तकालय है । और मैं जो कुछ कार्य कर रहा इतिहास और तत्वज्ञान-विषयक अनुसन्धान कार्यो का हूँ वह भी उसके सहयोग से ही कर रहा हूँ मेरे प्रायः प्रसाधन, जैन- जैनेतर पुरातात्विक सामग्री का अच्छा सग्रह सभी अधिकाश लेख अनेकान्त पत्र में ही प्रकाशित हुए संकलन और प्रकाशन, तथा लोक-हितानुरूप नव-साहित्य है और हो रहे है । विज्ञ पाठक उन पर से सस्था के कार्यों का सजन, प्रकटीकरण एव प्रचार है। महत्व के प्राचीन की रूप-रेखा का अनुमान कर सकते है । इसी खोज का ग्रंथों का उद्धार, जैन सस्कृति, साहित्य, कला और इतिहास परिणाम जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह के वे दोनो भाग है, जिनमे के अध्ययन में सहायक विभिन्न ग्रन्थों, शिलालेखों, प्रश अनेक ग्रन्थो, ग्रंथकारो, उनकी कृतियो के परिचय के साथ स्तियों, मतिलेखों, ताम्रपत्रों, सिक्को यत्रों, स्थापत्य और ग्रंथ निर्माण में प्रेरक श्रावक-थाविकाग्रो, राजापो, राज्यचित्रकला के नमूनों आदि का विशाल संग्रह करना है। मंत्रियों, कोषाध्यक्षो, भट्टारकों, प्राचार्यो, विद्वानो, लेखको, अनेकान्त पत्र द्वारा जनता के प्राचार को ऊँचा उठाना, अन्वयो, गोत्रों, स्थानो, और अग्रवाल खडेलवाल आदि एवं शोध-खोज कार्यो को प्रकाश मे लाना है। उपजातियों के ऐतिहासिक परिचय का अवलोकन करते है । जिनमे विद्वानो के शोध कार्य में योगदान मिलता है। वीर-सेवा-मन्दिर अपने इस उद्देश्य के अनुसार जैन इससे पाठक वीरसेवामन्दिर के साहित्यिक और ऐतिहासाहित्य, इतिहास और पुरातत्व के सम्बन्ध में अनेक शोध सिक कार्यो की उस रूप-रेखा का, जो इतिहास के निर्माण खोज के कार्य में सलग्न रहता है, वह वर्तमान विज्ञापन मे अत्यन्त आवश्यक है आशिक पूर्ति कर रहा है । वाजी से दूर है किन्तु उद्देश्यानुसार अपने कार्य सम्पन्न यद्यपि वीर-सेवामन्दिर के इस पुनीत एव महत्वपूर्ण कार्य करने में कभी नहीं हिचकता। प्राज दिन जैन साहित्य और में जैनसमाज का महयोग नगण्य-सा भी नहीं है परन्तु इतिहास के सम्बन्ध में जो कुछ प्रगति प्राप देख रहे है फिर भी वीरसेवामन्दिर के सचालक और कार्य करता उस सबका श्रेय इम सस्था को ही है। गण अपने अथक परिश्रम से उक्त कार्य में सलग्न देखे शोध-खोज का कार्य संचालन करने के लिए वीर । जाते है। विगत वर्षों में वीर सेवामन्दिर से जो शोधसेवामन्दिर में एक लायब्रेरी भी है जिसमे साढे चार हजार खोज कार्य सम्पन या उससे केवल कळमाना और के लगभग प्रथो का संग्रह है, वीर सेवामन्दिर के विद्वान उनके समयादि पर ही प्रकाश नहीं डाला गया प्रत्युत जो समयाटि इसी छोटी सी लायब्रेरी के सहारे अपने अनुसन्धान का अनेक पलभ्य और अप्रकाशित प्राकृत सस्कृत अपभ्रन्श कार्य करते है। अनुसन्धान का कार्य करते हुए जो कुछ भाषा और हिन्दी की रचनाओं का भी सम्मुल्लेख किया विशेष ज्ञातव्य सामग्री प्राप्त हो जाती है, उससे साहित्यिक सामान कार्य अत्यन्त सूक्ष और श्रम साध्य हैं। और ऐतिहासिक गुत्थियो को सुलझाने का प्रयत्न करते प्रशस्तिसंग्रह प्रथमभाग में १७१ सस्कृत-प्राकृत के अप्रहैं। वीर सेवामन्दिर के मुख पत्र 'अनेकान्त' मे शोधात्मक काशित ग्रंथों का प्रादि-अन्तभाग दिया गया है । उनके इतिहास, और पुरातत्व सम्बन्धी तथा समीक्षात्मक लेख कर्ता १०४ विद्वानों का उसकी प्रस्तावना में परिचय के प्रकाशित होते हैं वह सब इसी शोध-खोज का परिणाम साथ उनकी अन्य रचनामों का भी उल्लेख किया गया है।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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