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________________ १६२ अनेकान्त भी ऐसी लायब्रेरी प्रस्तुत करना जो धर्मादि विषयक खोज भाव से अपने को जन-धर्म तथा समाज की सेवा के लिए के कामों में अच्छी मदद दे सके। अर्पण कर देवें, उनके भोजनादि खर्च में सहायता पहुँचाना। (ख)-उक्त सामग्री पर से अनुसन्धान कार्य चलाना (ज) कर्मयोगी जैन-मन्डल अथवा वीर समन्तभद्र और लुप्तप्राय प्राचीन जैन-साहित्य, इतिहास व तत्वज्ञान गुरुकुल का स्थापना करके उस च गुरुकुल की स्थापना करके उसे चलाना । का उसके द्वारा पता लगाना और जैन-संस्कृति को उसके इस दृस्ट और वीरसेवामन्दिर के ये उद्देश्य और असली तथा मूल रूप मे खोज निकालना। ध्येय ट्रस्टनामा में लिखित उद्देश्यों और ध्येयों का शब्दशः (ग)-अनुसन्धान व खोज के आधार पर नये उल्लेखन है । ये उद्देश्य सभी जैनधर्म तथा तदाम्यनाय मौलिक साहित्य का और लोकहित की दृष्टि से उसे प्रका की उन्नति एव पुष्टि के द्वारा लोक की यथार्थ सेवा के निमित्त निर्धारित किए गए है। इस ट्रस्ट में स्वर्गीय शित करानां; जैसे जैन-सस्कृति का इतिहास, जैनधर्म का ___ मुख्तार सा० की लगभग सभी सम्पत्ति का ट्रस्टनामा कर इतिहास, जैन साहित्य का इतिहास, भगवान महावीर का दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य वीर-सेवा-मन्दिर का इतिहास, प्रधान-प्रधान जैनाचार्यों का इतिहास जातिगोत्रों का इतिहास, ऐतिहासिक जन व्यक्ति कोष जैन-लक्षणावली संरक्षक व सम्वर्द्धन करना रहा है। जैन-पारिभाषिक शब्द-कोष जैन ग्रथो की सूची, जैन-मंदिर ट्रस्ट बन जानेके वावजूद अनेकान्त घाटेकी अर्थ व्यवस्था मूर्तियों की सूची और किसी तत्व का नई शैली से विवेचन से नहीं बच सका । कलकत्ता से प्राप्त ६५६६ रुपये की या रहस्यादि तैयार कराकर प्रकाशित कराना । सहायता से तीन वर्ष (दस से बारहवें तक) का घाटा पूरा किया जा सका फिर भी ८७१ रुपये का घाटा बना रहा। (घ) उपयोगी प्राचीन जैन-ग्रथो तथा महत्व के नवीन धोव्य फण्ड समाप्त हो जाने के कारण अनेकान्त को और ग्रन्थों एव लेखो का भी विभिन्न देशी-विदेशी भाषामो मे भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तेरहवे वर्ष में नई-शैली से अनुवाद तथा सम्पादन कराकर अथवा मूल १४६२ रुपये तथा चौदहवे वर्ष में ५५०० रुपये का घाटा रूप मे ही प्रकाशित कराना । प्रशस्तियों और शिलालेखों रहा। अतः मुख्तार सा० ने एक बार पुनः अनेकान्त में आदि के संग्रह भी पृथक् रूप से सानुवाद तथा बिना अनु स्थायित्व लाने का प्रयत्न किया । तदर्थ उन्होने वीर सेवा वाद के ही प्रकाशित करना। मन्दिर, दिल्ली की पैसा फण्ड गोलक योजना बनाई। यह (3) जैन सस्कृति के प्रचार और पब्लिक के प्राचार योजना अनेकान्त वर्ष १४ किरण ६ जनवरी, १९५७ विचार को ऊँचा उठाने के लिए योग्य-व्यवस्था करना, मे प्रकाशित हुई। परन्तु यह योजना भी सफल ने वर्तमान में प्रकाशित अनेकान्त पत्र को चालू रखकर उसे सकी । फलतः जुलाई, १६५७ से अनेकान्त को पुनः बन्द और उन्नत लोकप्रिय बनाना । साथ ही, सार्वजनिक उप कर देना पड़ा। इस प्रकार अनेकान्त ने अपने चौदह वर्ष योगी पेम्पलेट व ट्रैक्ट (लघु पत्र पुस्तिकाये) प्रकाशित का कार्यकाल प्रवाईस वर्ष मे पूर्ण किया। इन वर्षों में श्री करना और प्रचारक घुमाना । पं० परमानन्द जी प्रकाशक व सम्पादक के रूप में अपनी (च) जैन- साहित्य इतिहास और संस्कृति की सेवा सेवाए देते रहे है। तथा तत्वसम्बन्धी अनुसन्धान व नई पद्धति से प्रथ-निर्माण इसके बाद अनेकान्त का पन्द्रहवां वर्ष अप्रैल, १९६२ के कार्यों में दिलचस्पी पैदा करना और आवश्यकता से प्रारम्भ हुआ। इसी समय से पत्र को मासिक न रखकर शिक्षण (ट्रेनिंग) दिलाने के लिए योग्य विद्वानो को स्का- द्विमासिक बना दिया गया। अभी तक सम्पादक मण्डल लरशिप (वृत्तियां, वजीफे) देना। में श्री डा० प्रा० ने० उपाध्ये, श्री रतन लाल (छ) योग्य विद्वानों को उनकी साहित्यिक सेवामों कटारिया, डा. प्रेम सागर व श्री यशपाल को रखा गया। तथा इतिहास प्रादि विषयक विशिष्ट खोजों के लिए कुछ समय बाद श्री रतनलाल कटारिया सम्पादक मण्डल पुरुस्कार या उपहार देना । और जो सज्जन निःस्वार्थ से पृथक हो गए। १९६५ में सम्पादक मण्डल में श्री पं.
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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