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________________ अनेकान्त और श्री पं० परमानन्द जी शास्त्री श्रीमती पुष्पलता जैन अनेकान्त जैन शोध पत्रों में शायद प्राचीनतम पत्र है नवम्बर १९३८ से अनेकान्त का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ जिसने जैनधर्म, सस्कृति और साहित्य की अनुपलब्ध व अप्र- हुमा । श्री पं० परमानन्द जी का सम्बन्ध भी अनेकान्त काशित विधामों को उपलब्ध कर प्रकाशित करने का बीडा से इसी समय हुआ। उठाया । इसका प्रकाशन स्व०५० जुगल किशोरजी मुक्तार लगभग इसी वर्ष तक अनेकान्त किसी तरह अपनी व स्व. बाब छोटे लाल जी कलकत्ता के अमित सहयोग से गाडी खींचता रहा पर सन १९४७ मे फिर उसकी कमर सन् १९२६ मे वीर सेवक संघ एवं समन्तभद्राश्रम की टूटी । मन् १९४८ में भारतीय ज्ञान पीठ, काशी ने उसे स्थापना हुई तथा अनेकान्त का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ अपने हाथ में लिया और घाटे के साथ एक वर्ष तक महावीर जयन्ती (वीर नि० सं० २४५६) के शुभावसर चलाता रहा । ज्ञानपीठ इस घाटे को बहन करने के लिए पर । तैयार नहीं हुआ और अनेकान्त पुनः समन्त भद्राश्रम (वीर जैनसमाज ने अनेकान्त जैसे निर्भीक शोध पत्र की सेवा मंदिर) के पास वापिस पा गया। जुलाई १९४६ में आवश्यकता का अनुभव बहुत पहले से किया था परन्तु देहली से उसका प्रकाशन हुप्रा और सात मास तक किसी उसका समुचित पालन-पोपण नहीं किया जा सका । जैसा तरह उसका प्रकाशन चलता ही रहा। यहा भी घाटे प्रायः देखा गया है, शोध पत्र का सम्पर्क सामान्य जन की पूर्ति नहीं की जा सकी। पत्र के दसवे वर्ष के अन्त मे समाज से अधिक नहीं हो पाता और फलतः उसे अनेक मुख्तार सा० को विवश होकर पुनः पत्र को बन्द कर देना समस्याम्रो का सामना करना पड़ता है। इनमें मुख्य पड़ा । लगभग ढाई हजार का घाटा था। समस्या अर्थ व्यवस्था की है । अनेकान्त को अपने शिशु काल से ही इस अर्थक्षीणता का शिकार होना पड़ा । प्रथम वर्ष अक्टूबर १९५१ मे फिर अनेकान्त का भाग्योदय में ही उसे लगभग १२५२ रुपये की हानि रही। इगहानि हुप्रा। मुख्तार मा० कलकत्ता पहुँचे । वहां छोटे लाल जी को देखकर प्रकाशन व्यय कम होगा' इस उद्देश्य से वीर वा० नन्दलाल जी सरावगी के सहयोग से अनेकान्त में स्थासेवा संघ ने समन्तभद्राथम तथा अनेकान्त को सरसावा यित्व लाने की योजना बनाई गई । सरक्षक व सहायक भेजने का निर्णय किया और ये दोनो संस्थाए मुम्नार सदस्य बनाये गए। एतदर्थ प्राप्त प्राथिक सहायता से सा. के साथ नवम्बर १९३० मे सरसावा पहुँच गई। सर्वोदय तीर्थाक के माथ अनेकान्त के ग्यारहवं वर्ष की परन्तु दुर्भाग्य से वहा भी अनेकान्त का प्रकाशन अबरुद्ध प्रथम किरण मार्च, १९५२ मे डेढ वर्ष बाद पुन: प्रकाशित हो गया। हुई । इसी में मुख्तार सा० ने वीरसेवादिर ट्रस्ट, की इस बीच मुक्तार सा० वीर-सेवा-मदिर के भवन स्थापना की। इसके उद्देश्य निम्नलिखित निर्धारित किए निर्माण में अपना पूरा समय देने लगे। फलतः द्वितीय वर्ष गए--- की प्रथम किरण के बाद अनेकान्त बन्द पड गया । स्व० (क)-जैन संस्कृति और उसके साहित्य तथा इतिबाबू छोटेलाल जी ने पूर्ण मार्थिक सहयोग देने का प्रश्वा- हास से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न ग्रंथों शिलालेखों, सन दिया फिर भी अनेकान्त का प्रकाशन नहीं किया जा प्रशस्तियों, उल्लेख वाक्यों, सिक्कों, मूर्तियों, स्थापत्य, और सका । लाला तनसुखराय जी तथा अन्य महानुभावों ने भी चित्रकला के नमूनों आदि सामग्री का लायब्ररी व म्यूजियम मार्थिक सहायता दी। अर्थ व्यवस्था हो जाने पर एक प्रादि के रूप में अच्छा संग्रह करना और दूसरे ग्रंथों की
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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